भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों का वर्णन क्यों लिया था भगवान विष्णु जी नें अलग-अलग अवतार ?

जब-जब हमारी पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान विष्णु अवतार लेकर हमारे जीवन में आये हुए सभी संकट को दूर कर देते हैं। भगवान विष्णु और भगवान शिव जी ने कई बार हमारी पृथ्वी को संकट से बचाने के लिए अवतार लिया था। यहाँ पर भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। इनमें से 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं और 24 वाँ अवतार भगवान विष्णु जी के कल्कि अवतार के रूप में आना बाकी है। अतः इन 24 अवतारों में से 10 अवतार भगवान विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते है जो की निम्न हैं इनमें से वामन अवतार, मत्स्य अवतार, नृसिंह अवतार, कूर्म अवतार, वामन अवतार, राम अवतार, परशुराम अवतार, बुद्ध अवतार, कृष्ण अवतार और कल्कि अवतार। भगवान श्री विष्णु जी ने मनुष्य जाति के कल्याण और अधर्मियों का नाश करने तथा धर्म की रक्षा के लिए यह सभी अवतार लिये हुए हैं।

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श्री सनकादि मुनि अवतार

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी का पहला रूप श्री सनकादि मुनि अवतार था। इसके अनुसार सृष्टि के आरंभ के लिए लोक पितामह भगवान ब्रह्मा जी ने कई अन्य लोकों की रचना के लिए घोर तपस्या की अतः भगवान ब्रह्मा जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जीने (तप) के अर्थ वाले सन नाम से जुड़े हुए शब्दों के द्वारा सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार इन चार नामों वाले मुनियों के रुप में अवतार था। ये चारों ही प्रकृति के शुरुआती काल से ही मोक्ष मार्ग की समाप्ति तथा ध्यान में मग्न रहने वाले बिना कभी दूषित हुए एवं वैराग्य मुक्त थे और यही भगवान विष्णु जी के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं।

भगवान विष्णु का वराह अवतार

भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों का वर्णन क्यों लिया था भगवान विष्णु जी नें अलग-अलग अवतार ? 1

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी ने पृथ्वी पर दूसरा अवतार एक वराह रूप में लिया था। जब प्राचीन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने हमारी पृथ्वी जिसपर जीवन है उसे समुंद्र के अन्दर ले जाकर छुपा दिया था। तब भगवान ब्रह्मा जी की नाक से भगवान विष्णु जी अपने वराह अवतार के रुप में धरती पर प्रकट हुए थे। भगवान विष्णु जी के इस रूप को देखकर सभी देवी- देवता आश्चर्यचकित हुए और सभी देवताओं और ऋषिमुनियों ने उनकी स्तुति की। सभी लोगों के कहेनुसार भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूँढ निकाला और अपने मुँह की सहायता से अपने दाँतों पर पृथ्वी को रखकर बाहर ले आये। हिरण्याक्ष के ललकारने पर दोनों में भीषण युद्ध हो गया। अंत में हिरण्याक्ष का वध कर अपने खुरो से जल को स्थिर कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।

भगवान विष्णु का नारद अवतार

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धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार माना यह जाता है कि देवर्षि नारद जी भी भगवान श्री विष्णु जी के ही अवतार है ऐसा इसलिए क्योंकि शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि नारद मुनि ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक हैं उन्होंने भी अपने कठिन तपस्या से देवर्षि पद की प्राप्ति की थी इसलिए नारद जी भी भगवान श्री विष्णु जी के प्रिय भक्तों में से एक माने जाते हैं। नारद जी इस सृष्टि पर धर्म के प्रचार तथा अपने चारो ओर लोक कल्याण करने के लिए हमेशा प्रयत्न शील रहते हैं। शास्त्रों मे विष्णु जी के नारद अवतार को सभी देवी-देवताओं का मन भी कहा गया है। आपको बता दें श्रीमदभागवतगीता के दशम अध्याय के 26 वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण में लिखा है देवर्षीणाम्चनारदः अर्थात सभी देव ऋषियों में मैं ही नारद मुनि हूँ ।

