प्रत्यंगिरा माता | Pratyangira Mata |

प्रत्यंगिरा का अर्थ

प्रत्यंगिरा दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है किसी प्रकार के तंत्र, काला जादू, आक्रमण को पलट देना। प्रत्यंगिरा माता की पूजा करने से काला जादू नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव इत्यादि दूर हो जाता है तथा प्रत्यंगिरा माता अधर्म रुपी काम करने वाले प्राणी को दण्ड देने में सक्षम है जिससे भक्तों का कल्याण हों तथा समाज में बुराईयों का अन्त हो।

माँ प्रत्यंगिरा माँ आदिशक्ति का ही एक स्वरुप है माता ने जगत के कल्याण के लिए अनेक रुप धारण किये और उन्होंने अपने रुपों से कई दानवों एवं राक्षसों का वध किया है। माता ने कई अवतार अपनी महिमा, शक्ति और पराक्रम दिखाने के लिए भी है। इसी स्वरुपों मे से एक अवतार प्रत्यंगिरा का भी है जो बहुत भयानक एवं प्रलयकारी था। माँ प्रत्यंगिरा देवी की महिमा भी अपरम्पार है ऐसा माना जाता है कि प्रत्यंगिरा माँ का पूजन एवं हवन करने से बहुत लाभ मिलता है तो आइये इसकी सम्पूर्ण जानकारी हम ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा समझते है।

कैसे बनी माँ, उग्र प्रत्यंगिरा

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कथा सतयुग से जुड़ी हुई है जब भगवान ने नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप का वध किया था। कई पुराणों मे इसकी अलग-अलग कथा प्रचलित है परन्तु यह सबसे प्राचीन कथा है जिसके अनुसार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात सारा राज्य प्रहलाद को सौप दिया और स्वयं अंतर्धान हो गये अर्थात जब भगवान ने नरसिंह अवतार लिया तो प्रहलाद ने ही उन्हें शांत कराया था जिसके पश्चात उन्होंने प्रहलाद का राज्यभिषेक किया और पुनः भगवान विष्णु मे समा गये लेकिन शिव पुराण में इसके आगे की कथा को वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है।

शिव पुराण के अनुसार जब हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात भी नरसिंह भगवान का क्रोध नही शांत हुआ तो वे इधर-उधर विचरण करने लगे तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने शरभ रुप धारण किया। शिव जी का यह स्वरुप दो गरुड़ पंख, शेर के पंजे, सिंह मुख, जटाएं तथा चन्द्रमा लिए हुए था। भगवान शिव जी का यह अवतार नरसिंह जी के अवतार से कही बड़ा था। तब शरभ अवतार में शिव जी ने नरसिंह भगवान को अपने पंजो में जकड़ लिया तथा चोंच मारकर घायल करने लगे यह देखकर नरसिंह भगवान पहले की अपेक्षा अधिक क्रोधित हो गयें।

शरभ एवं गंडभेरुंड का युद्ध

अपने ऊपर होते प्रहार को देखकर नरसिंह भगवान ने अपना आकार शरभ अवतार से बड़ा कर लिया जो गंडभेरुंड अवतार था जो दो पक्षी के मुख वाला था। अब भगवान विष्णु के गंडभेरुंड अवतार एवं भगवान शिव जी के शरभ अवतार के बीच भीषण युद्ध आरम्भ हो गया जो लगभग 18 दिनों तक चलता रहा। उनके इस युद्ध के कारण तीनों लोको में त्राहिमाम मच गया। दोनों के बीच चल रहें युद्ध को रोकने की शक्ति तीनों लोकों मे किसी के पास नही थीं जिसके कारण देवता, मनुष्य, दानव सभी भय से कांप रहे थे। इस दयनीय स्थिति को देखकर माँ आदिशक्ति ने जगत के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुई।

