राहु की महादशा में अन्य ग्रहों की अन्तर्दशा का फल

राहु की महादशा में राहु के अन्तर्दशा का फल

शुभ:- जन्म कुण्डली में राहु उच्च राशि, मित्रक्षेत्री और शुभ ग्रहों से युक्त हो तो राहु शुभ ग्रहों की अपेक्षा अतीव शुभ फल प्रदान होता है। शुभ राहु की दशा-अन्तर्दशा में जातक आकस्मिक रुप से उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। बुद्धिमत्ता और विद्वता आती है। उच्चाधिकार मिलते है राजनीति में प्रवेश करता है। क्रोध एवं उत्साह में वृद्धि, कार्य-व्यवसाय का फैलाव एवं अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। वृषभ, मिथुन, कर्क व वृश्चिक राशि में राहु होने पर भी शुभ फल मिलता है।

अशुभ:- अशुभ राहु की दशा में जातक को अग्नि, विष, सांप आदि से भय रहता है। जातक अभक्ष्य-भक्षी बनता है। मित्र वर्ग से धोखा मिलता है, परिवार के सदस्यों को कष्ट और वात रोग तथा मन्दाग्नि से पीड़ित होता है।

राहु की महादशा में बृहस्पति के अन्तर्दशा का फल

शुभ:- राहु शुभ हो और इसकी महादशा में शुभ और बलवान बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तो जातक की चित्तवृत्ति सात्विक और बुद्धि प्रखर हो जाती है, उच्चाधिकारियों से प्रीति, स्वास्थ्य सुख, पद में उन्नति मिलती है। कार्य-व्यवसाय में प्रचुर लाभ मिलता है। दर्शन शास्त्र पढ़ने में रुचि बनती है, जातक दार्शनिक विचार धारा पूर्ण लेखन कर मान-सम्मान पाता है तथा अपने कार्य से समाज का दिशा-निर्देश करता है। जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती है। वैसे ही इस दशा में जातक के यश, धन-धान्य और कीर्ति की बढ़ोत्तरी होती है।

अशुभ:- अशुभ बृहस्पति की दशा में ज्येष्ठ भ्राता का नाश, राजकीय दण्ड़ मिलने की सम्भावना रहती है, गैस्ट्रिक ट्रबल, ह्दय रोग, मन्दाग्नि आदि से पीड़ा और धन-हानि होती है।

राहु की महादशा में शनि के अन्तर्दशा का फल

शुभ:-  शुभ राहु की दशा में शुभ व बलवान शनि की अन्तर्दशा व्यतीत हो तो जातक को काले पशुधन व काली वस्तुओं के व्यापार से लाभ, पशुवाहन की प्राप्ति होती है। समाज में और अपने वर्ग में सम्मान मिलता है। पश्चिम दिशा और म्लेच्छ वर्ग विशेष लाभदायक रहता है। जातक राजनीतिक कार्यों में पटु होता है तथा ग्रामसभा व पालिका का अध्यक्ष बनता है।

अशुभ:- अशुभ शनि की अन्तर्दशा में जातक अस्थिर गति, किसी अज्ञात पीड़ा से विकल, मलिन वस्त्र धारण कर इधर-उधर भटकता है। किसी परिजन की मृत्यु से मन दुःखी रहेगा। जातक आत्महत्या करने की कोशिश करता है। सर्प के काटने का भय बना रहता है तथा जातक को गठिया, वात रोग, भगन्दर आदि रोग हो जाते है।

राहु की महादशा में बुध के अन्तर्दशा का फल

शुभ:- शुभ राहु की महादशा में उच्च या शुभ प्रभावी बुध की महादशा चले तो जातक उत्तम विद्या प्राप्त कर लेता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलती है। जातक की चित्रवृत्ति स्थिर और बुद्धि सात्विक हो जाती है। अपने मित्रों, परिजनों से सहानुभूति बढ़ती है, आय के कई स्त्रोत बनते है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। उच्च राशि का बुध हो तो राजकीय सेवा में उच्च पद मिलता है। लेखन तथा उच्चवर्गीय लोगों से धन लाभ होता है। विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता मिलती है। जातक की चित्रवृत्ति स्थिर और बुद्धि सात्विक हो जाती है। अपने मित्रों, परिजनों से सहानुभूति बढ़ती है, आय के कई स्त्रोत बनते है। उच्च राशि का बुध हो तो राजकीय सेवा में उच्च पद मिलता है। लेखन तथा उच्च वर्गीय लोगो से धन लाभ होता है।
अशुभ:- अशुभ बुध की अन्तर्दशा में जातक घोर कष्ट पाता है, प्रत्येक कार्य में विफलता मिलती है, नौकरी में न उन्नति होती है न अवनति। राजकोष का भागी होना पड़ता है। अश्लील साहित्य की रचना से अपयश मिलता है। जातक असत्य भाषण करता है, देव-गुरु की निन्दा, दुष्ट बुद्धि, अपने कुकृत्यों से भाग्य हानि कर लेता है। चर्म रोग, वातरोग, फोड़ा-फुन्सी इत्यादि से पीड़ा होती है।

