पितृपक्ष के दौरान किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण कार्य और दान

भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह के कृृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि तक का समय पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इस अवधि में हम मृत पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं विशेष रूप से उनकी जिनकी मरण-तिथि हमें ज्ञात होती है। सर्वपितृ अमावस्या जो पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है उस दिन हम कुल के उन लोगों का श्राद्ध करते हैं जिन्हें हम नहीं जानते या जिनकी मरण-तिथि हमें ज्ञात नहीं होती है, इसके अतिरिक्त, अमावस्या और पूर्णिमा के दिनों पर भी हम पितरों को याद करके उनका श्राद्ध करते हैं।

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शास्त्रों के अनुसार मानव जीवन में तीन प्रमुख ऋण होते हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण, और पितृ ऋण इन ऋणों को यज्ञ, स्वाध्याय और श्राद्ध के माध्यम से उतारा जाता है। पितृ पक्ष में, जब सूर्य कन्या राशि में होता है तो पितर लोक से पितरों की आशा होती है कि पृथ्वी पर उनके पुत्र-पौत्र उन्हें पिंडदान कर उन्हें संतुष्ट करेंगे। इसलिए पितरों के ऋण का उतारा करना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।

आइयें जाने प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य K.M. Sinha जी से पितृपक्ष का महत्वः-

पितृपक्ष के महत्व की बात करें तो इस अवधि में हम अपने पूर्वजों को श्राद्ध और पिंडदान के माध्यम से याद करते हैं। यह संस्कारिक परंपरा हमें यह याद दिलाती है कि हमारे माता-पिता, दादा-दादी और अन्य पूर्वजों ने हमारे लिए कितनी मेहनत की है। पितृपक्ष की तिथि हमें अपने पूर्वजों की याद दिलाने तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। पितृपक्ष के समय श्राद्ध और पिंडदान करना हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिससे हमारे पूर्वजों को शांति मिलती है और हमारे जीवन में समृद्धि और सम्मान बना रहता है। इस अवधि में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दिन को पितरों का ऋण मानते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का समय माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान किए गए कर्मों से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है और यह उनकी आत्मा की उन्नति में अत्यधिक सहायक होता है, इसके अलावा पितरों की कृृपा से घर में सुख, समृद्धि और शांति हमेशा बनी रहती है।

पितृपक्ष के दौरान किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण कार्य और दानः-

✨ पितरों के निमित्त अर्पित किया जाने वाला तर्पण और पिंडदान श्राद्ध कहलाता है।

✨ पवित्र जल से पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए अर्पण करना तर्पण कहलाता है।

✨ चावल, जौ, तिल और जल के मिश्रण से पिंड बनाकर अर्पण करना पिंडदान कहलाता है।

✨ श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

✨  पितृपक्ष में जौ का दान करने से पितृ देवताओं की आत्मा को शांति मिलती है साथ ही जातक को पितृ लोक की कृृपा प्राप्त होती है यह एक बहुत ही संस्कारिक कर्तव्य माना जाता है।

✨ पितृपक्ष में पान का दान करने से पितृ देवताओं को संतुष्टि मिलती है यह पितृ लोक में उन्हें आनंदित करता है।

✨  पितृपक्ष में दही का दान करने से पितृ देवताओं को आनंद मिलता है। यह एक परंपरागत और धार्मिक कर्तव्य है ऐसा करने से घर में हमेशा शांति रहती है साथ ही संतान के जीवन में हमेशा खुशियाँ बनी रहती है। परिवार के कल्याण के लिए भी इस दिन दही का दान करना अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

✨ पितृ पक्ष में काला तिल घर लाने और काले तिल का दान करने से वंश का विस्तार होता है साथ ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह परंपरागत कर्म हमारे पूर्वजों को समर्पित होता है और पितृ देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करता है।

✨ पितृपक्ष में धार्मिक दृृष्टिकोण से गौ का दान करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान गौ का दान करने से हर प्रकार के सुख और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

✨ पितृ पक्ष में सफ़ेद नमक का दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और कुंडली में पितृ दोष का निवारण होता है।

✨  पितृ पक्ष में चांदी का दान करना पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। इससे आपकी जन्म कुंडली में स्थित चंद्रमा को विशेष बल मिलता है।


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पितृपक्ष के दौरान किये जाने वाले श्राद्ध के प्रकारः-

