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हनुमान जी के अलावा सात और लोगों को मिला अमरता का वरदान

सनातन धर्म में महावीर हनुमान जी को चिरंजीवी अर्थात अमर कहा गया है मान्यता के अनुसार बजरंगबली आज भी सशरीर धरती पर उपस्थित हैं परन्तु इन सब में क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी के अलावा 7 और ऐसे चिरंजीवी भी हैं जिन्हें हिन्दू पौराणिक कथाओं में अमर माना गया है।

परशुराम जी

हनुमान जी के अलावा सात और लोगों को मिला अमरता का वरदान 1

परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था जिसे आज भी अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम जी को श्री हरि यानि भगवान विष्णु जी का छठा अवतार कहा जाता है। कहा जाता है शिव जी परशुराम जी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें एक फरसा दिया था जिसे ये आज भी अपने पास लेकर रखते हैं।

कृपाचार्य

कृपाचार्य तीन तपस्वियों में से एक थें, उन्हें सप्तऋषियों में से एक माना जाता है। कृपाचार्य कौरवों और पांडवों दोनों के ही गुरु थे, कृपाचार्य ने दुर्योधन को पांडवों से सन्धि करने के लिए बहुत समझाया था लेकिन उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी। अतः कृपाचार्य को इन्हीं सुकर्मों के कारण अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ।

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विभीषण

सत्य का साथ देने वाले विभीषण की मदद से ही प्रभु श्री राम ने रावण का संहार किया था और देवी सीता को रावण के कैद से आजाद करवाया था। ऐसे में प्रभु श्री राम ने विभीषण को लंका नरेश बनाने के साथ-साथ उन्हें अजर-अमर होने का वरदान दिया था।

महर्षि वेद व्यास

महर्षि वेद व्यास को प्रभु श्री हरि का अंश कहा जाता है उन्होंने ही श्रीमदभगवद् महापुराण समेत कई धार्मिक ग्रन्थों की रचना की, ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वेद व्यास को भी कलिकाल के अंत तक जीवन जीने का वरदान प्राप्त है।

राजा बलि

एक बार सभी देवता दैत्यराज बलि से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी के पास गये। यह जानते हुए विष्णु जी ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी इस तरह से विष्णु जी ने पृथ्वी और स्वर्ग के बदले पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया साथ ही उसे अमरता का वरदान भी प्राप्त हुआ।

ऋषि मार्कण्डेय

ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव जी के परम भक्त थे, इन्होने ने भी अपनी कठोर तपस्या से शिवजी को प्रसन्न किया था जिसके कारण उन्हें शिव जी से अमरता का वरदान मिला था। कहा जाता है कि ऋषि मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र की सिद्धि के कारण ही चिरंजीवी बन गए।

अश्वत्थामा

अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र और महाभारत में कौरवों के सेनापति थे। मान्यता के अनुसार इनके माथे पर एक अमरमणि शोभायमान थी, जिसे अर्जुन ने दंडवश निकाल लिया था जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत काल तक धरती पर भटकने का श्राप वरदान स्वरुप दिया था ।

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