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शिव जी की जटाओं से ही क्यों निकलती है गंगा?

शिव जी की जटाओं से ही क्यों निकलती है गंगा

शिव जी की जटाओं से ही क्यों निकलती है गंगा

शिव जी की जटाओं से ही क्यों निकलती है गंगा?

भगवान शिव की छवियों और मूर्तियों में अक्सर गंगा नदी को उनकी जटाओं से निकलते हुए दिखाया जाता है। यह दृश्य न केवल दर्शनीय है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा पौराणिक और धार्मिक रहस्य भी छिपा हुआ है। गंगा नदी, जिसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है, अपने जल से अनगिनत लोगों को तृप्त करती है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका अत्यधिक महत्व है। आइए जानें प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य K.M. Sinha जी से कि शिव जी की जटाओं से ही क्यों निकलती है गंगा? और इसका रहस्य क्या है?

गंगा का अवतरण और शिव की जटाएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी का संबंध त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से है। गंगा का उद्गम हिमालय के गंगोत्री से होता है लेकिन धार्मिक कथाओं में कहा गया है कि गंगा माता पृथ्वी पर आने से पहले स्वर्ग में निवास करती थीं।

भागीरथ, जो कि सूर्य वंश के एक राजा थे, ने अपने पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा पृथ्वी पर अवतरित होने को तैयार हुईं लेकिन गंगा का प्रवाह इतना तीव्र था कि अगर वह सीधे पृथ्वी पर आ जातीं, तो धरती उसका वेग सहन नहीं कर पाती और वह पाताल लोक तक पहुँच जाती।

यही कारण था कि भागीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वह गंगा के वेग को नियंत्रित करें और उसे अपनी जटाओं में धारण करें। भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समेट लिया ताकि उनका तेज प्रवाह नियंत्रित हो सके और धीरे-धीरे गंगा धरती पर प्रवाहित हो सके।

 गंगा का घमंड और शिव की शिक्षा

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार गंगा अपने तेज प्रवाह और पवित्रता के कारण अत्यंत घमंडी थीं। जब भागीरथ ने भगवान शिव से गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की, तो भगवान शिव ने गंगा का घमंड तोड़ने के लिए अपनी जटाएं खोल दीं और गंगा को उनमें कैद कर लिया। इस प्रकार गंगा का वेग कम हो गया और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। गंगा ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और तब शिव जी ने उन्हें अपनी जटाओं से बहने दिया, इस प्रकार गंगा का अवतरण धरती पर हुआ।


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गंगा की उत्पत्ति की कहानी

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा की उत्पत्ति भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी हुई है। जब वामन भगवान ने ब्रह्मांड को मापने के लिए दो कदम उठाए, तो उनके पैर के अंगूठे ने ब्रह्मांड की दीवार में छेद कर दिया, जिससे गंगा का जल पृथ्वी पर आ गया।

भागीरथ द्वारा गंगा का धरती पर लाना

भागीरथ ने अपनी कठोर तपस्या के माध्यम से गंगा को धरती पर लाने की कोशिश की ताकि उनके पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति मिल सके। जब गंगा ने भागीरथ की प्रार्थना को स्वीकार किया, तो उनका प्रवाह इतना तीव्र था कि केवल भगवान शिव ही उसे नियंत्रित कर सकते थे। शिव जी ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया और जब गंगा ने अपनी गलती समझी, तो उन्होंने उन्हें धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित होने दिया।

गंगा का भगवान शिव की जटाओं से निकलना न केवल एक पौराणिक घटना है, बल्कि यह हमें विनम्रता, भक्ति और ईश्वर की शक्ति को दर्शाता है। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि भक्ति और तपस्या से हम किसी भी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते हैं और भगवान शिव की जटाओं से गंगा का प्रवाह हमें उनकी करुणा और शक्ति का स्मरण कराता है।

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