भगवान जगन्नाथ का मंदिर कई रोचक रहस्यों से जुड़ा है जिसमें सबसे बड़ा रहस्य यह है कि मंदिर में रखें भगवान बलभद्र, जगन्नाथ तथा सुभद्रा की मूर्तियाँ आधी बनी हुई है जिसमे उनके हाथ एवं पैर नही है। आज हम जानेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण यह मूर्तियाँ पूर्ण नही हुई तथा आज भी उन्हें क्यों अधूरे रुप मे ही पूजा जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि यह मूर्तियाँ भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु के पश्चात उनके हृदय से बनी है।
भगवान श्री कृष्ण का हृदय जब पूरी पहुँचा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु हो गई तब अर्जुन ने उनका अंतिम संस्कार किया था परन्तु कई दिन बीत जाने के बाद भी उनका हृदय जलता रहा तब भगवान श्री कृष्ण के आदेश पर अर्जुन उनका जलता हृदय लकड़ी समेत समुंद्र में बहा दिया। यही हृदय समुंद्र मे बहता हुआ पश्चिमी छोर से पूर्वी छोर तक पूरी नगरी जा पहुंचा।
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जब राजा इंद्रद्युम्न को मिला भगवान का हृदय
राजा इंद्रद्युम्न भगवान श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थें। जो मालवा के राजा भी थे। एक बार की बात है उनके स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने दर्शन दियें और कहा समुंद्र तट से वह लकड़ी का लट्ठा लेकर आये और उससे मूर्ति बनवाकर एक विशाल मंदिर में स्थापित करें। भगवान जगन्नाथ की आज्ञा का पालन करते हुए राजा इंद्रद्युम्न ने एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया तथा उस मंदिर में लकड़ी का लट्ठा ले आएं। उस लट्ठे से मूर्तियाँ बनवाने के लिए राजा ने अनेक महान शिल्पकारों तथा विशेषज्ञों को आमंत्रित किया परन्तु कोई भी सफल नही हो पाया। जब भी कोई मूर्ति बनाने के लिए हथौड़ा इत्यादि मारने का प्रयास करते तो वह लकड़ी टूट जाता या यह सब देखकर राजा अत्यन्त परेशान हो गये और भगवान कृष्ण के समक्ष अपनी समस्या को प्रकट किए तब सृष्टि के महान शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा जी एक वृद्ध कारीगर के रुप में राजा के पास गये और उनसे कहा कि वे सब उस लट्ठे से मूर्ति का निर्माण कर देंगे तब राजा की चिंता दूर हो गई।
मूर्ति बनाने आये शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा
भगवान विश्वकर्मा जी ने मूर्ति पूर्ण करने की एक शर्त रखी। उन्होंने कहा जब तक मैं मूर्तियाँ पूर्ण रुप से न बना लूं तब तक मैं अकेला ही रहूँगा तथा मंदिर के कपाट बंद रहेंगे और कोई भी अन्दर नही आयेगा। इस कार्य में मुझे 21 दिन लगेंगे, राजा ने शिल्पकार विश्वकर्मा जी की बात मान ली और उन्हें मूर्ति बनाने का काम दे दिया।
भगवान श्री कृष्ण का आदेश था कि उस लट्ठे से चार मूर्तियाँ बनाई जाए जिसमे एक मूर्ति उनके स्वयं की तथा अन्य तीन उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र), बहन सुभद्रा तथा सुदर्शन चक्र की हो। विश्वकर्मा जी ने अपना कार्य प्रारम्भ किया फलस्वरुप मंदिर के अंदर से थोड़ा बहुत हथौड़ा इत्यादि चलाने की ध्वनि भी आती थी।
क्यों रह गई मूर्ति अधूरी
एक दिन की बात है अपने जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए राजा की पत्नी ने मंदिर के बाहर से कान लगाकर सुनने का प्रयास किया तो अन्दर से कोई भी आवाज नही आयी। यह देखकर रानी के अन्दर भय उत्पन्न हो गया कि कहीं वह वृद्ध शिल्पकार अन्दर मर तो नही गया। उन्होंने अपने भय को राजा के समक्ष बताया तब राजा को भी भय हुआ उन्होंने तुरन्त अपने सैनिकों को बुलाया और उनके साथ मंदिर के द्वार पहुंचे।