भगवान विष्णु जी का नर-नारायण अवतार

प्राचीन समय की मान्यता के अनुसार इस सृष्टि के आरंभ में भगवान श्री विष्णु जी ने धर्म की स्थापना करने के लिए उन्होंने दो रूपों में अवतार लिया था.. अपने इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किये हुए हैं उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र और उनके वृक्ष स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। यूँ कहें तो उनका सम्पूर्ण वेष तपस्वियों के समान था। इसलिए धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी ने अपने दो रूप नर और नारायण के रूप में अवतार लिया ।

भगवान विष्णु जी का कपिल मुनि अवतार

भगवान श्री विष्णु जी ने अपने 24 अवतारों में से पाँचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया था इनके पिता जी का नाम महर्षि कर्दम और माता का नाम देवहुति था। आपको बता दें भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं भगवान विष्णु जी के अवतार यानि कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं। भगवान कपिल के अत्यधिक क्रोध के कारण ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र पूरी तरह से भस्म हो गये थे।

भगवान श्री विष्णु जी का दत्तात्रेय अवतार

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भी भगवान श्री विष्णु जी के 24 अवतारों में से एक हैं इनकी कहानी कुछ इस प्रकार से है कि एक बार माँ लक्ष्मी, माँ पार्वती और माँ सरस्वती को अपने पतिव्रता होने पर बहुत घमंड हो गया इसी कारणवश देवताओं ने इन तीनो के ही अहंकार को नष्ट करने की लीला रची। एक बार ऋषि नारदमुनि घूमते-घूमते देवलोक में तीनो देवीयों के पास बारी-बारी जाकर यह कहने लगे कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं है उसके बाद उन्होंने अपने स्वामियों से यह बात कही और कृपा करके उसी क्षण कहा कि कृपा करके अनुसूइया के पतिव्रता होने की परीक्षा लें। तभी भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा तीनों ही साधु का वेश बदलकर ऋषि अत्रि मुनि के आश्रम आये, उस समय ऋषि अत्रि उस आश्रम में नहीं थे। तभी तीनों साधुओं ने अनुसूइया से भिक्षा मांगी और कहा कि लेकिन तुम्हे निर्वस्त्र होकर ही हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूइया यह सुनकर चैंक गई फिर साधुओं का अपमान न हो यह सोचकर अपने पति का स्मरण करके बोली की यदि मेरा पतिव्रता धर्म सत्य है तो यहाँ पर उपस्थित तीनों ही साधु छहः मास के शिशु हो जाएं। यह सुनते ही तीनों देव शिशु होकर रोने लगे तभी अनुसूईया माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झुलाने लगी। जब त्रिदेव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो तीनों देवियां क्रोधित हो गई तभी ऋषि नारद ने वहाँ आकर तीनों देवियों को यह बात बताई। तीनो देवियों ने अनुसूइया से क्षमा माँगी। और देवी अनुसूइया ने त्रिदेवों को अपने पूर्व रूप में कर दिया। उसके बाद तीनो देव प्रसन्न होकर बोले की हम तीनो अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से ही पुत्र रूप मे जन्म लेंगे। तभी से अनुसूइया के पुत्र के रूप में ब्रह्मा जी के अंश से चन्द्रमा, शंकर जी के अंश से दुर्वासा और विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय का जन्म उनके छठवे अवतार के रूप में हुआ।

भगवान श्री विष्णु जी का यज्ञ अवतार

भगवान श्री विष्णु जी के सातवें अवतार के रूप में यज्ञ का जन्म हुआ। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सातवें अवतार के रूप में यज्ञ का जन्म स्वायम्भु मन्वन्तर में हुआ था। मान्यता के अनुसार स्वायम्भु मनु की पत्नी यानि शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ और वे रुचि प्रजापति की पत्नी हुईं इन्ही आकूति के यहाँ भगवान विष्णु जी भी यज्ञ नाम से अवतरित हुए थे। भगवान यज्ञ के विवाह के बाद उनकी पत्नी यानि दक्षिणा से बहुत ही तेजस्वी बारह पुत्रों का जन्म हुआ अतः इनसे जन्मे यहीं बारह पुत्र स्वायम्भुव मन्वन्तर मे याम नामक बारह देवता उसी समय से कहलाने लगे।

