भाद्रपद के महीने में जब सूरज अपनी राशि परिवर्तन करते है तो उसे सिंह संक्रान्ति कहते है। सिंह संक्रान्ति के दिन भगवान विष्णु सूर्य देव और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस दिन घी का सेवन लाभकारी होता है। कहा जाता है कि घी स्मरण शक्ति बुद्धि उर्जा और ताकत बढ़ाता है। घी को वात, पित्त, बुखार और विषैले पदार्थों का नाशक माना जाता है। सिंह संक्रान्ति को घी संक्रान्ति घीया संक्रात कहा जाता है। गढ़वाल में इसे आम भाषा में घीया ही कहते है।
सूर्य देव के पूजा का महत्वः-
सूर्य देव को पंच देवो मे से एक माना जाता है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत में गणेश जी, शिव जी, भगवान विष्णु, दुर्गा देवी और भगवान सूर्य की पूजा की जाती है।
इस दिन पूजा से पहले स्नान किया जाता है।
स्नान के बाद साफ कपड़े पहने जाते है। इसके बाद साफ कपड़े पहने जाते है।
गाय के दूध, गंगाजल, पुष्प, चावल, कुमकुम आदि से सूर्य भगवान की मूर्ति की विधिवत् पूजा की जाती है। पूजा के बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल अर्पित किया जाता है। सूर्य देव को जल अर्पित करते समय ओम सूर्याय नमः का जाप किया जाता है। इस मंत्र का जाप 108 बार किया जाता है।
सिंह संक्रान्ति की कथाः-
एक गांव में एक ब्राह्मण निवास करता था। इसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उस गरीब ब्राह्मण का पुत्र गंगा स्नान के लिए जाता है। दुर्भाग्यवश रास्ते में चोर उसे घेर लेते है और उसे कहते है कि वह उसे नही मारेंगे। उससे उसके पिता के गुप्त दान के बारे में पूछते है। तब ब्राह्मण का पुत्र दीन भाव से कहने लगता है कि वह बहुत दुखी है और उनके पास धन नही है। सब चोरो ने उससे पूछा कि उसने पोटती में बांध रखा है। तब ब्राह्मण का पुत्र बताता है की उसकी मां ने रोटियां बांधी है। यह सुनकर चारों ने कहा यह बहुत ही गरीब है और दुखी मनुष्य है। इसलिए इसे जाने देते है। इतना कहकर चोरो ने बालक को जाने दिया ब्राह्मण का पुत्र वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंच जाता है। नगर के पास उसे एक बरगद का पेड़ दिखाई देता है। वह उस पेड़ की छाया में सो जाता है तब उस समय नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के पेड़ के पास पहुंच जाते है पर उस बालक को चोर समझकर बंदी बनाकर राजा के पास ले जाते है। राजा ने उसे दंड स्वरुप जेल में बंद करने का आदेश दे दिया। जब ब्राह्मणी का लड़का घर नही लौटा तब उसे अपने पुत्र की चिंता होने लग जाती है। अगले दिन प्रदोष व्रत होता है। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक किया और भगवान शंकर से मन ही मन अपने पुत्र की कुशलता से प्रार्थना करने लग जाती है। भगवान शंकर उस ब्राह्मणी की प्रार्थना को स्वीकार कर लेते है। उसी रात भगवान शंकर ने राजा को सपने में आदेश दिया कि वह बालक चोर नही है और उसे सुबह छोड़ दिया जाए नही तो उसका राजा राजपाठ नष्ट हो जाएगा। सुबह उठकर राजा ने शिवजी के आदेश अनुसार बालक को जेल से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कथा राजा को सुनाई बालक का सारा हाल सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश अनुसार बालक को घर भेज दिया जाए और उसके माता-पिता को राज दरबार में बुलाया जाएं। बालक के माता-पिता बहुत डर जाते है। राजा ने उन्हें देखकर कहा डरने की जरुरत नही है। तुम्हारा बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिये जिससे की वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सकें। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण और उसका परिवार आनन्द से रहने लगता है।
सिंह संक्रान्ति के दिन प्रदोष व्रत करने की विधिः-
☸प्रदोष व्रत के पूजन के लिए शाम का समय अच्छा रहता है।
☸शाम के समय शिव भगवान के मन्दिर में प्रदोष मंत्र का जाप किया जाता है।
☸भगवान शिव की पूजा करने के लिए बेलपत्र, अक्षत, दीया, धूप और गंगाजल का प्रयोग किया जाता है।
☸इस व्रत में भोजन ग्रहण नही किया जाता है पूरा दिन व्रत रखने के बाद सूर्य अस्त से कुछ देर पहले स्नान किया जाता है।
प्रदोष व्रत के महत्वः-
☸सिंह संक्रान्ति के दिन प्रदोष व्रत करने से जीवन में सुख-शांति, निरोग जीवन और लम्बी आयु प्राप्त की जाती है।
☸प्रदोष व्रत का सम्बन्ध सूरज से होता है और चन्द्रमा के साथ सूर्य भी मनुष्य के जीवन में सक्रिय रहता है। इसलिए चन्द्रमा और सूर्य से दोनो अच्छे फल देते है।
☸जिस व्यक्ति की कुण्डली में सूरज कमजोर होता है उस व्यक्ति को यह व्रत करने से सूरज से सम्बन्धित सारी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।
☸जो व्यक्ति प्रदोष व्रत करता है वह संकटों से दूर रहता है।
घी खाने का महत्वः-
☸सिंह संक्रान्ति के दिन घी खाने का बहुत महत्व बताया जाता है। इस दिन घी का सेवन करने से ऊर्जा तेज याददाश्त और बुद्धि होती है।
☸पौराणिक कथाओं के अनुसार जो व्यक्ति सिंह संक्रान्ति के दिन घी का सेवन नही करता है।
☸वह अगले जन्म में घोंघा के रुप में जन्म लेता है। यही कारण है कि इस दिन घी का सेवन करना फायदेमंद बताया जाता है। इसके अलावा घी का सेवन करने से राहु और केतू के बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है।
पूजा विधिः-
☸सिंह संक्रान्ति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव और नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है।
☸इस दिन भक्त पवित्र नदी में स्नान करने के लिए जाते है ।
☸स्नान के बाद देवताओं का नारियल पानीऔर दूध से अभिषेक किया जाता है।
☸पूजा के लिए ताजा नारियल पानी प्रयोग किया जाता है।
☸इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है।
☸सिंह संक्रान्ति के दिन पूजा करने के बाद गरीबों में दान-पुण्य किया जाता है।
☸इसके बाद गाय के गोबर से मण्डप तैयार किया जाता है।
☸पूजा की सारी तैयारी करने के बाद भगवान शिव की पूजा की जाती है तथा ओम नमः शिवाय का जाप किया जाता है।
सिंह संक्रान्ति शुभ तिथि एवं मुहूर्तः-
सिंह संक्रान्ति पुण्य काल प्रारम्भ:-प्रातः 06ः31 से 01ः44 तक
सिंह संक्रान्ति महा पुण्य कालः- प्रातः 11ः31 से 01ः44 तक