माँ का प्रत्यंगिरा रुप

माँ आदिशक्ति ने स्वयं की शक्तियों द्वारा एवं भयानक स्वरुप धारण किया जिसमें उनका मुख शेर का था तथा शिव जी के अवतार शरभ एवं विष्णु जी के अवतारों नरसिंह एवं गंडभेरुंड की पूर्ण शक्तियाँ निहित थी। माता का यह स्वरुप इतना विशाल था कि इसके समक्ष ब्रह्माण्ड की कोई भी शक्ति नही थी। माँ अपने उस स्वरुप में शरभ और गंडभेरुंड अवतार के पास गई और एक जोरदार चिघाड़ मारी तब अपने समक्ष इतने विशालकाय रुप को देखकर शरभ और गंडभेरुंड का भय समाप्त हो गया और युद्ध भी रुक गया उसके पश्चात शरभ और गंडभेरुंड अवतार से पुनः अपने असली अवतार में आ गयें।

यह पढ़ेंः- कर्ण पिशाचिनी साधना के कुछ विधि एवं मंत्र

रामायण में माता प्रत्यंगिरा की भूमिका

शिव पुराण के अतिरिक्त रामायण में भी माँ के प्रत्यंगिरा रुप का उल्लेख मिलता है। जब लक्ष्मण और मेघनाथ के बीच अंतिम युद्ध होने वाला था तब वह माँ निकुंभला का यज्ञ करने वाला था। प्रत्यंगिरा माँ को ही निकुंभला माता कहा जाता है और यदि मेघनाथ ने इस यज्ञ को पूर्ण कर लिया होता तो श्री राम जी के लिए उसका वध करना आरम्भ हो जाता है यही कारण था कि हनुमान जी ने पहले ही उस यज्ञ को विफल कर दिया जिसके पश्चात लक्ष्मण जी ने उनका वध किया।

प्रत्यंगिरा माता की पूजा विधि

☸ माँ प्रत्यंगिरा देवी की पूजा, घर में या किसी मंदिर में मंगलवार के दिन रात्रि 10 बजे के बाद आरम्भ कर सकते है।
☸ उसके पश्चात स्नान कर लाल रंग के वस्त्र पहनें और लाल आसन पर बैठे।
☸ अब एक कागज पर हल्दी से अनार या पीपल की कलम लेकर एक स्त्री का चित्र बनायें।
☸ इस चित्र को लाल वस्त्र पर स्थापित कर दें तथा उन्हें मां का स्वरुप मानकर आराधना करें।
☸ अब माता को लाल पुष्प अर्पित करें तथा शहद एवं द्राक्ष को मिलाकर भोग लगायें और पूजन के पश्चात स्वयं इस भोग को ग्रहण करें।
☸ उसके पश्चात अपने सभी प्रकार के काम में विजय हेतु संकल्प लें तथा रुद्राक्ष की माला से गायत्री प्रत्यंगिरा जी के मंत्र का ग्यारह माला जाप करें।
☸ पूजा के बाद माँ का आशीर्वाद लें तथा प्रसाद ग्रहण करें।

प्रत्यंगिरा माता पूजा के लाभ

☸ यदि आप शारीरिक एवं मानसिक रुप से अत्यधिक परेशान है तो आपको प्रत्यंगिरा पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होगा।
☸ इस पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशियां बनी रहती है।
☸ प्रत्यंगिरा माता की आराधना करने से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती है।
☸ इसके अलावा प्रत्यंगिरा देवी की पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

यह पढ़ेंः कैसे हुई छिन्नमाता की उत्पत्ति

विपरीत प्रत्यंगिरा पाठ का महत्व

विपरीत प्रत्यंगिरा पाठ बहुत प्रभावशाली होता है तथा इस मंत्र का सामना कोई अन्य मंत्र नही कर सकता है। इस मंत्र से शत्रुओं का नाश होता है साथ ही देवताओं पर भी यह मंत्र भारी पड़ता है। देवता, राक्षस, दानव, ग्रह, नक्षत्र सभी निस्तेज हो जाते है अर्थात इनका कोई प्रभाव नही पड़ता है। यह प्रयोग कभी निष्फल नही होती है परन्तु बिना किसी गुरु की देख-रेख मे यह साधना न करें।

607 Views

One thought on “प्रत्यंगिरा माता | Pratyangira Mata |

Comments are closed.

× How can I help you?