वहाँ पहुंचकर उन्होंने मंदिर के द्वार खुलवाए तो वहां से वह वृद्ध कारीगर विलुप्त हो चुके थें। जब उन्होंने मूर्तियों को देखा तो वह अधूरी ही थी जिसमें तीनो के पैर नही थें तथा भगवान जगन्नाथ तथा बलभद्र के हाथ आधे ही बन थें जबकि बहन सुभद्रा के हाथ भी नही बने थें। यह सब देखकर राजा बहुत दुखी हुए और अपनी गलती का पश्चाताप करने लगे परन्तु भगवान श्री कृष्ण उनके स्वप्न में आये और कहा यही विधि का विधान था। अतः उन अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित करें और विधिपूर्वक पूजा पाठ करें तभी से भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति की पूजा होती है। यह मूर्तियाँ नीम की लकड़ी की बनी है।
मूर्तियों से जुड़ी है अस्थियाँ
जब राजा के सपनों में भगवान कृष्ण आये तो उन्होंने यह भी बताया कि श्री कृष्ण नदी में समा गए है तथा उनके दुःख मे आकर बलराम और सुभद्रा भी नदी में समा गये। उनके शवो की अस्थियाँ नदी मे पड़ी हुई है। तब राजा ने भगवान का आदेश मानकर उन सभी अस्थियों को एकत्रित किया और मूर्तियों के निर्माण के दौरान उन अस्थियों को थोड़ा-थोड़ा मूर्ति मे रख दिया।
भगवान जगन्नाथ के मंदिर की महत्ता
भगवान जगन्नाथ का मंदिर दसवीं शताब्दी मे निर्माण हुआ। भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी मे हुआ था। इस मंदिर को चारो धामों मे भी स्थान प्राप्त है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार मंदिर की चोटी पर लहराता ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। जिसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह बताया गया है कि दिन के समय हवा समुन्द्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के समय में इसके विपरीत दिशा में हवा चलती है लेकिन मंदिर का ध्वज ठीक विपरीत, उल्टे दिशा में लहराता है क्योंकि मंदिर में हवा दिन में समुन्द्र की ओर और रात में मंदिर की ओर बहती है।
हर दिन बदलते ध्वज का महत्व
भारत में कोई भी ऐसा मंदिर नही है जिसका ध्वज प्रतिदिन बदला जाता है। अतः जगन्नााथ मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जिसका ध्वज हर दिन बदला जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है यदि ध्वज नही बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जायेगा। इसी बातों को ध्यान में रखकर प्रत्येक दिन एक पुजारी मंदिर की चोटी पर चढ़कर ध्वज बदलता है।
विशेष
इस मंदिर में बहुत से रहस्य विराजमान है जिसमे यह भी कहा गया है कि इस मंदिर के ऊपर कभी भी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं दिखता साथ ही कोई विमान भी इसके ऊपर से नही गुजरता है क्योंकि यहाँ एक विशेषकर की चुम्बकीय शक्ति पायी जाती है।
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कौन थे भगवान जगन्नाथ
हिन्दू धर्म में कई देवताओं के कई रुपों का उल्लेख मिलता है। प्रत्येक रुपों की एक कथा एवं महत्ता है जो हमें बहुत आकर्षित करती है। हम सभी भगवान विष्णु जी के कर्मों रुपो इत्यादि से परिचित है जिन्होंने पृथ्वी के उद्धार एवं समाज के कल्याण के लिए अनेक रुपों मे अवतार लिया है। भगवान जगन्नाथ भी विष्णु जी का ही अवतार है। उनका भव्य मंदिर ओड़िशा राज्य के पुरी शहर मे स्थित है इसलिए उन्हें पुरी के भगवान के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है जिसका आयोजन आषाढ़ मास के शुक्ल की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।
जगन्नाथ भगवान का मंदिर एवं रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ का भव्य एवं मनोहर मंदिर ओडिशा के पुरी राज्य में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ है जगत के स्वामी यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण जी को समर्पित है तथा प्रत्येक वर्ष इस मंदिर का वार्षिक रथयात्रा निकाला जाता है। जो बहुत ही भव्य प्रसिद्ध एवं मनमोहक होता है। इस यात्रा में मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा की अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों मे विराजमान कराकर नगर की यात्रा को निकालते है।
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