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सावन माह में शिव भक्तों द्वारा क्यों की जाती है कावड़ यात्रा, आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं, कब और कैसे हुआ था कावड़ यात्रा का आरम्भ

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्रावण का महीना भगवान भोलेनाथ को बहुत प्रिय होता है। महादेव की कृपा पाने के लिए भक्त जन इस माह पूजा-पाठ, व्रत, उपाय, जलाभिषेक और रुद्राभिषेक भी करते हैं। पूरा दिन मंदिरों मे हर-हर महादेव का जयकारा गुंजता रहता है। श्रावण मास का आरम्भ 04 जुलाई 2023 से हो रहा है और इसका समापन 31 अगस्त 2023 को होगा। सावन के महीने में भक्त जन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कावड़ यात्रा भी करते हैं। कावड़ यात्रा करते दौरान कावड़ को एक क्षण के लिए भी भूमि पर नही रखा जाता है। कहा ऐसा भी जाता है कि जो भक्त कावड़ यात्रा पर निकलते हैं महादेव उनकी मनोरथें पूर्ण करते हैं तो आइए जानते है कि क्या है कावड़ यात्रा कैसे हुआ था इसका आरम्भ और क्या है इसका महत्व–

क्या है कावड़ यात्रा

सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त जन कावड़ यात्रा का आयोजन करते हैं। कावड़ यात्रा को समूह मे निकाला जाता है। इस दौरान भक्त जन हरिद्वार और गंगोत्री का धाम करते हैं तत्पश्चात तीर्थ स्थलों से गंगाजल से भरी कावड़ को अपने कंधो पर रखकर पैदल जाते हैं। कावड़ में भरे हुए जल को भगवान शिव को चढ़ाया जाता है, इस यात्रा को ही कावड़ यात्रा कहा जाता है। पहले कावड़ यात्रा को पैदल ही किया जाता था परन्तु अब बाइक व गाड़ी से भी यात्रा किया जा रहा है।

कुल मिलाकर कहा जाये तो कंधे पर किसी भी पवित्र स्त्रोत से गंगाजल लेकर भगवान भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करने के परम्परा को ही कावड़ यात्रा कहा जाता है।

क्यों की जाती है कावड़ यात्रा

उपरोक्त कथनों में हमने बताया कि भगवान शिव के भक्त हरिद्वार या फिर किसी पवित्र स्त्रोत से गंगाजल लेकर शिव जी के जलाभिषेक के लिए अपने स्थानीय शिव मंदिर तक कावड़ को कंधे पर ही रखकर ले जाते हैं। कावड़ यात्रा करने वाले सभी भक्तजनों को कावड़ियाँ कहा जाता है। मान्यता है कि इस कठिन यात्रा को करके कावड़ के पवित्र जल से भगवान शिव का अभिषेक करने वाले जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भगवान शिव जी की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस कावड़ यात्रा से हमें यह संदेश मिलता है कि भगवान शिव अपने भक्तों के प्रति  श्रद्धा और एक लोटे जल के अभिषेक से भी अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।

कब हुआ कावड़ यात्रा का आरम्भ

धर्म ग्रंथों में कावड़ यात्रा के आरम्भ को लेकर कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। एक पौराणिक कथानुसार सर्वप्रथम कावड़ यात्री श्रवण कुमार को माना जाता है। उन्होंने अपनी नेत्रहीन माता-पिता को कावड़ में बिठाकर सम्पूर्ण यात्रा पैदल ही तय किया था। कहा जाता है कि श्रवण कुमार अपने माता-पिता को हरिद्वार लाये थें और वहाँ से गंगाजल लेकर भगवान शिव का अभिषेक अपने माता-पिता से करवाया था।

एक दूसरे कथानुसार भगवान परशुराम ने सबसे पूर्व गड़मुक्तेश्वर से नंगे पैर कावड़ यात्रा करने के पश्चात बागपत के नजदीक स्थित पूरा महादेव मंदिर में भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक किया था।

कावड़ यात्रा 2023 महत्व

सावन माह में कावड़ यात्रा 04 जुलाई 2023 से लेकर सावन माह के अन्त तक चलेगा। कावड़ यात्रा के लिए सभी शिव भक्तों में अति उत्साह रहता है। अपनी मनोरथें पूर्ण करने के लिए कावड़ियें पैदल चलकर पवित्र नदी से गंगाजल भरकर लाते हैं और उस जल से शिव जी का अभिषेक करते हैं। भगवान शिव बहुत दयालु हैं, वो अपने भक्तों के मनोकामनाओं को बहुत जल्दी पूर्ण कर देते हैं। दयालु होने के साथ-साथ गलती होने पर भगवान शिव बहुत जल्दी क्रोधित भी हो जाते हैं इसलिए कावड़ यात्रा के दौरान मांस, मदिरा एवं भोजन का सेवन नही करना चाहिए और ना ही कावड़ का अपमान अर्थात कावड़ को जमीन पर नही रखना चाहिए।

यह यात्रा समता और भाईचारे की यात्रा भी है। शिवलिंग के जलाभिषेक के समय भक्तजन पंचाक्षर, महामृत्युजंय आदि मंत्रों का जप भी करते हैं जिससे उनके जीवन में आने वाले सभी परेशानियों का विनाश भगवान शिव स्वयं कर देते हैं।

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