हिन्दू धर्म में वैशाख पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है, वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और धन के देवी माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है और व्रत भी किया जाता है। वैशाख पूर्णिमा को ही बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है, मान्यता ऐसा है कि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इस पूर्णिमा का व्रत करने से भगवान हरि और माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है और भक्तों के सभी मनोरथें पूर्ण करती है। मान्यता ऐसा है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन अगर व्रत रखा जाए और व्रत का पालन पूर्ण श्रद्धा से किया जाए तो जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है।
वैशाख पूर्णिमा कथाः-
द्वापर योग में एकबार माँ यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि कृष्ण तुम सम्पूर्ण संसार के उत्पन्नकर्ता तथा उनकी रक्षा करने वाले हो, तुम (भगवान कृष्ण) मुझे ऐसे व्रत के बारे में बताओ जिससे मृत्युलोक में स्त्रियों के विधवा होने का भय नही रहें तथा वो व्रत समस्त मनुष्यों के मनोरथों को पूर्ण करने वाला हो माँ यशोदा की बाते सुनकर श्री कृष्ण ने उनको बताया कि सौभाग्य प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णमासियों का व्रत करना चाहिए। इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा संतान की रक्षा भी होती है।
श्री कृष्ण ने माँ यशोदा को यह भी बताया कि इस व्रत को करने से मनुष्य की शक्ति भगवान शिव की तरफ बढ़ जाती है। इतना सुनने के पश्चात माँ यशोदा श्री कृष्ण से कहती है कि मुझे विस्तार पूर्वक बताओ कि सबसे पहले इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था तब भगवान श्री कृष्ण माँ यशोदा को बताते है कि प्राचीन समय में इस भूमण्डल पर एक प्रसिद्ध राजा था जिसका नाम चंद्रहास्य था, उसके राज्य में कातिका नाम का एक सुन्दर नगर था जहाँ पर धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था, ब्राह्मण की पत्नी सुशील और सुन्दर थी जो उसी के साथ निवास करती थी। घर में धन-धान्य का अभाव नही था परन्तु उस ब्राह्मण दम्पति का कोई संतान नही था, एक समय की बात है उस नगरी में एक योगी आया था, वह योगी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर सभी घरो में भिक्षा लाकर भोजन किया करता था। एक दिन ब्राह्मण धनेश्वर ने योगी से कहा कि हे महात्मय आप सभी घरों से भिक्षा लेते है लेकिन मेरे घर से कभी नही लेते है, इसका क्या कारण है कृपया मुझे बताएं। तब योगी ने धनेश्वर (ब्राह्मण) को बताया कि निसंतान के घर की भीख पतितों के अन्न के समान होता है और जो पतितों का अन्न ग्रहण करता है, वह भी पतित यानी पापी हो जाता है, तुम निसंतान हो इसलिए पतित हो जाने के भय से मै तुम्हारे घर से भिक्षा नही लेता हूं।
योगी की बात सुनकर धनेश्वर को अत्यधिक कष्ट हुआ उसने योगी से प्रार्थना किया कि यदि ऐसा बात है तो आप ही मुझे पुत्र प्राप्ति के लिए कोई उपाय बताइए क्योंकि मेरे वहाँ धन-धान्य की कोई कमी नही है परन्तु मेरी कोई संतान नही इसी बात का मुझे कष्ट है योगी जी ने ब्राह्मण की बात सुनकर उनसे कहा कि पुत्र प्राप्ति के लिए आपको देवी चण्डी का आराधना करना चाहिए, ब्राह्मण ने घर आकर अपने पत्नी को सम्पूर्ण वृतांत बताया और ब्राह्मण स्वयं जंगल की तरफ चले गये जंगल