हार्ट अटैक के ज्योतिषीय कारण | Astrological reasons for heart attack Benefit |

आज कल की भागदौड़ भरी जिन्दगी तथा अव्यवस्थित जीवनशैली में खुद को पूरी तरह से स्वस्थ रख पाना बहुत ही मुश्किल तथा चुनौती से भरा होता है। दूसरे लोगों से आगे निकलने के चक्कर में व्यक्ति के खाने-पीने, सोने-जागने और उठने-बैठने का क्रम पूरी तरह से बिगड़ गया है परन्तु इन सब में व्यक्ति इस बात को भूल जाता है कि इसका परिणाम कितना घातक हो सकता है। पिछले कुछ समय से हार्ट अटैक की समस्या और दिल का दौरा पड़ने से मौत और गंभीर बीमारियों का आँकड़ा दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। हृदय रोग की समस्या इतनी तेजी से बढ़ रहा है की हार्ट अटैक की बीमारी अब प्रत्येक आयु के लोगों को हो रही है। बहुत से मरीजों की कुण्डली का विश्लेषण और उनसे बातचीत करने पर यह पाया गया है कि यदि हार्ट अटैक का संयोजन आपकी कुण्डली से है तो आपको अच्छे से अच्छा सर्जन या फिर हृदय रोग विशेषज्ञ भी इस रोग से बचा नही सकता है। लगभग कई डाॅक्टरों के अनुसार दिल की बीमारियाँ अत्यधिक तनाव के कारण ही होती है परन्तु इनमें से कुछ कारण ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार भी बताये गये हैं। जिसके कारण हृदय रोग की समस्या बढ़ रही हैं तो आइए हार्ट अटैक होने के कुछ ज्योतिषीय कारण को हम देखते हैं साथ ही इनको दूर करने के उपचारों को भी जानते हैं।

हार्ट अटैक आने के कुछ ज्योतिषीय कारण

☸ आपको यह बात भली-भाँति पता होगी की कुण्डली में छठा घर रोग का स्थान है। कुण्डली का आठवां घर मृत्यु का अैार बारहवां घर व्यक्ति के व्यय यानि खर्चें का स्थान होता है। जो ग्रह जातक की कुण्डली के छठे भाव में हो, अष्टम भाव में हो, बारहवें भाव में हो या फिर छठे घर के मालिक से जो ग्रह उसके साथ हो तो भी हृदय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा सूर्य भी हृदय का प्रतिनिधित्व करता है जिसका कुण्डली में पंचम भाव होता है। जब कभी पंचम भाव, पंचम भाव का स्वामी तथा सिंह राशि पाप प्रभाव में हो तो ऐसी स्थिति में हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। हृदय रोग जैसे योगों के लिए सूर्य पर राहु या केतु में से किसी एक ग्रह का प्रभाव होना भी अति आवश्यक होता है। किसी भी जातक की कुण्डली में हृदय रोग की घटनाएं अचानक से घटित होती हंै जो कि हमेशा राहु-केतु के प्रभाव से ही घटित होती है। हमारी कुण्डली में हार्ट अटैक जैसे रोग भी अचानक से बिना किसी पूर्व सूचना के आता है इसलिए राहु या केतु का प्रभाव भी अति आवश्यक होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में छठे भाव के स्वामी की अष्टम भाव में स्थित गुरु, सूर्य, बुध या शुक्र ग्रह पर दृष्टि पड़ रही हो तो कुण्डली में ऐसी स्थिति से जातक हृदय रोग से पीड़ित होते हैं।

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☸ किसी जातक की कुण्डली में चैथा भाव और दसवां भाव हृदय का कारक होता है। इसके अलावा कुण्डली का चतुर्थ भाव भी चन्द्रमा का आरोग्य कारक होता है। दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु और शनि ग्रह है साथ ही हमारी कुण्डली का पांचवा भाव व्यक्ति के छाती, पेट, लीवर, किडनी और आंतों का होता है ये सभी अंग यदि व्यक्ति का दूषित हो जाएं तो भी हृदय रोग होने की संभावना हो जाती है। बुद्धि अर्थात विचार का भाव होने के कारण गलत विचारों के उत्पन्न होने से भी इस रोग में वृद्धि होती है।