भगवान श्री विष्णु जी का ऋषभदेव अवतार

भगवान विष्णु जी ने अपने 24 अवतारों में 8 वें अवतार ऋषभदेव के रूप में जन्म लिया। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में महाराज नाभि की एक भी संतान नहीं थी। इसी कारण से महाराज नाभि ने अपनी पत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र, की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया और इसी यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान श्री विष्णु जी ने साक्षात दर्शन दिया और कहा तुम्हें क्या वरदान चाहिए मांगो तभी महाराज नाभि ने कहा की मेरी एक भी संतान नहीं है मुझे संतान प्राप्ति का वरदान दीजिए। तब भगवान विष्णु जी ने कहा कि मैं तुम्हारी यज्ञ और तपस्या से अत्यधिक प्रसन्न हूँ मैं हीे तुम्हारे यहाँ पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। वरदान देते ही भगवान विष्णु अदृश्य हो गये और उनके चले जाने के कुछ समय बाद ही महाराज नाभि के यहाँ पुत्र के रूप में जन्में अतः अपने पुत्र के अत्यंत ही सुंदर और सुगठित शरीर, कीर्ति, ऐश्वर्य, बल, पराक्रम और शूरवीरता इत्यादि गुणों को देखते हुए महाराज नाभि नें उसका नाम ऋषभ (यानि श्रेष्ठ) रखा।

भगवान श्री विष्णु जी का आदिराज पृथु अवतार

भगवान विष्णु जी के नौवें अवतार की बात करें तो अपने इस अवतार में भगवान श्री विष्णु आदिराज पृथ के रूप में उपस्थित है। धार्मिक ग्रन्थों और प्राचीन मान्यता के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ था उनके यहाँ पर एक वेन नामक पुत्र का जन्म हुआ और उसने अपने आगे भगवान को मानने से इनकार कर दिया और खुद की पूजा करने के लिए कहा तभी वहाँ पर उपस्थित सभी महान ऋषियों ने अपने मंत्र पूत कुशो से उसका वध कर डाला तभी महर्षियों ने राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया जिससे एक पृथु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल की आकृति वाला चिन्ह देखकर ही सभी ऋषियों नें बताया की हमारे इस पुत्र आदिराज पृथु के वेष में ही स्वयं श्री हरी का अंश पृथ्वी पर अवतरित हुआ है।

भगवान श्री विष्णु जी का मत्स्य अवतार

भगवान श्री विष्णु जी के मत्स्य अवतार की बात करें तो भगवान विष्णु जी ने इस पूरी सृष्टि को इस प्रलय से बचाने के लिए अपने दसवें अवतार यानि मत्स्य अवतार के रूप में जन्म लिया था। इनके इस अवतार की धार्मिक कथाओं के अनुसार एक राजा सत्यव्रत थे वह एक दिन नदी में स्नान करके जल से ही भगवान को जलांजलि दे रहे थे तभी उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली अचानक से आ गई तभी उन्होंने सोचा की मैं वापस उस मछली को उस नदी में डाल देता हैं। तब उनके हाथ में आई मछली ने बोला कृपया करके मुझे वापस से जल में मत डालिए अन्यथा वह बड़ी मछलियां मुझे खा जायेंगी। यह सुनते ही राजा सत्यव्रत नें उस मछली को एक कमंडल में रख दिया देखते ही देखते वह मछली बड़ी हो गई तो उसे राजा ने अपने सरोवर में रख लिया। उसके बाद वह मछली और बड़ी होती गई, तब उस राजा को यह अहसास हुआ की हो न हो यह कोई साधारण मछली नहीं है। राजा ने उसे अपने वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की उसके बाद राजा की प्रार्थना सुनते ही वह मत्स्य चारभुजाओं वाले भगवान विष्णु जी प्रकट हो गये और उन्होंने कहा की यह मेरा दसवां अवतार अर्थात मत्स्य अवतार है। भगवान ने राजा सत्यव्रत से कहा कि आज से सात दिन बाद इस सृष्टि पर प्रलय होगी उसी समय मेरी विशाल नाव तुम्हारे पास आयेगी तुम सभी सप्त ऋषियों, औषधियों बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी तभी मैं अपने मत्स्य अवतार के रूप में तुम्हारे पास आऊँगा।

