हयग्रीव जयंती | Hayagriva Jayanti Benefit |

क्या है हयग्रीव जयंती

हयग्रीव जयंती के दिन भगवान हयग्रीव की पूजा आराधना की जाती है। मान्यताओं के अनुसार हयग्रीव जयंती के दिन ही भगवान विष्णु पृथ्वी पर हयग्रीव रुप में अवतरित हुए थें।

हयग्रीव को भगवान विष्णु के 24 अवतार में से एक माना जाता है।भगवान हरि के इस अवतार का उद्देश्य राक्षसों द्वारा चुराए गए वेदों को पुनः प्राप्त करना था। भगवान हयग्रीव को ज्ञान और बुद्धि के देवता का भी संज्ञा दिया गया है। हयग्रीव जयंती श्रावण मास के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।

भगवान हयग्रीव की कथा

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान हयग्रीव के अवतार के विषय में दो कथाओं का उल्लेख मिलता है।

प्रथम कथानुसार माना जाता है कि भगवान विष्णु की शक्तियों से देवराज इंद्र ईर्ष्या से भर गए थे और उन्होंने उनका (भगवान विष्णु) विनाश करने का सोचा तथा एक बार देवों ने भगवान हरि को अपनी ठुड्डी धनुष पर टिकाये देखा और वे दीमक के रुप में बदल गए तंग धनुष के एक सिर को वो तब तक चबाते रहे जब तक धनुष टूट नही गया। धनुष की डोर बहुत तीव्रता के साथ टूटी और भगवान विष्णु का धड़ अलग हो गया। भगवान विष्णु के बिना देवता असुरों के सामने असहाय और असुरो ने मधु के इस अवसर का फायदा उठाकर वेदो को चुराकर गहरे पानी के नीचे रख दिया और देवताओं पर भी अधिकार लिया तब इन्द्र और देवताओं को अपने कøत्य पर बहुत पछतावा हुआ उन्होंने भगवान विष्णु को पुनः जीवित करने का निर्णय लिया परन्तु उन्हें केवल भगवान हरि का शरीर ही मिला, सिर ढुढ़ने में वो असमर्थ थें इस अवस्था में देवताओं ने भगवान विष्णु के सिर के स्थान पर घोड़े का सिर रखा और उन्हें जीवित कर दिया। हयग्रीव राक्षसों को हराकर वेदों को वापस लाये इसलिए हयग्रीव अवतार ज्ञान और ज्ञान से जुड़ा माना जाता है।

दूसरी कथा के अनुसार पता चलता है कि कश्यप प्रजापति के पुत्र हयग्रीव ने माँ दुर्गा का घोर और कठिन तपस्या किया। उनके तपस्या से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया और साथ ही आशीर्वाद दिया कोई भी मनुष्य या भगवान उन्हें पराजित नही कर पायेंगे। माँ दुर्गा से वरदान पा जाने के बाद हयग्रीव ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना आरम्भ कर दिया। चारों तरफ उसकी दहशत फैल गई। देवता भी हयग्रीव को पराजित करने में असमर्थ थें यह देखकर भगवान हरि ने धनुष पर अपना सिर टिका दिया और धनुष का तार टूटते ही भगवान हरि का सिर उनके धड़ से अलग हो गया और यह दृश्य देखकर देवता भी भय से कांपने लगे परन्तु मां दुर्गा ने इसका कारण समझ लिया उन्होंने ब्रह्मा जी से भगवान विष्णु के शरीर के लिए एक घोड़े के सिर का संलग्न करने के लिए कहा, इस प्रकार एक अन्य हयग्रीव (भगवान विष्णु के शरीर के साथ) का निर्माण किया गया जो युद्ध में राक्षस हयग्रीव को परास्त किया।