☸ यदि किसी जातक की मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ, मीन राशियां है और उन राशियों का लग्न यदि मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ या मीन लग्न हो तो ऐसी स्थिति में हृदय रोग होने की संभावना अत्यधिक होती है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में छठे भाव का स्वामी केतु के साथ हो तथा गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र ये सभी अष्टम भाव में उपस्थित हो, इसके अलावा चतुर्थ भाव में केतु की उपस्थिति हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी, लग्न का स्वामी, दशम भाव का स्वामी व्ययेश के साथ आठवें भाव में हो और अष्टम भाव का स्वामी वक्री होकर तृतीय भाव का स्वामी बनकर तृतीय भाव में ही उपस्थित हों साथ ही कुण्डली के एकादश भाव का स्वामी लग्न में हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में मंगल ग्रह शनि की दसवीं दृष्टि से पीड़ित हो, कुण्डली के बारहवें भाव में राहु तथा छठे भाव में केतु की उपस्थिति हो इसके अलावा चतुर्थ भाव और लग्न का स्वामी कुण्डली के अष्टम भाव में व्ययेश के साथ युति कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होने की संभावना होती है।

☸ यदि जातक की कुण्डली में अशुभ चन्द्रमा अपनी शत्रु राशि में स्थित हो या किसी दो पाप ग्रहों के साथ कुण्डली के चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ जातक की कुण्डली में यदि सूर्य की राहु या केतु के साथ युति हो या फिर उस पर सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में उसके चतुर्थ भाव में राहु या केतु स्थित हों तथा लग्न का स्वामी पाप ग्रहों से युति कर रहा हो या लग्न के स्वामी पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव में मंगल ग्रह उपस्थित हों और उस पर किसी पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो कुण्डली में ऐसी स्थिति में रक्त के थक्कों के कारण हृदय की गति भी अत्यधिक प्रभावित होती है जिसके कारण जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में शनि ग्रह और गुरु ग्रह कुण्डली के छठे भाव का स्वामी होकर चतुर्थ भाव में स्थित हो तथा किसी पाप ग्रहों से युति कर रहा हो या उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में सूर्य पाप प्रभाव में हो तथा कर्क और सिंह राशि कुण्डली का चैथा भाव, पंचम भाव और उसका स्वामी ग्रह पाप प्रभाव में हो इसके अलावा एकादश, नवम एवं दशम भाव और इनके स्वामी ग्रह भी पाप प्रभाव में हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में नीच बुध के साथ निर्बल सूर्य चतुर्थ भाव में युति कर रहा हो, धन का स्वामी शनि लग्न भाव में उपस्थित हो और कुण्डली के सप्तम भाव में मंगल ग्रह की उपस्थिति हो, कुण्डली के अष्टम भाव का स्वामी तीसरे भाव में उपस्थित हो तथा लग्न का स्वामी गुरु और शुक्र ग्रह के साथ होकर राहु ग्रह से पीड़ित हो साथ ही षष्ठेश राहु के साथ युति कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में लग्न का स्वामी चतुर्थ भाव में निर्बल हो साथ ही पंचम भाव का स्वामी और भाग्य का स्वामी भी निर्बल हो इसके अलावा छठे भाव का स्वामी तृतीय भाव में उपस्थित हो तथा कुण्डली के चतुर्थ भाव पर केतु का प्रभाव हो तो ऐसा जातक हृदय रोग से पीड़ित रहता है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी होकर एकादश भाव में शत्रु क्षेत्र में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी कुण्डली के तीसरे भाव में शत्रु क्षेत्र में हो नवम भाव का स्वामी शत्रु क्षेत्र में हो, षष्ठम भाव का स्वामी नवम भाव में हो इसके आलवा चतुर्थ भाव में मंगल ग्रह और सप्तम भाव में शनि ग्रह की उपस्थिति हो तो कुण्डली में बनी हुई ऐसी स्थिति के कारण जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में पंचम भाव का स्वामी कुण्डली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हे और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि भी पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली के लग्न में शनि ग्रह स्थित हो और दशम भाव का कारक सूर्य शनि ग्रह से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।

