सावन सोमवार की कुछ विशेष बातें, श्रावण क्यों मनाया जाता है ?

हिन्दू धर्म के अनुसार श्रावण/सावन माह शुक्ल पक्ष के तृतीया को पड़ता है और कई जगह यह उल्लेख है कि सावन के महीने मेे ही माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए तपस्या की थी और उनके तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उनको अपना पत्नी माना था। इसके पीछे एक और पौराणिक कथा प्रचलित है कि सावन के महीने मे शिव जी का पूजा-आराधना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते है और कहा जाता है कि सृष्टि के रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को महादेव ने पी लिया था और विष का ताप बहुत ज्यादा था जिसको कम करने के लिए इन्द्र देव को बारिश करना पड़ा था और यह घटना सावन के मास मे घटा था और भोलेनाथ ने विषपान करके सृष्टि की रक्षा की थी तभी से लोगो में यह मान्यता है कि सावन में शिव जी भक्तों के कष्ट दूर करकें उनके सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।

सावन महीने का महत्वः- कथाओ के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव को सावन का महीना इसलिए प्रिय है क्योंकि इसी महीने में भोलेनाथ पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे और वहाँ के लोगो ने उनका स्वागत अर्ग और जलाभिषेक से किया था और माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में शंभु अपने ससुराल आते है और भू-लोक वासियों के लिए यही उत्तम समय होता है। जिससे कि भगवान की कृपा पा सके।

सावन सोमवार के लाभः यदि आपके विवाह या आर्थिक स्थिति में समस्या आ रही है तो सावन के सोमवार का व्रत रखने से आपकी सभी समस्याए दूर होंगी, पुराणों के अनुसार सोमवार के व्रत से भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते है और उनको जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। सोमवार के व्रत रखने से कुण्डली  में चन्द्र ग्रह मजबूत होता है। जो नौकरी और व्यवसाय के समस्या में राहत दिलाता है, सावन के सोमवार का व्रत स्त्री और पुरुष दोनों जातक कर सकते हैं।

सावन सोमवार की कुछ विशेष बातेंः-
 शनि-देव भगवान शिव के प्रिय शिष्य हैं इसलिए सावन के सोमवार का व्रत करने से शनिदेव भी प्रसन्न रहते हैं।
 भगवान शिव के शीश पर चन्द्रमा देव विराजमान हैं और सोमवार का व्रत करने से जातक के कुण्डली में उपस्थित चन्द्र दोष भी नष्ट हो जाता है।
 सावन के सोमवार का व्रत करने से जातक की कुण्डली में उपस्थित ग्रहण दोष और सर्प-दोष भी समाप्त हो जाता है।

सावन सोमवार का उद्देश्यः- पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को प्रकृति का सांमजस्य बनाये रखना बहुत पसंद होता है। भगवान शिव के गले में विषधर वासुकि नाग विराजमान है और उनके मस्तक में चन्द्र-देव और जटाओं में गंगा का वास है, उनका वाहन वृषभ और महादेव की अर्धांगिनी  माता पार्वती का वाहन शेर है तथा उनके बड़े पुत्र कार्तिकेय के वाहन मयूर एवं गणेश जी के वाहन मूषक है लेकिन यह सभी जीव एक दूसरे के शत्रु होते हुए भी बडे प्रेम-पूर्वक रहते है इसके माध्यम से हमे भोलेनाथ संदेश देते है कि प्रकृति में संतुलन बनाकर रखना चाहिए और सावन के महीने में जब प्रकृति अपनी सुंदरता बिखेरती है तो उसी से प्रकृति का श्रृगांर होता है। इस प्रकार मानव जीवन को प्रकृति संतुलन पर ध्यान देना चाहिए। जिससे किसी प्रकार की समस्या हमें भविष्य में ना सता सके।

सावन माह पूजा विधिः-
 प्रातः काल उठकर स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
 इसके बाद भगवान शंकर का अभिषेक दूध, जल या गन्ने के रस से करें।
 भगवान शिव को सफेद चंदन लगाए और उन्हें भांग, धतूरा, बेल-पत्र, पुष्प आदि अर्पित करें।
 भगवान शिव कें समक्ष घीं का दीपक जलाए।
 तत्पश्चात् सावन का व्रत कथा पढ़ने या सुनने के पश्चात् भगवान शिव की आरती करें और उनको भोग लगाएं।
 व्रत के दिन भगवान शिव का दोनो समय आराधना करना चाहिए।
 सावन के सोमवार के दिन भगवान शिव के पूजा-पाठ के उपरान्त ही व्रत खोले और दिन में एक ही बार मीठे भोजन का सेवन करें।

तिथि एवं शुभ मुहूर्तः-

2022 में सावन माह की शुरुआत 14 जुलाई 2022 (गुरुवार) से हो रही है और सावन का प्रथम सोमवार 18 जुलाई 2022 को पड़ रहा है तथा सावन की समाप्ति 12 अगस्त 2022 को हो रही है।
मंत्रः– सावन के महीने मे प्रत्येक दिन ओम् नमः शिवाय का 108 बार जाप करें।
सावन का ज्योतिष महत्वः- ज्योतिष के अनुसार सावन के महीने के प्रारम्भ में सूर्य, सिंह राशि में प्रवेश करता है और सूर्य का यह गोचर सभी राशियों को प्रभावित करता है।

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