भगवान हयग्रीव का स्वरुप

हयग्रीव जयंती | Hayagriva Jayanti Benefit | 1

भगवान हयग्रीव को भगवान विष्णु के रुप में दर्शाया गया हैं जिसमें मानव के शरीर और घोड़े का सिर, सफेद रंग, सफेद पोशाक धारण किये हुए सफेद कमल पर विराजमान है। हयग्रीव जयंती के दिन ब्राह्मण समुदाय उपकर्म दिवस और अपनी अवित्तम दिवस भी मनाते है। यह एक ऐसा अवसर है जिस समय जनेऊ (यज्ञोपवीत) को बदलकर गया जनेऊ धारण किया जाता है। इस दिन भगवान ब्रह्म की भी पूजा-आराधना की जाती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए छात्रजन भी हयग्रीव की पूजा करते हैं।

हयग्रीव जयंती से जुड़ा मुख्य तथ्य

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राक्षसो से वेदों को पुनस्र्थापित करने के लिए भगवान हरि ने हयग्रीव के रुप में अवतार लिया था। हयग्रीव को पुनर्स्थापना के प्रति निधित्व के रुप में भी जाना जाता है। श्री हरि का यह अवतार उनके गुण, शक्ति, संयोग के लिए उनके 10 अवतारों से अद् वित्तीय है। उनको एक घोड़े के सिर और मानव शरीर के साथ चित्रित किया गया है उनके पहाथ है जिसमे 3 शंख है और वो माला धारण किये हुए है तथा उनका एक हाथ मुद्रा और अपार धन तथा ज्ञान प्रदान करता है।

हयग्रीव जयंती का महत्व

भगवान हयग्रीव का सिर, अश्व या हैया के समान इसलिए उन्हें हयग्रीव के नाम से जाना जाता है।कई क्षेत्रो में भगवान हयग्रीव को संरक्षक देवता के रुप में जाना जाता है। जिन्होंने बुराईयों को दूर तथा धर्म की स्थापना के लिए अवतार लिया था। इस अवतार में अश्व के सिर को उच्च शिक्षा और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।भगवान हयग्रीव का आशीर्वाद सभी को बुलंदियों को छूने तथा ज्ञान को अर्जन के लिए प्रेरित करता है।

हयग्रीव पूजा विधि

☸ श्री हयग्रीव जी का पूजन करते समय पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठें।

☸ सर्वप्रथम भगवान गणेश जी की पूजा-आराधना करें, उन्हें स्नान कराकर वस्त्र अर्पित करें।

☸ तत्पश्चात भगवान श्री हयग्रीव की पूजन करें, उन्हें पंचामृत या जल से स्नान करायें और वस्त्र अर्पित करें उसके बाद उन्हें आभूषण और पुष्प माला पहनाएं।

☸ उसके बाद ओम नमो भगवते आत्म विशोथनाय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हयग्रीव जी को तिलक लगाएं।

☸ तिलक लगाने के बाद अपने हाथ में चावल और पुष्प लें तथा हयग्रीव जी के मंत्र का जाप करते हुए उनका ध्यान करें।

हयग्रीव जी पूजन मंत्र

ओम हयग्रीव नारायणाय नमः लं पृथिष्यात्मकम् गंध समर्पयामि।
ओम हयग्रीव नाराायणाय नमः हं आकाशत्मकम् पुष्पम् समर्पयामि।
ओम हयग्रीव नारायणााय नमः यं वायवात्मकम् धूपम् आघ्रापयामि।
ओम हयग्रीव नारायणायः नमः रं वहन्या त्मकम् दीपम् दर्शयामि।
ओम हयग्रीव नारायणाय नमः वं अमृतात्मकम् नौवेदृयम् निवेद्यामि।
ओम हयग्रीव नारायणाय नमः सौ सर्वात्मकम् सर्वोपचारिणी मनसा परिकल्प्य समर्पयामि।

दिए गए मंत्र से हयग्रीव जी का पूजा करें और मंत्र जप तथा आरती के दौरान हुए जाने अनजाने दोषों केलिए क्षमा प्रार्थना कर सभी परेशानियों और चिंता मुक्ति के लिए कामना करें।

हयग्रीव जयंती तिथि एवं पूजा का समय

वर्ष 2023 में हयग्रीव जयंती 30 अगसत 2023 दिन बुधवार को मनाई जायेगी।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भः- 30 अगस्त 2023 को प्रातः 10ः58 से
पूर्णिमा तिथि समापनः- 31 अगस्त 2023 को प्रातः 07ः05 पर

 

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