☸ यदि कुण्डली में लग्न का स्वामी निर्बल हो तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हो साथ ही कुण्डली के चतुर्थ भाव में राहु स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में मंगल ग्रह सप्तम भाव में निर्बल होकर किसी पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो ऐसी स्थिति में रक्तचाप होने से हृदय की भी गंभीर रुप से पीड़ित होने की संभावना रहती है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में लग्न का स्वामी शत्रु क्षेत्र होकर नीच का हो तथा मंगल ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित होकर शनि ग्रह से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में सूर्य, मंगल और चन्द्रमा की युति कुण्डली के छठे भाव में हो और किसी पाप ग्रह से पीड़ित हो तो कुण्डली में ऐसी स्थिति से जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि जातक की कुण्डली में सूर्य चतुर्थ भाव में स्थित होकर शयनावस्था में हो तो ऐसी स्थिति में जातक के हृदय में तीव्र पीड़ा होने लगती है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में मेष या वृषभ राशि की लग्न कुण्डली हों, कुण्डली के दशम भाव में शनि स्थित हो या दशम और लग्न भाव पर शनि ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में जातक हृदय रोग से पीड़ित रहता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में पंचम भाव का स्वामी नीच का होकर शत्रुक्षेत्री हो या फिर अस्त अवस्था में हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में लग्न का स्वामी चतुर्थ भाव में हो या फिर नीचे राशि में स्थित हो या फिर मंगल के चतुर्थ भाव में पापग्रह से दृष्ट हो या शनि चतुर्थ भाव में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में पंचम, षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव के स्वामी के साथ युति कर रहा हो या पंचम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि कुण्डली में सूर्य चन्द्रमा और मंगल ग्रह शत्रुक्षेत्री हों तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ जातक की कुण्डली में बुध ग्रह प्रथम भाव में, सूर्य और शनि ग्रह छठे भाव के स्वामी या पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में गुरु ग्रह निर्बल होकर छठे भाव के स्वामी या मंगल ग्रह से दृष्ट हों, शनि और गुरु त्रिक भाव यानि 6,8,12 का स्वामी होकर चतुर्थ भाव में स्थित हों साथ ही राहु और मंगल ग्रह की युति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में मंगल, शनि और गुरु ग्रह की युति कुण्डली के चतुर्थ भाव में हो रही हो या सिंह लग्न में सूर्य पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ किसी जातक की कुण्डली में सूर्य और शनि ग्रह की युति कुण्डली के त्रिक भाव या बारहवें भाव में हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

☸ यदि जातक की कुण्डली में केतु और मंगल की युति चतुर्थ भाव में हो या कुण्डली में स्थित अशुभ चन्द्रमा चैथे भाव में हो तथा एक से अधिक पाप ग्रहों की युति कुण्डली के एक ही भाव में हो रही हो तो ऐसी स्थिति में जातक को हृदय रोग होता है।

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हमारे ब्रह्माण्ड में स्थित कौन से ग्रह होते हैं हृदय रोग के जिम्मेदार

वैसे तो किसी व्यक्ति को हृदय रोग होने के कई कारण हो सकते हैं जिनमें से एक कारण ग्रहों का भी होता है। शास्त्रों में कुछ ग्रहों को भी हृदय रोग होने का कारण बताया गया है। ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किन ग्रहों के कारण से होती है हृदय रोग की समस्या-

सूर्य

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हमारे ब्रह्माण्ड में स्थित सूर्य को पिता और आत्मा कारक माना जाता है। अतः सूर्य की शुभ और अशुभ स्थितियों के अनुसार ही रोग की तीव्रता का पता लगाया जाता है। इससे जातक के हृदय रोग के बारे में भी जानकारी हासिल की जाती है।