भगवान श्री विष्णु जी का कूर्म अवतार

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी का ग्यारहवां अवतार कूर्म यानि कछुए को अवतार समुंद्र मंथन भगवान विष्णु द्वारा सहायता प्राप्त था जो कि धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार कूर्म नाम के कछुए के रूप में प्रकट हुए थे। कभी-कभी भगवान विष्णु जी के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता है। भगवान विष्णु जी की इस कहानी के अनुसार ब्रह्माण्ड के राजा इंद्र को एक बार महर्षि दुर्वासा ने श्राप दिया था और वह उस समय बिना सिर के हो गये थे। भगवान इंद्र ने यह अनुरोध किया कि जब भगवान विष्णु जी उनके पास जाए तो समुद्र को हिला दें। फिर भगवान विष्णु जी के कहे अनुसार इन्द्र और सभी लोगों के साथ मिलकर समुद्र मंथन की तैयारी करते हैं भगवान विष्णु जी ने मंदराचल को समुद्र तट पर रखा उसके बाद सभी देवता और दैत्यों में मंदराचल को समुंद्र में डालकर नागराज वासुकि को मथानी चलाने की रस्सी बनाया। किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नही होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर ही भगवान विष्णु जी कछुए का रूप धारण करके समुंद्र में मंदराचल के आधार बन गए। इसी तरह से भगवान विष्णु जी के कूर्म यानि कछुए के अवतार मंे समुंद्र मंथन सम्पन्न हुआ।

भगवान श्री विष्णु जी का धन्वन्तरि अवतार

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी के बारहवें अवतार की बात करें तो जब समुंद्र में सभी देवी-देवताओं ने मिलकर समुंद्र मंथन किया तो उसमे से सबसे भयानक विष निकला जिसे भगवान शिव जी ने पृथ्वी पर लाया था। उस विष को शिव जी ने पी लिया उसके बाद सभी राक्षसों और दैत्यों ने एक साथ उसे हिलाया तब बारी-बारी से उसमें ऐश्रवा घोड़ा, मां लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, एक कल्पवृक्ष, अप्सराएं और कई अन्य रत्न समुंद्र मंथन के दौरान पानी से निकले। सबसे अंत में उस समुद्र से भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर उपस्थित हुए। मान्यता के अनुसार भगवान धन्वन्तरि को भगवान विष्णु जी का बारहवाँ अवतार माना जाता है साथ ही इन्हें सभी औषधियों का स्वामी भी कहा जाता है।

भगवान श्री विष्णु जी का मोहिनी अवतार

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार समुद्र मंथन होने के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत का घड़ा लेकर प्रकट हुए तभी सभी देवता और असुर उस अमृत को लेने के प्रयास में लग गये। यह देखते ही भगवान इंद्र का पुत्र जयंत अमृत का घड़ा लेकर भाग गया। तभी देवता और असुर दोनों ही उसके पीछे दौड़ पड़े जिसके कारण भयानक युद्ध हुआ। उसी समय सभी देवता भगवान विष्णु जी के पास गये और यह सारी बातें बताई तब जाकर भगवान विष्णु जी स्वयं अपने तेरहवें अवतार यानि मोहिनी अवतार में प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने अपने इस मोहिनी रूप में सभी को मोहित कर रखा था। उसके बाद मोहिनी ने सभी देवता और असुरों की बात सुनी और कहा कि यदि आप सबने मुझे अमृत का यह पात्र दे दिया तो मैं बारी-बारी से सभी देवता और असुरों को अमृत पिलाऊँगी तब मोहिनी ने चालाकी से सभी देवताओं को अमृत पिलाया। इस तरह ने भगवान विष्णु जी ने अपने मोहिनी अवतार में आकर सभी देवताओं का भला किया।

भगवान श्री विष्णु जी का नृसिंह अवतार

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी के चौदहवाँ अवतार नृसिंह अवतार की बात करें तो अपने नरसिंह अवतार में आकर भगवान विष्णु जी ने राक्षसों के राजा कहे जाने वाले हिरण्यकशिपु का वध किया था। इनकी इस कथा के अनुसार एक बार हिरण्यकशिपु ने भगवान को पछाड़ने की पूरी कोशिश की थी। जबकि उसे न किसी भी व्यक्ति, देवता, पक्षी या किसी जानवर न दिन, न रात, न आकाश में, नाहि किसी अस्त्र और शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज में भगवान विष्णु की पूजा करने पर दंडित किया जाता था परन्तु हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था। जब यह बात हिरण्यकशिपु को पता चली तो वह उग्र हो गया और अपनी बहन होलिका के साथ उसे अग्नि में बैठा दिया। तभी भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। हिरण्यकशिपु फिर से प्रह्लाद को मारने वाला ही था तभी भगवान विष्णु अपने नृसिंह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों द्वारा हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।

