ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और चंद्रमा की विशेष स्थिति
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभाव का विशेष महत्व है। प्रत्येक ग्रह किसी न किसी भाव का स्वामी होता है और उसकी स्थिति के अनुसार वह सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और चंद्रमा को अष्टम भाव के दोष से मुक्त माना जाता है। इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं, जिन्हें इस लेख में विस्तार से समझाया गया है।
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सूर्य: आत्मा का कारक और दोषमुक्त
सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा का कारक माना जाता है। आत्मा सास्वत है, अनादि है और सुख-दुःख से परे है। आत्मा का न तो कोई आरंभ है और न ही कोई अंत। यही कारण है कि सूर्य को अष्टम भाव का स्वामी होने पर भी दोषमुक्त माना जाता है। सूर्य का प्रभाव व्यक्तित्व और आत्मा की शक्ति से संबंधित होता है और आत्मा को कोई दोष नहीं छू सकता।
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चंद्रमा: मन का कारक और दोषमुक्त
चंद्रमा मन का कारक है और मन ही संसार में बंधन और मोक्ष का कारण है। मन को जीतने वाला व्यक्ति सुख-दुःख, लाभ-हानि और जीवन-मृत्यु जैसी द्वंद्वों से परे हो जाता है। यही कारण है कि चंद्रमा, चाहे अष्टम भाव का स्वामी हो, वह भी दोषमुक्त रहता है। चंद्रमा का प्रभाव मानसिक शांति और संतुलन से संबंधित है, जो कि व्यक्ति को उच्चतर आध्यात्मिक स्तर पर ले जाता है।
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सूर्य और चंद्रमा: विशेष स्वामित्व
सूर्य और चंद्रमा को ज्योतिष में एक-एक राशि का स्वामित्व प्राप्त है, जबकि अन्य ग्रहों को दो राशियों का स्वामित्व मिलता है। यह विशेष स्थिति उन्हें अन्य ग्रहों से अलग बनाती है। इस अद्वितीयता के कारण विद्वान ज्योतिषाचार्य सूर्य और चंद्रमा को अष्टम भाव का दोषी नहीं मानते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और चंद्रमा की विशेष स्थिति और उनकी अद्वितीयता के कारण उन्हें अष्टम भाव का दोषमुक्त माना गया है। यह मान्यता ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत विचारणीय है, क्योंकि आत्मा और मन के कारक ये ग्रह उच्चतम आध्यात्मिक स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः, सूर्य और चंद्रमा का स्वामीत्व चाहे किसी भी भाव में हो, वह दोषमुक्त ही रहते हैं।