पितृ पक्ष की शुरुआत 18 सितंबर 2024 से होगी। यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अवधि है, जब हमारे मृत पूर्वज पृथ्वी पर हमारे साथ 15 दिन बिताने आते हैं। इस दौरान, पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है, जिससे वे प्रसन्न होकर हमें सम्पन्नता और खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त कौवे को भोजन कराना एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जिसका महत्व और अर्थ गहरा है।
कौवा: पितरों का प्रतीक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान कौवे को भोजन करना अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। कौवा यम के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और पितरों के आस-पास होने का संकेत देता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष के पूरे 15 दिन कौवे को भोजन कराना चाहिए, जिससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे आशीर्वाद देते हैं।
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ना मिले कौवा तो क्या करें?
अगर पितृ पक्ष के दौरान कौवे को भोजन कराने का अवसर न मिले, तो इसके विकल्प के रूप में गाय या कुत्ते को भोजन कराया जा सकता है। इस दौरान पीपल के पेड़ में जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व है। पीपल के वृक्ष को पितरों का प्रतीक माना जाता है और पितृ पक्ष में इसकी पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
कौवे की मृत्यु के पश्चात साथी कौवे की क्रिया
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कौवा कभी भी बीमारी से नहीं मरता, बल्कि उसकी मृत्यु अचानक होती है। जब झुंड का कोई भी कौवा मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसके बाकी साथी कौवे उस दिन खाना नहीं खाते। यह उनके गहरे संबंध और समुदाय के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।
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पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के उपाय
पितृ पक्ष के दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनके निमित्त भोजन और तर्पण करने के अलावा कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं। पीपल के वृक्ष की पूजा, पवित्र नदियों में स्नान, और जरूरतमंदों को दान करना पितरों को प्रसन्न करने में सहायक होता है। इसके अलावा, पितरों के आशीर्वाद के लिए पवित्र जल का उपयोग करना भी लाभकारी होता है।
पितृ पक्ष न केवल पितरों को सम्मान देने का समय है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी समय है। इस अवधि में किए गए धार्मिक अनुष्ठान और आस्थाएं हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार करती हैं।