भगवान श्री विष्णु जी का वामन अवतार

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धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी ने अपने पंद्रहवें अवतार यानि वामन अवतार के रूप में जन्म लिया था। इसकी कहानी के अनुसार सतयुग मे प्रहलाद के पुत्र दैत्यराज बली ने स्वर्गलोक पर पूरी तरह से अधिकार कर लिया था। इस आपदा से मुक्ति पाने के लिए सभी देवी- देवता भगवान विष्णु जी के पास गये, तब उन्होंने कहा की मैं स्वयं ही देवी अदिति के गर्भ से जन्म लूँगा और इस पूरी सृष्टि में तुम्हें स्वर्ग का राज्य दूँगा। उसके कुछ समय बाद ही भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार लिया जब दैत्यराज बलि एक महत्वपूर्ण यज्ञ में व्यस्त थे तब भगवान वामन उनकी यज्ञशाला में गये और उन्होंने दैत्यराज से तीन पग भूमि मांगी। तभी राजा बलि के सलाहकार ने भगवान की लीला पहचान ली और राजा बलि को कुछ भी देने से मना कर दिया। परन्तु भगवान वामन ने विशाल रूप धारण करके एक पग में धरती और दूसरे पग मे स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नही बचा तो दैत्यराज ने भगवान वामन को अपने सिर पर अपना पग रखने को कहा, भगवान के पग रखते ही वह सुतललोक पहुंच गया। बली की दानवीरता देखकर ही भगवान वामन ने उसे सुतललोक का स्वामी बना दिया। ऐसे भगवान विष्णु जी अपने वामन अवतार में आकर सभी देवी-देवताओं की सहायता की और उन्हें स्वर्ग पुनः लौटा दिया।

भगवान श्री विष्णु जी का हयग्रीव अवतार

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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु जी के हयग्रीव अवतार के बारे में बात करें तो इस कथा के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो राक्षसों नें ब्रह्मा जी के पवित्र वेदों का हरण करके जमीन के नीचे अत्यन्त गड्ढ़ें में चले गये। वेदों के चोरी हो जाने के कारण भगवान ब्रह्माजी उदास अवस्था में भगवान विष्णु जी के पास पहुँचे, उनसे यह सारी बात बताने के बाद भगवान विष्णु अपने हयग्रीव अवतार में प्रकट हुए जिसमे की उनकी गर्दन और उनका मुख दोनों ही घोड़े के समान था। ब्रह्मा जी के कहेनुसार भगवान हयग्रीव उस रसताल में पहुंचे और उसी क्षण मधु और कैटभ नाम के राक्षसों का वध करके पुनः वह वेद भगवान ब्रह्मा जी को वापस कर दिये। इस तरह से भगवान विष्णु ने अपने इस हयग्रीव अवतार में वेदों की सुरक्षा की।

भगवान श्री विष्णु जी का श्री हरि अवतार

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री विष्णु जी के सत्रहवें अवतार की बात करंे तो इस कथा के अनुसार बहुत प्राचीन समय में एक त्रिकूट पर्वत के समीप तराई क्षेत्र, में एक बहुत ही शक्तिशाली गजेन्द्र अपने बहुत सारे हाथियों के साथ निवास करता था। एक बार वह अपनी हथिनियों के साथ तालाब में स्नान करने गया वहीं पर एक मगरमच्छ उसका पैर पकड़कर पानी में जोर से घसीटने लगा। गजेन्द्र और मगरमच्छ, दोनो ही आपस में लड़ने लगे, उसके बाद गजेन्द्र ने भगवान श्री हरि का स्मरण किया तो वह गजेन्द्र की स्तुति से भगवान विष्णु अपने श्रीहरि के अवतार में वहाँ पर उपस्थित हुए और उस मगरमच्छ को मारने के लिए उन्होंने अपने चक्र का उपयोग किया और उस मगरमच्छ का वध कर दिया। उसके बाद भगवान श्री हरि ने गजेन्द्र को बचाकर उसे अपना पार्षद बना लिया। इस तरह से उन्होंने अपने सत्रहवें अवतार यानि श्री हरि अवतार में गजेंद्र का उद्धार किया।