राहु की महादशा में केतु के अन्तर्दशा का फल

राहु की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का समय अशुभ होता है। कुछ एक शुभ फल जो मिलते भी है, वे गौण हो जाते है। जातक की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। नीच जनों की संगति कर दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति होती है। आजीविका का साधन नैतिक-अनैतिक कैसा भी हो सकता है। जातक पूर्वाजित धन को मदिरापान और जुआ आदि में पड़ कर खो देता है। घर में कलह का वातावरण बना रहता है। उदर पूर्ति के लिए भटकना पड़ता है, निर्धनता और रोगों के कारण मार्ग और विदेश में कष्ट भोगने पड़ते है। स्वजनों से विछोह हो जाता है। यदि केतु लग्न के स्वामी से युक्त या दृष्ट हो तो धन लाभ होता है। वृश्चिक राशि का केतु केन्द्र अथवा त्रिकोण में हो तो शुभ फल देता है।

राहु की महादशा में शुक्र के अन्तर्दशा का फल

शुभ:-  शुक्र कारक ग्रह हो, बलवान और शुभ प्रभाव में हो तो राहु महादशा में जब शुक्र का अन्तर होता है तो जातक को अनेक भोगोपभोग प्राप्त होते है। जातक का मन चंचल और सात्विक दोनो ही प्रकार का बन जाता है। जहां वह विलासिता का जीवन जीने की चार रखता है, वहीं धार्मिक ग्रंथों का श्रवण, अध्ययन तथा पूजा-अर्चना भी करता है।
अशुभ:- अशुभ जातक की अन्तर्दशा में जातक विलासिता की वस्तुओं का संग्रह करता है, खेल-तमाशें आदि को भी चाव से देखता है। अशुभ शुक्र के दशाकाल में जातक के सुख का नाश हो जाता है। स्वजनों से विरोध होता है सन्तान से दुख मिलता है। पास-पड़ोस से लड़ाई-झगड़ा, जिगर-तिल्ली में शोध, धातु क्षय, मन्दाग्नि आदि रोग हो जाते है। शुक्र अष्टमेश हो तो मृत्युसम कष्ट मिलता है।

राहु की महादशा में सूर्य के अन्तर्दशा का फल

शुभ:- राहु भी शुभ हो तथा सूर्य उच्च राशि, मूल त्रिकोण व स्वराशि का तथा बलवान शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो इनकी दशा-अन्तर्दशा मे जातक का कार्य-व्यवसाय बड़े क्षेत्र में फैलता है। राज कृपा से स्वल्प सुख, धन-धान्य में वृद्धि होती है। जातक राजनीति के क्षेत्र में मान पाता है तथा पैतृक सम्पत्ति भी मिलती है।

अशुभ:- अशुभ सूर्य की दशा में जातक के रुधिर में उष्णता बढ़ जाती है। क्रोध अधिक आता है अकारण किसी से भी झगड़ने की इच्छा होती है। पिता को कष्ट मिलता है। व्यापार में हानि, नौकरी में उच्चाधिकारियों से विरोध के कारण अवनति शिरो वेदना, वात रोग, नेत्र पीड़ा, गठिया जैसे रोग देह को पीड़ा देते है।

शुभ:- राहु शुभ राशि का शुभ प्रभावी होकर तृतीय, षष्ठ, एकादशा, नवम व दशम में हो तथा चन्द्रमा पूर्ण बली, शुभ ग्रह युक्त व दृष्ट हो तो राहु की महादशा में जब चन्द्रमा की अन्तर्दशा चलती है तो जातक ललित कला के क्षेत्र में उन्नति करता है तथा राज्यस्तरीय सम्मान पाता है। बुद्धि स्थिर व विचार धार्मिक होते है। श्वेत खाद्य पदार्थों को विशेष रुप से प्राप्त कर लेता है। जैसेः- दूध, दही, खोवा आदि सबके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

राहु का विपरीत परिणाम चन्द्रमा की अन्तर्दशा में

अशुभ और क्षीणबली चन्द्रमा की दशा में जातक वात के कुपित हो जाने से मानसिक एवं शारीरिक कष्ट भोगता है। भूत-पिशाच आदि से मन में भय उत्पन्न होता है। वायुजनित रोग एवं शीत ज्वर से पीड़ा मिलती है। देह में जल का संचय अधिक होने से मोटापा आता है।

राहु की महादशा में मंगल के अन्तर्दशा का फल

जब मंगल उच्च या स्वगृही होकर केन्द्र, त्रिकोण लाभस्थान में शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होकर स्थित हो तो राहु महादशा अपनी अन्तर्दशा में बन्धु वर्ग का उत्थान तथा जातक को उनसे लाभ दिलवाती है। जातक परम उत्साही होकर शत्रु का मान मर्दन कर देता है।

राहु का विपरीत परिणाम मंगल की अन्तर्दशा में

अशुभ मंगल की दशा में दोनो ग्रहों में एक शुभ और एक अशुभ हो तो नाना प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो जाती है। दोनों ही अशुभ स्थिति में क्षेत्र बन्धुवर्ग का नाश, पुत्र सुख में कमी, चोर, सर्प, अग्नि का भय, दुर्घटना से देहपीड़ा व समाज में तिरस्कार पाता है। उदर पूर्ति के लाले पड़ जाते है। जीवन भार लगने लगता है। आत्मघात की इच्छा होती है। मंगल अष्टमेश से सम्बन्धित हो तो मृत्यु अथवा मृत्युसम कष्ट मिलता है।

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