चन्द्रमा

देखा जाए तो चन्द्रमा को मन और मस्तिष्क का कारक माना जाता है। इस पूरी सृष्टि के समस्त जल तत्वों का प्रतिनिधित्व चन्द्रमा करता है। आपको यह भली-भाँति पता होगा की मनुष्य के शरीर में लगभग 75 प्रतिशत तक पानी होता है। हमारे रक्त में भी पानी होता है जिसका सही मात्रा में तरल होना आवश्यक होता है। हमारा हृदय रक्त को पूरे शरीर में पंप करके पहुंचाने का कार्य करता है। इसलिए हृदय से सम्बन्धित रोगों के लिए चन्द्रमा की स्थिति को भी देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खराब चन्द्रमा को भी हृदय रोग का कारक माना जाता है।

मंगल

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मंगल ग्रह हमारे शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रह होता है। यह ग्रह हमारे शरीर की मांस पेशियों का प्रतिनिधित्व करता है। हमारा हृदय भी मांसपेशियों से बना होता है इसलिए हृदय रोग का सही विश्लेषण करते समय मंगल ग्रह की स्थिति कुण्डली में देखना अति आवश्यक होता है।

राहु

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राहु एक ऐसा ग्रह है जो किसी भी बीमारी, दुर्घटना और घटनाओं को अचानक से लाने वाला होता है साथ ही किसी जातक की बीमारी को भी बहुत गंभीर अवस्था तक पहुँचा देता है। ऐसे में यदि जातक को हृदय रोग हैं तो कुण्डली में राहु की स्थिति को देखना अति आवश्यक होता है राहु से यह देखा जाता है की कहीं व्यक्ति को अचानक से हार्ट अटैक तो नही आयेगा।

हमारी कुण्डली के कौन-कौन से भाव होते हैं हृदय रोग के जिम्मेदार

हृदय रोग से सम्बन्धित बीमारियों के बारे में जानने के लिए केवल ग्रहों को देखकर ही किसी बीमारी के बारे में भविष्यवाणी करना उचित नही हैं बल्कि जन्म कुण्डली के भाव और उनमें उपस्थित शुभ और अशुभ ग्रहों की स्थितियों का आंकलन करना भी अत्यधिक आवश्यक होता है अन्यथा इससे मिली हुई जानकारी के अनुसार हम हृदय रोग की बीमारी का पता नही लगा पायेंगे।

लग्न भाव

किसी भी जातक की जन्म कुण्डली का प्रथम भाव, लग्न भाव कहलाता है। कुण्डली के प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, रुप, रंग इत्यादि के साथ-साथ हृदय से जुड़े रोगों के बारे में भी जाना जाता है। कुण्डली के इस भाव से ग्रहों के उच्च और नीच होने की अवस्था में हृदय रोग का पता लगाया जाता है।

चतुर्थ भाव

किसी जातक की जन्म कुण्डली का चतुर्थ भाव सुख का स्थान कहलाता है इसके अलावा इस भाव को हृदय स्थान भी कहते हैं देखा जाए तो कुण्डली के इस भाव से भी हृदय से सम्बन्धित रोगों का पता लगाया जाता है। इसमें हृदय से सम्बन्धित अन्य क्रिया कलाप भी आते हैं। जैसे व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति तथा हृदय में होने वाले समय-समय पर बदलाव आदि इसलिए कुण्डली के चतुर्थ भाव से भी हम अपने हृदय की स्थिति को देख पाते हैं।

षष्ठम भाव

कुण्डली का छठा भाव हमारी किसी भी प्रकार की बीमारियों को बताता है। इस भाव का सही तरीके से विश्लेषण करवा लेने के दौरान हृदय सम्बन्धित समस्या का भी पता लगाया जा सकता है। इस भाव के द्वारा हम छोटी या लम्बे समय से हो रही बीमारियों की जानकारी हासिल कर सकते हैं।