भगवान श्री विष्णु जी का परशुराम अवतार

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हिन्दू धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु जी के परशुराम अवतार की बात करें तो यह भगवान विष्णु जी के प्रमुख अवतारों में से एक माना जाता है। इनकी इस अवतार से सम्बन्धित कथा के अनुसार प्राचीन समय में महिष्मती नगर पर एक शक्तिशाली अर्जुन का शासन था यह बहुत ही ज्यादा घमंडी और सत्तावादी था। एक बार अग्निदेव ने उससे स्वयं को भोजन कराने का आग्रह किया। तभी अर्जुन ने अभिमान में आकर अग्निदेव से कहा कि आप कही से भी भोजन प्राप्त कर सकते हैं सभी ओर मेरा ही राज है। यह सुनते ही अग्निदेव क्रोध में आ गये और क्रोधित होकर उन्होंने वनों को जलाना शुरू कर दिया। एक वन में ऋषि मुनि तपस्या कर रहे थे उन्होंने उनके आश्रम को भी पूरी तरह से जला डाला। इस बात से क्रोधित होते हुए ऋषि मुनि ने अर्जुन को यह कहते हुए श्राप दिया की भगवान विष्णु अपने परशुराम अवतार में जन्म लेंगे तो न केवल अर्जुन को बल्कि सभी क्षत्रियों का भी वध कर देंगे। इसलिए भगवान श्री विष्णु जी ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवे पुत्र के रुप में अपने अट्ठारहवें अवतार में जन्म लियें।

भगवान श्री विष्णु जी का महर्षि वेदव्यास अवतार

धार्मिक ग्रन्थों तथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री विष्णु जी के महर्षि वेदव्यास अवतार को विष्णु जी का अंश माना गया है। भगवान विष्णु जी के इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु जी ने प्रसिद्ध गुरु महार्षि पराशर का रूप धारण किया था। इस अवतार में उनका जन्म यम द्वीप पर कैवर्तराज के पुत्र के रूप में सत्यवती से हुआ था। उस समय उनका शरीर बिल्कुल काला था जिसके कारण उन्हें दूसरा नाम कृष्ण द्वैपायन भी मिला था। कहा यह जाता है कि उस समय के पवित्र वेदों का विभाजन उनके द्वारा उस समय के अधिकार क्षेत्र और पड़ने वाले प्रभावों को भी ध्यान में रखते हुए किया गया था। जिसके कारण उन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है। भगवान विष्णु अपने इस उन्नीसवें अवतार में आकर महाभारत ग्रंथ की भी रचना की।

भगवान श्री विष्णु जी का हंस अवतार

भगवान विष्णु जी के बीसवंे अवतार हंस अवतार की बात करें तो धार्मिक ग्रन्थों के इस कहानी के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा जी अपनी सभा में विराजमान थे। उसी समय ब्रह्मा जी के पुत्र सनकादि वहाँ पहुँचे और इस सृष्टि पर उपस्थित सभी मनुष्यों की मोक्ष प्राप्ति को लेकर चर्चा करने लगे। तभी भगवान विष्णु जी अपने बीसवें यानि हंस अवतार में उपस्थित हुए और ब्रह्मा जी के पुत्र की सारी गलतफहमियों को दूर किया। इसके बाद वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने भगवान विष्णु जी के हंस अवतार की पूजा की। उसके बाद भगवान विष्णु वहाँ से अदृश्य होकर सभी से दूर अपने परमधाम चले गये। अपने इस अवतार में आकर भगवान विष्णु जी ने सभी की गलतफहमियाँ दूर की।

भगवान श्री विष्णु जी का श्रीराम अवतार

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धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी के श्रीराम अवतार की बात करें तो त्रेतायुग में एक अत्यन्त ही भयानक राक्षसराज रावण का आतंक बहुत भयानक गया था जिसके कारण सभी देवी देवता भी इस आदमी से डरते थे। अतः इसी दुष्ट राक्षस का वध करने के लिए भगवान विष्णु जी ने राजा दशरथ के दरबार में माँ कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया था। भगवान विष्णु जी ने अपने इस राम अवतार में आकर सभी राक्षसों के पराजित करके अपनी मर्यादा को बनाये रखा। उसके बाद अपने पिता दशरथ के अनुरोध पर प्रभु श्री राम वनवास जा ही रहे थे कि तभी उस राक्षस रावण ने उनकी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया। जब भगवान विष्णु अपने इस अवतार में माता सीता की खोज में लंका पहुंचे तो उन्होंने रावण को एक युद्ध में उलझा दिया जिसके परिणामस्वरूप अपने इस अवतार में उन्होंने रावण का वध किया। भगवान श्री विष्णु जी ने अपने इक्कीसवें अवतार यानि श्रीराम अवतार में आकर सभी देवी-देवताओं को उनके भय से मुक्त कर दिया।

