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मां पार्वती का अन्नपूर्णा रूप पृथ्वी पर कैसे प्रकट हुआ? जाने इसकी पूजा विधि, महत्व, पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्त विस्तार से, ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा जी के अनुसारः

मां पार्वती का अन्नपूर्णा रूप पृथ्वी पर कैसे प्रकट हुआ? जाने इसकी पूजा विधि, महत्व, पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्त विस्तार से, ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा जी के अनुसारः

मां पार्वती का अन्नपूर्णा रूप पृथ्वी पर कैसे प्रकट हुआ? जाने इसकी पूजा विधि, महत्व, पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्त विस्तार से, ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा जी के अनुसारः

सनातन धर्म के अनुसार, मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन मां पार्वती का अन्नपूर्णा रूप पृथ्वी पर प्रकट हुआ था। इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से जीवन में अन्न की कभी कमी नहीं होती साथ ही घर में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहती है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक मां अन्नपूर्णा की पूजा करता है, उसके घर में अन्न का भंडार कभी समाप्त नहीं होता। इसके साथ ही, उसे शुभ फल की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में हर कठिनाईयाँ दूर होती हैं। इस दिन की पूजा से न केवल भौतिक समृद्धि मिलती है, बल्कि मानसिक शांति और आंतरिक संतोष भी प्राप्त होता है।

अन्नपूर्णा जयंती का महत्वः

अन्नपूर्णा देवी को भोजन की देवी और अन्नदात्री के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि मां अन्नपूर्णा अपने भक्तों को कभी भूखा नहीं रहने देतीं और उनकी आवश्यकता के अनुसार अन्न और समृद्धि प्रदान करती हैं। अन्नपूर्णा देवी की पूजा से न केवल भौतिक सुख मिलता है, बल्कि यह मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी खुलता है।अन्नपूर्णा जयंती का आयोजन न केवल देवी की पूजा का अवसर होता है, बल्कि यह जीवन में आंतरिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति का भी समय होता है। इस दिन मंदिरों में अन्न, मिठाई और अन्य खाद्य पदार्थों का भोग अर्पित किया जाता है, जिससे घर में समृद्धि और अन्न का भंडार बना रहता है।

अन्नपूर्णा जयंती के दिन पूजा करने के लाभः

अन्नपूर्णा जयंती के दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। प्रमुख लाभ इस प्रकार हैंः

अन्नपूर्णा जयंती की पौराणिक कथाः

मां पार्वती का अन्नपूर्णा रूप पृथ्वी पर कैसे प्रकट हुआ? जाने इसकी पूजा विधि, महत्व, पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्त विस्तार से, ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा जी के अनुसारः
मां पार्वती का अन्नपूर्णा रूप पृथ्वी पर कैसे प्रकट हुआ? जाने इसकी पूजा विधि, महत्व, पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्त विस्तार से, ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा जी के अनुसारः

अन्नपूर्णा जयंती से जुड़ी एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर भीषण सूखा पड़ा था। सूखा पड़ने के कारण धरती बंजर हो गई और फसलें सूखकर नष्ट हो गईं। इसके परिणामस्वरूप अन्न और जल की भारी कमी हो गई और समस्त पृथ्वीवासियों के जीवन में संकट छा गया। चारों ओर अन्न-जल के अभाव से हाहाकार मच गया और सभी लोग परेशान हो गए।
ऐसे में, सभी पृथ्वीवासियों नें त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) की पूजा करना शुरू किया ताकि वे उन्हें इस संकट से उबार सकें। उस समय, मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान शिव भिक्षुक के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए। वहीं, माता पार्वती नें अन्नपूर्णा रूप में अवतार लिया।
भगवान शिव भिक्षुक के रूप में देवी अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगने आए। देवी अन्नपूर्णा नें उन्हें प्रसन्न होकर दान स्वरूप अन्न दिया। इस अन्न को भगवान शिव नें पृथ्वीवासियों में वितरित किया। यह अन्न कृषि कार्य के लिए उपयोग किया गया, जिससे धीरे-धीरे धरती फिर से अन्न से भरने लगी और सूखा समाप्त हुआ।इस प्रकार, मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को देवी अन्नपूर्णा के अवतरण के रूप में मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन को देवी अन्नपूर्णा के आशीर्वाद का दिन माना जाता है।

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अन्नपूर्णा जयंती पूजन विधिः

मां अन्नपूर्णा की पूजा करते समय करें इन मंत्रों का विधिपूर्वक जापः

¬ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नमः ।।
¬सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यः सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ।।
¬ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।

इन मंत्रों को नित्य 1 माला जपें और बतौर अनुष्ठान 10 हजार, 1.25 लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं।

मां अन्नपूर्णा की आरती :

बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके,
कहां उसे विश्राम ।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो,
लेत होत सब काम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर,
कालान्तर तक नाम ।
सुर सुरों की रचना करती,
कहाँ कृष्ण कहाँ राम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
चूमहि चरण चतुर चतुरानन,
चारु चक्रधर श्याम ।
चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर,
शोभा लखहि ललाम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
देवि देव! दयनीय दशा में,
दया-दया तब नाम ।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल,
शरण रूप तब धाम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
श्रीं, ह््रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या,
श्री क्लीं कमला काम ।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी,
वर दे तू निष्काम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
॥माता अन्नपूर्णा की जय ॥

अन्नपूर्णा जयंती शुभ मुहूर्तः

अन्नपूर्णा जयन्ती 15 दिसम्बर 2024 को रविवार के दिन मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ -14 दिसम्बर 2024 शाम 04ः 58 मिनट से,
पूर्णिमा तिथि समाप्त -15 दिसम्बर2024 दोपहर 02ः 31 मिनट पर।

मां अन्नपूर्णा से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

मां अन्नपूर्णा कौन हैं?
मां अन्नपूर्णा भोजन और समृद्धि की देवी हैं, जो अपने भक्तों को कभी भूखा नहीं रहने देतीं।
अन्नपूर्णा जयंती कब मनाई जाती है?
अन्नपूर्णा जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।
मां अन्नपूर्णा की पूजा का क्या महत्व है?
मां अन्नपूर्णा की पूजा से घर में अन्न की कोई कमी नहीं होती और समृद्धि का वास होता है।
मां अन्नपूर्णा का मुख्य रूप क्या है?
मां अन्नपूर्णा का रूप अन्न और भोजन का वितरण करने वाली देवी के रूप में माना जाता है।
मां अन्नपूर्णा की पूजा से क्या लाभ होते हैं?
मां अन्नपूर्णा की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि, संतोष और अन्न की पर्याप्तता बनी रहती है।
मां अन्नपूर्णा के प्रमुख भक्त कौन थे?
भगवान शिव, क्योंकि भगवान शिव नें भी मां अन्नपूर्णा से अन्न प्राप्त किया था, जब धरती पर अकाल पड़ा था।
मां अन्नपूर्णा के साथ किस देवता की पूजा की जाती है?
मां अन्नपूर्णा के साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है।

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