अष्टम भाव

हमारी कुण्डली का आठवां भाव मृत्यु का स्थान होता है इस भाव से हमें अपने भविष्य में होने वाले किसी भी प्रकार के रोगों की जानकारी होती हैं। इसके अलावा अचानक से होने वाली मृत्यु का पता भी कुण्डली के इसी भाव से लगाया जाता है। अक्सर करके लोगों की मृत्यु आजकल के समय में हार्ट अटैक से ही हो रही हैं और आकस्मिक मृत्यु कई बार हार्ट अटैक से भी हो जाती है इसलिए इस भाव में मौजूद ग्रहों का विश्लेषण करना भी अति आवश्यक होता है।

हृदय रोग से बचने के लिए कुछ ज्योतिषीय उपाय

☸ बात करते हैं हृदय रोगों से बचाव की तो हमारे शरीर में जब तक हृदय का धड़कना जारी रहता है तभी तक हम जीवित रह सकते हैं। इसलिए इस बात का अंदाजा हमें भली-भाँति होगा की स्वस्थ रहना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण होता है। हमें अपने हृदय का ख्याल रखने के लिए ज्यादा मेहनत की आवश्यकता नही होती हैं परन्तु फिर भी अधिकतर लोग अपने हृदय की सेहत का ध्यान रखना जरुरी नही समझते हैं और उसे नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसी स्थिति में अपने हृदय को पूरी तरह स्वस्थ रखने के लिए हमें अपने दिनचर्या के आदतों में कुछ अच्छी आदतों को शामिल करके बुरी आदतों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए तथा कुछ ऐसे उपाय भी करने चाहिए जिससे हम हृदय की इस खतरनाक बीमारी से बच सकें तो आइए हम हृदय रोग से बचने के कुछ उपायों को ज्योतिष विज्ञान की मैगजीन में देखते हैं।

☸ हृदय रोग से बचाव के लिए पका हुआ काशीफल यानि कद्दू लेकर उसके बीज निकालकर किसी भी मंदिर में ईश्वर से स्वस्थ होने की प्रार्थना करते हुए रख दें। यह उपाय सूर्योदय के बाद या फिर सूर्योदय से पूर्व करें। इन उपायों को व्यक्ति अपने रोगियों के लिए भी कर सकता है। यह उपाय तीन दिन कर सकते हैं यदि अधिक कष्ट हैं तो इन उपायों को ज्यादा दिन भी कर सकते हैं।

☸ हृदय के रोगियों के सिरहाने एक सिक्का रखकर उसे अगले दिन श्रद्धापूर्वक सूर्योदय होने के उपरान्त भिखारियों को दान में दे दें, ऐसा लगभग 43 दिन तक बिना नागा किए करें। इससे हृदय के रोगियों को लाभ की प्राप्ति होती है।

☸ घृत कुमारी का रस, पान के पत्ते का रस, तुलसी के पत्ते का रस, ताजे गिलोय के पंचांग का रस, लहसुन की कली और सेब का सिरका इन सभी को एक समान मात्रा में उबालकर, उसमें एक चौथाई शहद के साथ उबाल लें और प्रतिदिन नियमित रुप से एक चम्मच खाली पेट लें, ऐसा करने से हृदय से बचाव होने के साथ-साथ और भी अन्य रोग में भी जातक को मजबूती प्रदान करता है। इन उपायों को करने से हृदय रोग जैसी विभिन्न बीमारियों से बच सकते हैं।

☸ अत्यधिक नमक का सेवन करने से हाई ब्लड प्रेशर होने की संभावना अधिक रहती है जो हृदय रोग, हार्ट अटैक और कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर के लिए एक प्रमुख कारण माना जाता है। अत्यधिक नमक का सेवन करने से जातक के शरीर में पानी अत्यधिक मात्रा में जमा रहता है वास्तव में शरीर में द्रव पदार्थ के जमा होने की बिगड़ती स्थिति का संबंध हार्ट फेल्योर से होता हैं इसलिए हमें प्रतिदिन 6 ग्राम नमक से भी कम नमक का सेवन करना चाहिए जिसे हृदय रोग होने की संभावना ना के बराबर हों और हम हार्ट अटैक जैसी खतरनाक बीमारी से बच सकें।

