भू-वैण्ठकृतावासं देवदेवं जगत्पतिम् । चतुर्वर्गप्रदातारं श्रीबद्रीशं नमाम्यहम् ।। १।। तापत्रयहरं साक्षाच्छान्तिपुष्टिबलप्रदम् ।
उत्तराखंड के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम मंदिर के कपाट खुलने की तारीख की घोषणा हो चुकी है। यहां स्थित नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के गोद में स्थित बद्रीनाथ धाम श्रद्धा और आस्था का अटूट केंद्र है। हर वर्ष ग्रीष्मकाल में, हजारों भक्त भगवान बद्रीविशाल के दर्शन के लिए बद्रीनाथ धाम आते हैं। शास्त्रों में इसे धरती का बैकुण्ठ धाम भी कहा गया है।
कहा जाता है- “जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी” अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। चलिए जानते हैं कि बद्रीनाथ धाम 2024 में कब खुलेगा और मंदिर के कपाट कैसे खुलने की तिथि निर्धारित होती है।
आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा द्वारा बद्रीनाथ धाम 2024 में कब खुलेगा
बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर राजदरबार में बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की घोषणा की गई है। उत्तराखंड में स्थित श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट 12 मई से खोले जाएंगे। मंदिर समिति के प्रवक्ता ने बसंत पंचमी के मौके पर इस जानकारी को साझा किया है। 12 मई को ब्रह्ममुहूर्त में सुबह 6 बजे धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे। नरेंद्रनगर टिहरी स्थित राजदरबार में इस तारीख की घोषणा की गई है।
ऐसे तय होती है बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार तय की जाती है। प्रति वर्ष, बसंत पंचमी के दिन, टिहरी के राजदरबार के राजपुरोहित राजा की कुंडली में ग्रह-दशा की गणना के माध्यम से तिथि का निर्धारण किया जाता है। टिहरी नरेश को ही भगवान बद्री विशाल का कुल देवता माना जाता है। इसे राजशाही काल से ही धाम की प्रबंधन, मंदिर के खुलने और बंद होने की घोषणा राजमहल से की जाती है।
कपाट खुलने के बाद ऐसे होता है अभिषेक
कपाट खुलने के पहले ही गाड़ू घड़ा यात्रा की प्रक्रिया आरंभ होती है। इसमें, नरेंद्र नगर के राजमहल में महारानी राज्य लक्ष्मी शाह सुहागिन समेत महिलाएं व्रत रखती हैं और मूसल-ओखली और सिलबट्टे का इस्तेमाल करके तिल का तेल बनाती हैं। इस तेल को गाड़ू कहे जाने वाले घड़े में रखा जाता है जिसे श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थान दिया जाता है फिर बद्री विशाल की प्रतिमा के इसी तिले से कपाट खुलने के समय उसका अभिषेक किया जाता है।
यहां भगवान नारायण की है स्वंय भू मूर्ति
चार धाम यात्रा में बद्रीनाथ धाम भी शामिल होता है। यहां, भगवान नारायण योग मुद्रा में विराजमान हैं। इस धाम को भू-वैकुंठ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान नारायण की पूजा 6 महीने मानव और 6 महीने देवताओं की ओर से उनके प्रतिनिधि नारद जी करते हैं। यहां के कपाट शीतकाल में बंद होते हैं, जिसे देव पूजा के रूप में माना जाता है।