वैशाखी का त्यौहार नये वसंत की शुरुआत को बताने के लिए बहुत उत्साह से मनाया जाता है। फसल कटने के समय यह त्यौहार आता है जो समृद्धि का प्रतीक होता है। वैशाखी पंजाब और हरियाणा में विशेष रुप से मनाया जाता है। वैशाखी सिखों के लिए भी महत्व रखती है क्योंकि इस दिन सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने धार्मिक उत्पीड़न के एक सभा में खालसा पंथ या शुद्ध आदेशों की स्थापना की थी। यह त्यौहार खुशहाली और समृद्धि का पर्व माना जाता है। हर वर्ष यह पर्व अप्रैल के महीन में मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस दिन को नव वर्ष की शुरुआत के रुप में मनाया जाता है। यह पावन त्यौहार भारतीय किसानों का माना जाता है पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अनाज की पूजा करते है और फलसल काटकर अनाज घर आ जान की खुशी में भगवान और प्रकृति को धन्यवाद करते है। साथ ही इस खुशी के मौके पर लोग भांगड़ा नृत्य भी करते है। वैशाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते है। इसलिए इसे मेष संक्रान्ति भी कहा जाता है।
कब मनायी जाती है वैशाखीः-
मेष संक्रान्ति के दिन ही वैशाखी मनायी जाती है। इस दिन लोग प्रातः काल स्नान करके नये वस्त्र पहनकर सूर्य को अघ्र्य देने के बाद एक दूसरे को वैशाखी के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है लोग लड़के सुबह उठकर गुरुद्वारे मे जाकर प्रार्थना करते है। गुरुद्वारे मे गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। उसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है। मुख्य तौर पर सिख समुदाय के तौर पर सिख समुदाय के लोग वैशाखी तक रबी की फसले पक जाती है और इनकी कटाई होती है उसकी खुशी में भी ये त्योहार मनाया जाता है। सिख समुदाय में आस्था रखने वाले लोग गुरु वाणी सुनते है श्रद्धालुओं के लिए खीर शरबत आदि बनाया जाता है। वैशाखी के दिन किसान प्रचुर मात्रा में उपजी फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते है और अपनी समृद्धि की प्रार्थना करते है। इसके बाद शाम के समय में घरों के बाहर लकड़ियां जलाई जाती है लोग गोल घेरा बनाकर वहां खड़े होते है और एक साथ मिलकर उत्सव मनाते गिट्टा और भांगड़ा करते है। अपनी खुशियों का इजहार करते है और एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हे।
वैशाखी का महत्वः-
वैशाखी का अर्थ वैशाख माह का त्यौहार है। यह वैशाख सौर मास का प्रथम दिन होता है। इस दिन गंगा नदी मे स्नान का बहुत महत्व है। हरिद्वार और ऋषिकेश मे वैशाखी पर्व पर भारी मेला लगता है। वैशाखी के दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते है। इसका कारण इस दिन को मेष संक्रान्ति भी कहते है। इसी पर्व को विषुवत संक्रान्ति भी कहा जाता है। वैशाखी पारम्परिक रुप से प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह त्यौहार हिन्दूओं, बौद्ध और सिखों के लिए महत्वपूर्ण है वैशाख के पहले दिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नव वर्ष के त्यौहार जैसे जुड़, शीतर, पोहेला, बैशाख आदि मनाये जाते है।