नित्य श्राद्धः- नित्य श्राद्ध वह श्राद्ध है जो प्रतिदिन किया जाता है इसमें विश्वेदेव की स्थापना नहीं की जाती है। इस श्राद्ध को केवल जल से भी सम्पन्न किया जा सकता है।

काम्य श्राद्धः- काम्य श्राद्ध वह श्राद्ध है जिसे किसी कामना की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसमें व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए श्राद्ध करता है।

नैमित्तिक श्राद्धः– नैमित्तिक श्राद्ध वह श्राद्ध होता है जिसे किसी निश्चित निमित्त के अनुसार किया जाता है, जैसे किसी की मृत्यु होने पर दशाह, एकादशाह आदि। इसे एकोद्दिष्ट श्राद्ध भी कहा जाता है जिसमें विश्वेदेवों को स्थापित नहीं किया जाता है।

काम्य श्राद्धः- काम्य श्राद्ध वह श्राद्ध होता है जिसे किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसमें प्रार्थनाओं और ध्यान के साथ श्राद्ध की यात्रा की जाती है।

वृद्धि श्राद्धः- वृद्धि श्राद्ध वह श्राद्ध है जो किसी विशेष समय पर, जैसे पुत्र के जन्म पर , नये घर में प्रवेश करने पर, विवाह आदि मांगलिक प्रसंगों में पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इसे नांदीश्राद्ध या नांदीमुखश्राद्ध भी कहते हैं और यह कर्मकांड का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

पार्वण श्राद्धः- पार्वण श्राद्ध उन पर्वों से संबंधित होता है, जैसे पितृ पक्ष, अमावस्या या किसी अन्य पर्व की तिथि पर किया जाने वाला श्राद्ध। इसमें विश्वेदेव और पितरों को सम्मिलित किया जाता है।

पुष्ट्यर्थश्राद्धः- पुष्ट्यर्थश्राद्ध वह श्राद्ध है जो पुष्टि के निमित्त संपन्न होता है। यह श्राद्ध शारीरिक और आर्थिक उन्नति के लिए किया जाता है।

सपिण्डनश्राद्धः– सपिण्डनश्राद्ध का अर्थ है पिण्डों का सम्मिलन। यह प्रक्रिया पितरों को प्रेत पिण्डों में शामिल करने के लिए होती है। इसे सपिण्डनश्राद्ध कहा जाता है।

यात्रार्थश्राद्धः- यात्रार्थश्राद्ध का अर्थ होता है यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध। यह तीर्थ यात्रा या देशान्तर जाने के समय किया जाता है । इसे घृतश्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

गोष्ठी श्राद्धः- गोष्ठी श्राद्ध का मतलब है वह श्राद्ध जो सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किया जाता है।

शुद्धयर्थ श्राद्धः– शुद्धयर्थ श्राद्ध का मतलब है वह श्राद्ध जो शुद्धि के निमित्त सम्पन्न किया जाता है। इसे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं, उदाहरण के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना।

कर्माग श्राद्धः– कर्माग श्राद्ध का मतलब है वह श्राद्ध जो किसी प्रमुख कर्म के अंग के रूप में सम्पन्न किया जाता है।

 श्राद्ध करने की विधिः-

ऽ             प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

ऽ             श्राद्ध के लिए एक पवित्र स्थान का चयन करें और वहां पर एक पवित्र मंच स्थापित करें।

ऽ             श्राद्ध के लिए तिल, जौ, कुशा, गंगाजल, दूध, शहद, और पिंड बनाने के लिए चावल, आदि सामग्री तैयार रखें।

ऽ             पिंडदान करते समय चावल, जौ और तिल के मिश्रण से एक पिंड बनाएं और उसे पवित्र जल से अर्पित करें।

ऽ             तर्पण के लिए पवित्र जल को कुशा के माध्यम से पितरों को अर्पित करें।

ऽ             श्राद्ध के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।

ऽ             श्राद्ध के दौरान सात्विक आहार का पालन करें और पवित्रता बनाए रखें।


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श्राद्ध अनुष्ठान मुहूर्तः-

पितृपक्ष का प्रारम्भ 18 सितम्बर 2024 को बुधवार के दिन होगा।

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 18 सितम्बर 2024 को सुबह08ः04 मिनट से,

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 19 सितम्बर 2024 को सुबह 04ः19 मिनट पर।

 

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