में ब्राह्मण ने माँ चण्डी की उपासना एवं व्रत किया सोलह दिन पश्चात देवी चण्डी ने धनेश्वर को दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारे वहां पुत्र की प्राप्ति होगी, सोलह वर्ष के आयु में उसकी मृत्यु हो जाएगी लेकिन यदि आप दीर्घायु वाले पुत्र की कामना करते है तो आप दोनों पति-पत्नी को 32 पूर्णमासियों का विधिपूर्वक व्रत एवं उपवास करना चाहिए। अपने सामथ्र्य के अनुसार आपको आटे के दीपक बनाकर शिव जी का पूजन करना चाहिए लेकिन ध्यान रहे कि पूर्णमासी के दिन 32 दीपक हो जाना चाहिए माँ चण्डी ने ब्राह्मण को यह भी बताया कि कल सवेरे इस स्थान के नजदीक एक आम का वृक्ष देखेगा, उसपर से तुम्हें ब्राह्मण फल तोड़कर अपने पत्नी को सम्पूर्ण वृतांत सुनाते हुए दे देना है, स्नान आदि करने के पश्चात भगवान भोलेनाथ का ध्यान करके उसको (ब्राह्मण की पत्नी) फल को खा लेना है, भगवान भोलेनाथ के अनुकम्पा से वा गर्भ धारण कर लेंगी। ब्राह्मण प्रातः काल उठकर उस स्थान पर आम का वृक्ष देखा, उसने आम के वृक्ष पर चढ़कर आम फल तोड़ने का प्रयास किया परन्तु वो असफल रहा उसके बाद उसने भगवान गणेश का ध्यान किया और उनके कृपा से धनेश्वर ने आम के फल को तोड़कर अपने पत्नी को दे दिया, धनेश्वर की पत्नी ने उस फल का सेवन किया तथा उसने गर्भधारण भी कर लिया। कुछ दिन पश्चात माँ चण्डी के असीम कृपा से एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम देवीदास रखा गया। वह बालक बहुत ही होशियार और आज्ञाकारी था। बालक के दीर्घ आयु के लिए उसके माता ने 32 पूर्णमासी के व्रत रखना आरम्भ कर दिया, जैसे वो बालक जैसे ही सोलहवें में प्रवेश किया उसके पिता को चिंता होने लगी कि कहीं उनके पुत्र का मृत्यु हो जाए अगर ऐसी घटना सामने हो गई हो तो वो किस प्रकार सहन करेंगे। ऐसा विचार करके उन्होंने (धनेश्वर) देवीदास के मामा को बुलवाया और उनसे कहा कि देवीदास को काशी मे 1 वर्ष का अध्ययन करना है और उसे अकेला नही छोड़ना है। इसलिए देवीदास के साथ तुम जाओ और एक वर्ष पश्चात तुम दोनो वापस लौट आना सभी व्यवस्था के साथ देवीदास को उसके मामा के साथ भेज दिया गया किन्तु उसके मामा को भी किसी बात की खबर नही थी, इधर धनेश्वर ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र के दीर्घजीवी होने के लिए माँ भगवती की आराधना एवं पूर्णमासी के व्रत का आरम्भ किया तथा उन्होंने 32 पूर्णमासियों का व्रत भी पूर्ण कर लिया देवीदास और उसके मामा रात्रि विश्राम के लिए एक गाँव मे ठहरे जहाँ एक सुन्दर कन्या का विवाह होने वाला था, उस कन्या ने देवीदास को जब देखा तो उनको म नही मन पति मान लिया और वो देवीदास से विवाह करने का आग्रह करती है परन्तु देवीदास ने उसे अपने उम्र के बारे में बताया फिर भी कन्या ने कहा कि मै आपको पति मान चुकी हूँ अब जो आपका आयु होगा वही मेरा भी होगा प्रातः काल देवीदास ने अपनी पत्नी को तीन नामो से जुड़ा हुआ एक अंगूठी और रुमाल दिया उसने अपने पत्नी से कहा कि तुम एक पुष्प वाटिका बना लो जब मेरा मृत्यु होगा तो पुष्प वाटिका के पुष्प सुख जायेंगे यदि पुष्प फिर से हरे-भरे हो तो जान लेना कि मै जीवित हूँ उसके पश्चात देवीदास विद्या प्राप्ति के लिए काशी प्रस्थान कर गया, कुछ समय बीत जाने के बाद एक सर्प देवीदास के पास आता है और उसको डसने का प्रयास करता है लेकिन व्रत के प्रभाव से तो (सर्प) देवीदास का कुछ नही कर सका उसके बाद वहाँ स्वयं काल आ गया और देवीदास के शरीर से