भगवान श्री विष्णु जी का श्रीकृष्ण अवतार

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धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी ने अपने बाइसवें अवतार यानि श्रीकृष्ण अवतार में आकर द्वापर युग के सभी अधर्मियों का नाश किया था। इनके इस अवतार की कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के अवतार में भगवान विष्णु जी का जन्म कारागार में हुआ था उनके पिता वासुदेव तथा उनकी माता देवकी थी। अपने इस अवतार में श्रीकृष्ण में सभी बुराइयों का नाश करके अद्भुत चमत्कार किया था। अपने इस रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया था। महाभारत के समय उस युद्ध में अर्जुन के सारथी बने और इस पूरी दुनियाभर में गीता के उपदेशों का प्रचार प्रसार किया। भगवान विष्णु जी के सभी अवतारों में से यह अवतार सबसे अच्छा माना जाता है। अपने इस अवतार में भगवान विष्णु ने बहुतों का उद्धार किया।

भगवान श्री विष्णु जी का बुद्ध अवतार

भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों का वर्णन क्यों लिया था भगवान विष्णु जी नें अलग-अलग अवतार ? 7

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी के बुद्ध अवतार की बात करें तो इस रूप में भगवान अपने तेइसवें रूप अचानक में प्रकट हुए थे। इस अवतार की कथा के अनुसार दैत्यों की शक्ति अचानक से बहुत बढ़ गई थी यहाँ तक की सभी देवी देवता भी उनके भय से भागने लगे थे। अतः अपने राज्य की कामना हेतु दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा की साम्राज्य स्थिर रहने का कोई उपाय बताओ तब उन्होंने कहा कि एक स्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण करना पड़ेगा। दैत्यों ने उनकी बात नानी और महायज्ञ करने लगे जिसके कारण उनकी शक्ति अत्यधिक बढ़ने लगी सभी देवी-देवता उसी समय भगवान विष्णु जी के पास गये और सभी देवताओं के हित के लिए भगवान विष्णु ने अपना तेइसवां अवतार बुद्ध अवतार धारण किया। इस प्रकार भगवान बुद्ध जी दैत्यों के पास पहुंचे और अपने शब्दों में उन्होंने यह उपदेश दिया की यज्ञ करना पाप है। यज्ञ की अग्नि से सभी प्राणी भस्म हो जाते है यह उपदेश सुनते ही सभी के दैत्य प्रभावित हुए और उन्होंने यज्ञ का आचरण करना छोड़ दिया। जिसके परिणामस्वरूप उनकी शक्तियाँ और उन्होंने यज्ञ न कर पाने के कारण बहुत कम हो गई और सभी देवी-देवताओं ने उन दैल्यों पर आसानी से हमला करके अपना राज्य पाठ वापस ले लिया। इस तरह से भगवान विष्णु जी ने अपने तेइसवें अवतार में आकर सभी देवताओं का उद्धार किया।

भगवान श्री विष्णु जी का कल्कि अवतार

भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों का वर्णन क्यों लिया था भगवान विष्णु जी नें अलग-अलग अवतार ? 8

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु जी के चैबीसवें और अंतिम अवतार की बात करें तो, कलयुग में भगवान श्री विष्णु अपने कल्कि अवतार के रूप में जन्म लेंगे। यह अवतार आने वाले समय के कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। भगवान विष्णु जी का यह अवतार अत्यन्त शक्तिशाली और 64 कलाओं से युक्त होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयथा नाम के तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि नाम के पुत्र के रूप में जन्म होगा। भगवान विष्णु अपने इस चैबीसवें अवतार में कल्किया देवदत्त नाम के घोड़े पर उपस्थित होकर इस सृष्टि पर जितने भी पापी है उन सभी का विनाश करके अपने धर्म की पुनः स्थापना करेंगे जिससे आयी हुई जीवन की सभी समस्याएं दूर होंगी।

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