मोहिनी एकादशी कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है ? जाने इसका महत्व पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में मोहिनी एकादशी का पर्व भगवान विष्णु जी को समर्पित है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी के मोहिनी स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। मोहिनी एकादशी का पर्व प्रतिवर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु जी ने इसी दिन मोहिनी अवतार लेकर संपूर्ण सृष्टि को असुरों के दुष्प्रभाव से बचाया था। इसी कारण से इस दिन भगवान विष्णु जी के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु जी के मोहिनी रूप और उनकी पूजा-अर्चना करने से विष्णु जी के सभी भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है तथा उनके समस्त पापों और दुखों का भी नाश होता है।

मोहिनी एकादशी का महत्व

हिन्दू धर्म में मोहिनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान अमृत प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों में आपाधापी मच गई थी। उसी समय भगवान विष्णु जी ने अपना मोहिनी रूप धारण कर समस्त देवताओं को अमरत्व प्राप्त कराया था। कहा जाता है कि त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ के कहने पर प्रभु श्री राम जी ने इस व्रत को किया था। वास्तव में मोहिनी एकादशी का व्रत करने से सभी तरह के दुख का निवारण होता है तथा समस्त पापों को हरने के लिए यह व्रत सबसे उत्तम होता है। जो भक्त मोहिनी एकादशी के दिन व्रत रखते हैं वह भगवान विष्णु जी की कृपा से सभी प्रकार के मोह बंधनों और पापों से छूट कर अंत में बैकुण्ठ धाम को प्राप्त हो जाते हैं।

मोहिनी एकादशी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार सरस्वती नदी के पास भद्रावती नाम का एक सुन्दरनगर राज्य था। यहाँ भगवान श्री विष्णु जी का परम भक्त शासन किया करता था। उसके पाँच पुत्र थे जिनमें उनका पाँचवा पुत्र घृष्टबुद्धि अत्यधिक बुरे और अनैतिक कार्यों में शामिल होने वाला पापी था। अपने पुत्र के इस व्यवहार और बुरे कर्मों से तंग आकर उन्होंने अपने पुत्र को घर से बाहर निकाल दिया था। उसके बाद उनका पुत्र अपना जीवन यापन करने के लिए डकैती भी करने लगा। वह जंगल में रहता था। जंगल में ही भटकते हुए एक दिन घृष्टबुद्धि ऋषि कौडिन्य के आश्रम में जा पहुंचा। उस समय वैशाख का महीना था। ऋषि कौडिन्य स्नान कर रहे थे जिसमें से पानी की एक बूंद घृष्टबुद्धि पर पड़ गयी। उस पानी की बूंद के पड़ने के कारण घृष्टबुद्धि एक अत्यन्त ही आत्मसाक्षात्कार और अच्छी भावना वाला व्यक्ति बन गया और अपने पिछले किये गये अनैतिक कार्यों पर पछतावा भी किया। उसके बाद ऋषि कौडिन्य ने घृष्टबुद्धि को अपने पिछले पापों और बुरे कर्मों से मुक्त होने तथा अच्छा मागदर्शन प्राप्त करने के लिए अनुरोध किया और ऋषि ने घृष्टबुद्धि को भगवान विष्णु जी के मोहिनी एकादशी के व्रत का पालन करने को कहा जिससे उसे अपने किये हुए पापों से छुटकारा मिल सके। ऋषि की बात को ध्यानपूर्वक सुनकर घृष्टबुद्धि ने पूरी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु जी के मोहिनी स्वरूप मोहिनी एकादशी का व्रत रखा। उस व्रत को करते ही घृष्टबुद्धि के सारे पाप पूरी तरह से धूल गये और वह स्वयं अपने लोक से विष्णु लोक में जा पहुंचा।

मोहिनी एकादशी पूजा विधि

☸ मोहिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें।

☸ उसके बाद घर में स्थित मंदिर और पूजा स्थान की साफ-सफाई करने के बाद भगवान विष्णु जी के समक्ष घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें।

☸ उसके बाद भगवान विष्णु जी का गंगाजल से अभिषेक करके भगवान विष्णु जी को साफ-सुथरे वस्त्र पहनायें।

☸ उसके बाद भगवान विष्णु जी की धूप, दीप, अक्षत, रोली तथा माला से विधिपूर्वक पूजा करें।

☸ भगवान विष्णु जी को फल तथा मिठाई का भोग लगायें और उस भोग में माँ तुलसी जी की पत्ती अवश्य शामिल करें।

☸ उसके बाद आरती करके पूजा समाप्त कर भगवान विष्णु जी को लगाया हुआ भोग सभी में वितरित करें।

मोहिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

मोहिनी एकादशी 19 मई 2024 को रविवार के दिन मनाया जायेगा।
एकादशी तिथि प्रारम्भः- 18 मई 2024, सुबह 11ः22 मिनट से,
एकादशी तिथि समाप्तः- 19 मई 2024, दोपहर 01ः50 मिनट तक
पारण मुहूर्तः- 20 मई 2024, सुबह 05ः28 मिनट से, सुबह 08ः12 मिनट तक।

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