वायव्यभिमुख भवन के शुभाशुभ परिणाम

उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा स्थिति है। वायव्य कोण के स्वामी वायु देव है। इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता रहती है यह दिशा वायु का स्थान है। अतः भवन निर्माण में गोशाला बेड रुम और गैरेज का निर्माण इसी दिशा में करवाना चाहिए इसका शुभ अशुभ प्रभाव परिवार की स्त्रियों तथा संतान पर पड़ता है यह दिशा घर के सदस्यों के मानसिक अवस्था पर अपना असर डालती है। इस दिशा में खिडकियों का बनवाना लाभदायी होता है जैसे ही इस दिशा में हवा भवन मे प्रवेश करती है वैसे ही इस दिशा में बाहरी लोगो से आपके सम्बन्ध बनते है इसलिए आप इस दिशा को दुषित न रखें इस स्थान पर कभी भी कुड़ा करकट न डालें।

वायव्य कोण मे निम्न लोगो को करना चाहिए निवासः- वायव्य कोण मे वायु देवता का आधिपत्य होता है। यह हमेशा चलायमान रहते है डाक्टर, वैध, वकील, वास्तु शास्त्री, ज्योतिष, राजनेता, अभिनेता, संगीत कार एवं जिनका भी काम बाहर ज्यादा घूमने का होता है उनका शयन कक्ष बनाना चाहिए क्योंकि वह जितना भ्रमण करेंगे उतना ही उनकी ख्याति बढ़ेगी वह जनमानस के करीब आते जाएंगे सफलता दिलाने के लिए यह दिशा सहयोगी रहेगी।

वायव्य में रसोईः- वायव्य मे रसोई घर का निर्माण किया जा सकता है चूंकि आग्नेय के समान वायव्य भी रजस गुण से सम्बन्धित दिशा है अतः यह रसोई घर बनाने की दूसरी और अच्छी दिशा होती है। इसके अलावा वायव्य में खाद्यानों का भण्डारण भी किया जा सकता है। इस स्थान पर रखा गया अनाज अथवा खाद्य पदार्थ अधिक दिनों तक शुद्ध रहता है। सभी दिशाओं मे वायव्य दिशा अतिथि कक्ष बनाने के लिए एक बेहतरीन दिशा है वायव्य दिशा वायु की दिशा है और वायु का गुण है बहना यह निरन्तर चलती रहती है इसलिए यहां पर अतिथि कक्ष बनवाया जा सकता है क्योंकि वह अधिक समय नही रुकते है। इसके अलावा यहां मनोरंजन कक्ष या फैमिली रुम भी बनाया जा सकता है।

वायव्य कोण में शयन कक्षः- इस दिशा में घर के महिलाओं का शयन कक्ष बनाया जा सकता है। इस दिशा में सोने से विवाह मे होने वाली अड़चने समाप्त होती है। इसके अलवा नवविवाहितों के लिए उत्तरी वायव्य कोण में बना हुआ उत्तम माना जाता है।

वायव्यभिमुखी भवन के शुभ परिणामः- वायव्य दिशा के बालक को पश्चिमी वायव्य मार्ग प्रहार हो तो उस गृह के निवासियों को यश प्राप्त होगा। उच्च स्थान वाले पश्चिम वायव्य दिशा का गमन उत्तम है। वायव्य ब्लाक में घर में उपयोग होने वाला कोई समान, सीढ़ियां यदि नैऋत्य में हो तो और वायव्य कोण मे नैऋत्य में आग्नेय की अपेक्षा निम्न हो और ईशान कोण की अपेक्षा ऊंचा हो तो उत्तम फल प्रदान करता है। पश्चिम मुख द्वार वाले घर के लिए पश्चिम की अपेक्षा अधिक खाली स्थान एवं दक्षिण खिड़की और उत्तर दिशा में खाली स्थान ज्यादा हो तो और पूरब उत्तर की चार दीवारी पर किसी प्रकार का निर्माण किए बिना ईशान में कुआ आग्नेय में रसोई हो तो उस घर में मेधावी एवं सम्पन्न व्यक्ति तथा न्यायशील व्यक्ति निवास करते है। यदि वायव्य कोण का दरवाजा है और वायव्य कोण हर तरह से निर्दोष है तो दिशा आपको धन सम्पत्ति और समृद्धि प्रदान करेंगे। यह भी देखा गया है की यह स्थिति भवन में रहने वाले सदस्य का अध्यात्म में रुचि बढ़ा सकता है। अगर के घर के वायव्य कोण मे केवल कोने में बहाव होता तो शत्रुओं की संख्या में कमी आती है तथा उनसे वाद-विवाद भी समाप्त हो जाते है। परिवार में मान-सम्मान बढ़ जाता है। इस दिशा में भवन निर्माण नियम के अनुसार गृह स्वामी को बहुत धनवान बनाता है परन्तु दोष पूर्ण निर्माण होने पर मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है।

अशुभ परिणामः- उत्तर वायव्य मार्ग में प्रहार हो तो स्त्रियों के लिए न केवल अस्वस्थ्य होने की संभावना होगी बल्कि उस ग्रह के निवासी अनेक प्रकार के व्यसनों के शिकार होंगे। इस लाॅक का उत्तर वायव्य अग्रेत हो तो उसके निवासी को अदालती कार्यवाही चोर तथा अग्नि से भय होता है। यदि आपके घर का वायव्य कटा हुआ है तो यह वायु तत्व की कमी का कारण बनता है। इसके फलस्वरुप सिरदर्द, चक्कर आना व ऊर्जा की कमी महसूस होना आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।
वायव्य का दक्षिण पश्चिम या दक्षिण पूर्व दिशा से ऊंचा होना भी वायु तत्व में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। इससे व्यक्ति अपना अधिकांश वक्त व्यर्थ की ओर अनावश्यक बातों को सोचने में खर्च कर देता है।

वायव्य कोण में ईशान की अपेक्षा निम्न हो और साथ ही कुएं तथा गड्डे भी हो तो उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है तथा यह अदालती कार्यवाहियों से भी परेशान रहते है।
वायव्य कोण में उत्तर की हद जुड़े होकर वायव्य दिशा में ढ़के हुए हो तो ऐसे में घर की स्वामिनी को तथा उस घर की तृतीय संतान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
इस उत्तरी दिशा वाले घर का नीव स्थल की अपेक्षा ऊंचे चबुतरे हो तो स्त्रियों के अस्वस्थ्य तथा गृह स्वामी के ऋणी हो जाने की संभावना हो सकती है। वायव्य कक्ष के वायव्य में चूल्हा हो तो उस गृह में अतिथियों का आना-जाना लगा रहता है।