हिन्दु पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से जाना है। मार्गशीर्ष का माह मुख्यतः दान-पुण्य, धर्म-कर्म का माह माना गया है क्योंकि भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है ‘‘ महीनों में, र्माशीर्ष का पवित्र महीना हैं’’ ऐसी मान्यता है कि इस माह में ही सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। इस पूर्णिमा पर स्नान, दान एवं तप करना अत्यंत फलदायी सिद्ध होता। यह पूर्णिता बत्तीस पूर्णिमा या कोरला पूर्णिमा नाम से भी जानी जाती है मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन उपवास करने से सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है इस पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा विधि
☸ प्रातः काल उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या नहाने के पानी में गंगाजन मिलाकर स्नान करें।
☸ उसके बाद भगवान नारायण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें आज के दिन सफेद वस्त्र पहने तथा पूजा आरम्भ करने से पूर्व आचमन करें।
☸ उसके बाद ‘‘ओम नमोः नारायणः’’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान का स्मरण करें।
☸ भगवान का आवाहन करते हुए उन्हें पुष्य आसन एवं इत्र अर्पित करें पूजास्थल पर हवन के लिए एक वेदी का निर्माण करें। यज्ञ की पवित्र अग्नि में तेल, घी, शक्कर आदि की आहुति देकर हवन का कार्य सम्पन्न करें।
☸ हवन सम्पन्न होने के बाद भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें भक्तिभाव से व्रत का अर्पण करें।
☸ उपास को रात्रि में भगवान की मूर्ति के समक्ष ही शयन करना चाहिए।
☸ व्रत के अगले दिन ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराए तथा दान दें।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष पूर्णिमा प्रारम्भ तिथिः- 26 दिसम्बर प्रातः 05ः46 से
मार्गशीर्ष पूर्णिमा समापन तिथिः- 27 दिसम्बर प्रातः 06ः02 तक