माघ पूर्णिमा माघ मास के आखिरी दिन होता है, माघ पूर्णिमा के अगले दिन से फाल्गुन मास की शुरुआत होती है, माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा भी कहा जाता है, माघ पूर्णिमा के दिन व्रत रखने वाले मनुष्य पर भगवान हरि प्रसन्न रहते है और उन्हें सुख सौभाग्य, धन-संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है, माघी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओ में होता है। मान्यता ऐसी है कि माघ पूर्णिमा पर जगत के पालनकर्ता भगवान श्री हरि और हनुमान जी कीे पूजा करने से सुखो की प्राप्ति होती है कहा जाता है कि अगर माघ पूर्णिमा के दिन दान किया जाय तो बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है जिसके कारण इसको बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है, माघी पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण करने और उनके नाम का दान करने से पितरों का तर्पण करने और उनके नाम का दान करने से पितरो का दोबारा आशीर्वाद बना रहता है, मान्यता यह है कि माघ के महीने मे देवता का पृथ्वी पर आगमन होता है और वो मनुष्य रुप धारण करके प्रयाग मे स्नान दान और जाप करते है माघ के महीने मे माघ मेला का भी आयोजन होता है, माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास का जयंती भी मनाया जाता है, माघ पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर अमृत की वर्षा करते है और लोगो को यश भी प्रदान करते है।
माघ पूर्णिमा व्रत कथाः-
कांतिका नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम धनेश्वर था, ब्राह्मण की पत्नी सुन्दर सुशील और पतिव्रता थी परन्तु उन्हें कोई संतान नही थी जिसके वजह से वो अत्यन्त दुःखी रहते थे। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई परन्तु सभी लोगो ने उसे बांझ बोलकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया तभी किसी ने उसे ब्रह्ाणी को 16 दिन तक माँ काली की पूजा करने को कहा उनके कथन के अनुसार ब्राह्मण पति-पत्नी ने वैसा ही किया। ब्राह्मण दम्पति के आराधना से खुश होकर 16 दिन बाद देवी काली प्रकट हुई उन्होंने माँ काली ब्राह्मण के पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया और उन्होने यह भी बोला कि ब्राह्मण दम्पति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो, माँ काली ने कहा कि उन्हें (ब्राह्मण दम्पति) बताया कि प्रत्येक पूर्णिमा एक दीपक जलाना है इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को दीपक बढ़ाना है जब तक दीपको की संख्या 32 न हो जाए तथा आटे की दीपक शिव जी के समक्ष भी जलाना है, माँ काली ने बताया कि पूजा-स्थान के आस-पास ही आपको आम का वृक्ष दिखाई देगा। ब्राह्मण नेे अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया, उसकी पत्नी ने श्रद्धा पूर्वक पूजा की और वह गर्भवती हो गई माता काली के कृपा से ब्राह्मण दम्पति के घर एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम देवदास रखा है। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसको मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया, काशी मे दुर्घटना के दौरान उसका धोखे से विवाह हो गया, देवदास ने वहाँ उपस्थित लोगो को बताया कि वह अल्प आयु है परन्तु फिर भी उसका विवाह जबरदस्ती करवा दिया गया कुछ समय पश्चात देवदास के प्राण हरने काल आया लेकिन ब्राह्मण दम्पति ने उस दिन पूर्णिमा का व्रत रखा था। इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नही पाया तभी से मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से संकट से मुक्ति मिलती है तथा भक्तो की सभी मनोरथे पूर्ण होती है।
माघ पूर्णिमा व्रत नियमः-
☸माघ पूर्णिमा के दिन व्यक्ति को नदी के तट पर प्रातः काल स्नान करना चाहिए।
☸ स्नान के पश्चात् सूर्य को मंत्र उच्चारण के साथ जल अर्पित करना चाहिए।
☸ सूर्य मंत्रः- ज्योति धाम सविता प्रबल तुमरे तेज प्रताप छार-छार है जल बहै, जनम-जनम गम पाप
☸ इसके बाद माघ पूर्णिमा व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए।
☸ माघ पूर्णिमा के दिन अगर सम्भव है तो गरीबो को वस्त्र दान करना चाहिए।
माघ पूर्णिमा व्रत का महत्वः-
☸ माघी पूर्णिमा पर तीर्थ की नदियों में स्नान का अत्यधिक महत्व है।
☸ माघ मास की पूर्णिमा पर चन्द्रमा मघा नक्षत्र में होता है तथा सिंह राशि में स्थित होता है इसलिए इस मास को माघ की संज्ञा दी गई है।
☸ तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास की परम्परा है एक महीने तक हजारों लोग संगम किनारे रहकर व्रत और प्रतिदिन संगम में स्नान करते है।
☸ शास्त्रों मे यह भी बताया गया कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र में हो तो इस तिथि का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
☸ माघी पूर्णिमा के दिन जो व्यक्ति गंगा में स्नान करता है उसकी सभी मनोरथे पूर्ण होती है तथा उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है।
☸ मान्यता है कि पूर्णिमा पर देवता भी रुप बदलकर गंगा स्नान के लिए आते है, गंगाजल और अधिक पवित्र और शुभदायक हो जाता है इसलिए इस दिन का विशेष महत्व धर्म ग्रंथो में बताया गया है।
☸ माघ पूर्णिमा पर भक्त गंगा जी की आरती करते है और ब्राह्मणो को भोजन भी कराते है।
☸ कहा जाता है कि अगर माघी पूर्णिमा के दिन मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान किया जाय तो रोग दूर हो जाता है इस दिन तिल और कम्बल का दान करने से नरक लोक से मुक्ति मिलती है। यह माघ स्नान परम पुण्यशाली व्यक्ति को कृपा अनुग्रह से ही प्राप्त होता है।
माघ पूर्णिमा व्रत-पूजा विधिः-
☸ माघ पूर्णिमा के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुंआ या बावड़ी में स्नान करना चाहिए।
☸ स्नान के पश्चात् सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अघ्र्य देना चाहिए।
☸ उसके बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान श्री कृष्ण जी की पूजा-आराधना करें।
☸ उसके बाद गरीब व्यक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा देना चाहिए।
☸ दान में काले तिल विशेष रुप से दान में देना चाहिए।
माघ पूर्णिमा 2023 मुहूर्त एवं तिथिः-
2023 में माघ पूर्णिमा 05 फरवरी दिन रविवार को पड़ रहा है पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 04 फरवरी 2023 को रात्रि 09ः29 से हो रहा है तथा पूर्णिमा तिथि की समाप्ति 05 फरवरी 2023 को दोपहर 11ः58 पर हो रही है।