उसके प्राणों का हरण करने का कोशिश करने लगा जिसके कारण वह (देवीदास) मुर्छित होकर पृथ्वी पर गिर गया। तभी वहां माता पार्वती के साथ भगवान शिव उपस्थित हो गए माता पार्वतीने भगवान भोलेनाथ से अनुरोध किया कि इस बालक के माता ने 32 पूर्णमासी का व्रत पूरी लगन से और विधिपूर्वक किया है। अतः आपको इस बालक को जीवन दान देना चाहिए। माता पार्वती के बात को सुनने के पश्चात् भगवान भोलेनाथ उसे प्राणदान दे देते है और काल को अपना मुँह मोड़कर पीछे हटना पड़ता है और देवीदास मुच्र्छा से बाहर आकर बैठ जाता है, उधर उसकी पत्नी ने वाटिका में पुष्प और तने नही देखे। जिससे वह अत्यन्त घबरा गई परन्तु कुछ समय पश्चात वाटिका हरी-भरी हो गई । जिससे देवीदास की पत्नी को विश्वास हो गया कि उसके पति को कुछ नही हुआ है और उसने पिता से आग्रह किया कि उसके पति को ढूंढा जाए। सोलह साल बीत जाने के बाद देवीदास अपने मामा सहित काशी से घर प्रस्थान के लिए निकल गया। उसके ससुर उसको खोजने निकलने ही वाले थे तब-तक देवीदास अपने मामा के साथ उसी नगर में पहुँचा, उसके ससुर उसे घर के अन्दर ले गए और आदर सत्कार किया तथा रस्मो और रिवाजों के साथ अपने कन्या का विदाई देवीदास के साथ कर दिया, देवीदास जब अपने घर से दूर था तभी वहाँ के लोगो ने उसके माता-पिता को सूचना दे दी कि उसका पुत्र आपके पुत्रवधू और अपने मामा के साथ गाँव के समीप आ गया है। ऐसा सुनने के पश्चात माता-पिता अत्यधिक खुश हुए तथा पुत्र और पुत्रवधू के आने के खुशी में उन्होंने बड़ा उत्सव मनाया। इस महीने को पूर्ण करने के अंत में श्री कृष्ण माँ यशोदा से कहते है कि धनेश्वर 32 पूर्णमासी व्रत के प्रभाव से पुत्रवान हुआ था। इसप्रकार जो स्त्री या पुरुष वैशाख पूर्णिमा का व्रत करते है उनको अपने पापों से छुटकारा मिल जाता है तथा उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है।
वैशाख/बुद्ध पूर्णिमा के कुछ मुख्य तथ्यः-
☸बुद्ध पूर्णिमा वैशाख महीने के अन्तिम तारीख को मनाई जाती है।
☸चन्द्र-दर्शन के बिना पूर्णिमा का व्रत पूर्ण नही माना जाता है इसलिए इस दिन चन्द्र-दर्शन अवश्य करें।
वैशाख पूर्णिमा का महत्वः-
हिन्दू धर्म के अनुसार वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा-आराधना किया जाता है, बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन को गौतम बुद्ध के जन्मदिवस के रुप मनाते है, उनका मानना है कि भगवान बुद्ध के शिक्षाओं पर अगर ध्यान दिया जाय तो मनुष्य के सांसारिक कष्ट कम हो जाते है और वह मोह-माया, लोभ से छुटकारा पाता है। हिन्दू धर्म में वैशाख पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के साथ-साथ दान देने का भी महत्व है।
वैशाख पूर्णिमा पूजा विधिः-
☸वैशाख पूर्णिमा के दिन प्रातः काल स्वच्छ होने के पश्चात स्नान करें और सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।
☸तत्पश्चात व्रत का संकल्प ले और भगवान हरि तथा देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
☸वैशाख अमावस्या के दिन पाँच या सात जरुरतमंद व्यक्तियों को तिल और शक्कर का दान करें।
☸वैशाख अमावस्या के दिन प्रातः एवं सायंकाल तिल के तेल से दीपक प्रज्जवलित करें।
वैशाख पूर्णिमा 2023 शुभ तिथि एवं मुहूर्तः-
साल 2023 में वैशाख पूर्णिमा का त्योहार 05 मई 2023 को मनाया जायेगा।
पूर्णिमा तिथि का आरम्भः- 04 मई 2023 को रात्रि 23ः45 से होगी तथा इसका समापन 05 मई 2023 को रात्रि 23ः05 पर होगी।