महादेव का यह प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के माउण्ट आबू मे स्थित है। यह मंदिर अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से पूरे संसार में विख्यात है। यह मंदिर पूरे विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है। जहाँ भगवान शिव जी और उनके शिवलिंग की पूजा नही होती बल्कि अंगूठे की पूजा की जाती है। सावन के माह भक्त विशेष रुप से यहाँ दर्शन के लिए आते है।
शिव जी के पैर के अंगूठे ने थामा है पूरे माउण्ट आबू
धौलपुर का यह प्रसिद्ध मंदिर बहुत भव्य एवं मनमोहक है। इस मंदिर के परिसर के विशाल चैक में चंपा का एक विशालकाय पेड़ है जो अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर की बायीं तरफ दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र के शासक राज सिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। साथ ही मंदिर परिसर में द्वारकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भ गृह के बाहर बराह, नरसिंह, वराह नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तिया स्थापित है।
पौराणिक कथा
कई पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वर्तमान में जहाँ माउण्ट आबू पर्वत स्थित है पहले वहाँ विराट ब्रह्म खाई थी और उसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। एक बार की बात है उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास खाते हुए ब्रह्म खाई मे गिर जाती है तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया तब ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई परन्तु एक बार यह घटना पुनः घटित हुई। इसे देखते हुए बार-बार हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने मुनि के आदेश को स्वीकार कर लिया तथा अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्धन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग, नंदी वद्धन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। आश्रम में नंदी वद्धन ने वरदान मांगाकी उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुन्दर एवं वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ जी ने उनकी यह मनोकामना पूर्ण की तथा अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से ही तभी से नंदी वद्धन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ। वरदान प्राप्त कर नंदी वद्धन खाई में उतरा तो अन्दर की ओर धंसता ही चला गया और केवल नंदी वद्धन की नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा जो आज आबू पर्वत है। इसके पश्चात भी वह अचल नहीं रह पा रहा था तब वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे को पसार कर इसे स्थित किया तभी से यहां महादेव के अंगूठे की पूजा की जाती है।