सतयुग से चली आ रही है देवी पूजा की प्रथा: शारदीय नवरात्रि 2024 का महत्व और विधि

सतयुग से चली आ रही है देवी पूजा की प्रथा: शारदीय नवरात्रि 2024 का महत्व और विधि

शारदीय नवरात्रि, एक पवित्र पर्व, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है, जो देवी पूजा की पुरानी परंपराओं का भाग है। शिवपुराण की उमा संहिता (51.73-82) के अनुसार, इस पर्व की पूजा विधिपूर्वक करने से भक्तों की समस्याएं हल होती हैं। विरथ के पुत्र सुरथ ने खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया, जबकि ध्रुवसंधि के पुत्र सुदर्शन ने विधिवत नवरात्रि पूजन करके अयोध्या को प्राप्त किया। देवी की आराधना सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलाती है और अंत में मोक्ष प्रदान करती है।सतयुग से चली आ रही है देवी पूजा की प्रथा: शारदीय नवरात्रि 2024 का महत्व और विधि-

Highlight

देवी पूजा की प्राचीन परंपरा

शाक्त परंपरा की प्राचीनता ऋग्वेद में भी उल्लेखित है। आचार्य सायन द्वारा लिखे ऋग्वेद के भाष्य (7.103.5) में शाक्त की व्याख्या की गई है। महाभारत के भीष्म पर्व (23 अध्याय) में अर्जुन द्वारा दुर्गा की पूजा का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में देवीसूक्तम (10.125.1–8) का उल्लेख होने से यह प्रमाणित होता है कि देवी पूजा सतयुग काल से चली आ रही है।

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सतयुग से चली आ रही है देवी पूजा की प्रथा: शारदीय नवरात्रि 2024 का महत्व और विधि

नवरात्रि का महत्व और विशेष पूजा विधि

वर्ष में दो बार, अश्विन और चैत्र मास में, शरद और वसंत ऋतु में, मां भगवती नौ दिनों के लिए घर पर आती हैं। इन दिनों देवी की आराधना से विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है, विशेषकर जब मौसम में कई रोग फैल सकते हैं। देवी भागवत के तृतीय खण्ड में, प्रभु राम ने नारद की सलाह पर देवी पूजा की थी जब वे सीता को ढूंढने निकले थे। सतयुग से चली आ रही है देवी पूजा की प्रथा: शारदीय नवरात्रि का महत्व और विधि-

नवरात्रि पूजन विधि:

पूर्व तैयारी:

एक स्वच्छ स्थान पर वेदी निर्मित करें, जिसे गोबर और मिट्टी से लिपा गया हो।

दो खम्बे लें और उन्हें ध्वज से सजाएं। खम्बों को रेशमी कपड़ों से ढकें।

मध्य में देवी प्रतिमा स्थापित करें और बगल में कलश रखें। कलश में विभिन्न नदियों का जल भरें और उसके ऊपर पांच पत्ते रखें (जैसे पान, आम)।

यदि संभव हो तो नवार्ण यंत्र भी रखें। मूर्ति की स्थापना हस्त नक्षत्र में और नंदी तिथि को करें।

चंदन, अगर, कपूर, मंदार और चंपा के फूल, बिल्व पत्र चढ़ाएं।

पूजन के दौरान:

धूप और दीप करें और नौ दिनों तक जमीन पर सोएं। यदि संभव न हो तो अंतिम तीन दिनों में करें।

कुमारी पूजन:

नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन अनिवार्य है। प्रतिदिन एक कन्या की पूजा की जाती है, जहां पहले दिन एक कुमारी कन्या, दूसरे दिन दो और इस तरह से अंतिम दिन नौ कन्याओं का पूजन होता है। कन्या को भोजन, वस्त्र और आभूषण दें। यदि रोज संभव न हो तो अष्टमी के दिन पूजा करें।

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सतयुग से चली आ रही है देवी पूजा की प्रथा: शारदीय नवरात्रि 2024 का महत्व और विधि

कन्या की आयु और नाम:

दो साल: अनाम

तीन साल: त्रिमूर्ति

चार साल: कल्याणी

पांच साल: रोहिणी

छह साल: कलिका

सात साल: चण्डिका

आठ साल: शाम्भवी

नौ साल: दुर्गा

दस साल: सुभद्रा

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नवरात्रि के नौ दिन और देवी पूजा

नवरात्रि के नौ दिनों में हम निम्नलिखित देवियों की पूजा करते हैं:

शैलपुत्री: गिरिराज पुत्री पार्वती, जिनका जन्म घोर तपस्या के कारण हुआ।

ब्रह्मचारिणी: जो ब्रह्मस्वरूप बनाती हैं।

चन्द्रघण्टा: आनंद प्रदान करनेवाली देवी।

कुष्मांडा: पेट में तीन तरह के ताप से युक्त देवी।

स्कन्दमाता: कार्तिकेय की माता।

कात्यायनी: ऋषि कात्यायन के आश्रम में प्रगट हुई देवी।

कालरात्रि: बुराई पर काल की तरह टूट पड़ने वाली देवी।

महागौरी: तपस्या द्वारा अच्छाइयों को प्रस्थापित करने वाली देवी।

सिद्धिदात्री: मोक्ष या सिद्धि देने वाली देवी।

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गरबा, डांडिया और दुर्गापूजा का इतिहास

नवरात्रि का पर्व विभिन्न स्थानों पर विभिन्न तरीके से मनाया जाता है। उत्तर भारत में घट स्थापना, पूर्वी अंचल में दुर्गा पूजा और दक्षिण में गोलू स्थापना के रूप में नवरात्रि मनाई जाती है। गरबा और डांडिया का इतिहास विशेषकर गुजरात और मुंबई से जुड़ा है, जहां यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

गरबा गीतों की रचना कवि दयाराम और वल्लभ भट ने माता अम्बे की प्रशंसा में की थी। नवरात्रि के दौरान लोग गरबा नृत्य करते हैं और देवी की आराधना करते हैं, जबकि पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा के दौरान आनंद प्रमोद किया जाता है।

ज्योतिषी के.एम. सिन्हा का दृष्टिकोण

ज्योतिषी के.एम. सिन्हा के अनुसार, नवरात्रि के इस पर्व का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व अत्यधिक है। इस समय देवी पूजा से न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है, बल्कि यह ग्रहों की स्थिति पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। सिन्हा जी का कहना है कि इस दौरान किए गए विशेष पूजा-विधान और व्रत, व्यक्ति की कुंडली में नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को कम कर सकते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। विशेष रूप से, यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा और अन्य प्रमुख ग्रहों का दुष्प्रभाव हो, तो नवरात्रि की पूजा इस असंतुलन को दूर करने में सहायक हो सकती है।

नवरात्रि का मूल स्वरूप भक्ति और आनंद है और यह पर्व सभी स्थानों पर अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। इस प्रकार, नवरात्रि का पर्व देवी पूजा की प्राचीन परंपरा को जीवित रखता है और भक्तों को आध्यात्मिक उत्थान का अवसर प्रदान करता है।

 

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