☸ यदि आप दिन-प्रतिदिन अपने शारीरिक गतिविधियों में कमी ला रहे हैं तो यह भी हृदय जैसे रोग के लिए खतरे से कम नही है। यदि हम अपने शरीर को आलसी बना रहे हैं और अपने शरीर से किसी प्रकार का काम नही ले रहे हैं तो हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और हृदय से सम्बन्धित अन्य समस्याएं उत्पन्न होती है। पैदल चलना आपके सेहत के लिए अत्यधिक फायदेमंद हो सकता है। रोजाना 30 से 40 मिनट तक पैदल तेज चलने से शरीर में लचीलापन आता है। ऐसा करने से हृदय जैसे रोगों से बचा जा सकता है।

☸ अत्यधिक मात्रा में धूम्रपान और तम्बाकू का सेवन करने से शरीर में मौजूद धमनियों की लाइनिंग को काफी नुकसान झेलना पड़ता है साथ ही उसमें वसायुक्त (एथेरोमा) जमा होने लगती है जिसके कारण हमारे शरीर की धमनियाँ संकरी हो जाती है और इन्हीं कारणों से हार्ट अटैक या स्ट्रोक आने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। तंबाकू में स्थित कार्बन मोनोआॅक्साइड हमारे शरीर में मौजूद खून में आॅक्सीजन की मात्रा को कम करता हैं जिसके कारण आॅक्सीजन की पूर्ति करने के लिए हमारे हृदय को शरीर तक शुद्ध खून पहुंचाने के लिए और ज्यादा पंपिया करनी पड़ती है। इसलिए अपने आपको हार्ट अटैक से बचाने के लिए धूम्रपान और तंबाकू के सेवन से बचना चाहिए।

☸ यदि आपको किसी बात का तनाव है तो अत्यधिक तनाव होने के कारण भी हार्ट अटैक होने की संभावना ज्यादा होती है। एक अच्छा स्वास्थ्य पानें तथा हृदय के रोगों से बचने के लिए हर प्रकार के तनाव से बचना एक व्यक्ति के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है। ऐसा करने से हम हार्ट अटैक से बच सकते हैं।

☸ अत्यधिक शराब का सेवन करने से भी हमारे शरीर में हाई ब्लड प्रेशर, खून में फैट तथा हृदय रोग होने जैसी संभावनाएं रहती हैं। किसी भी मात्रा में शराब का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही होता है। इसलिए अपने स्वास्थ्य तथा हृदय रोग की सुरक्षा के लिए शराब का सेवन बिल्कुल भी ना करें।

☸ हृदय से सम्बन्धित रोगों को दूर करने के लिए मुट्ठी भर बादाम या बादाम का दूध पीने से इससे सम्बन्धित लक्षण बहुत कम दिखाई देते हैं। साथ ही जो जातक हफ्ते में 150 ग्राम के आस-पास ड्राई फ्रूट खाते हैं उनमें हृदय की बीमारी होने का खतरा लगभग एक तिहाई कम हो जाता है। अत्यधिक मात्रा में ड्राई फ्रूट का सेवन न करें अन्यथा आपका वजन बढ़ सकता है।

☸ रोजाना एक चम्मच हल्दी को दूध या पानी में घोलकर पीना हृदय रोग में फायदे मंद होता है इससे भी हार्ट अटैक जैसी बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है।

☸ रोजाना एक से दो चम्मच मेथी और अलसी का सेवन करने से हृदय से सम्बन्धित रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

☸ सूर्योदय के दौरान रविवार को 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करने से हृदय रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।

☸ सोमवार को रात में सोने से पहले आरामदायक स्थिति में बैठकर चन्द्रमा के मंत्र ।। ओम सोम सोमाय नमः ।। का 108 बार जाप करने से हृदय रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

☸ मंगलवार के दिन पूजा करते समय मंगल ग्रह के मंत्र ।। ओम अं अंगारकार नमः ।। मंत्रों का 108 बार जाप करें इससे हृदय रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

☸ कुछ शोधों के अनुसार यह पता चला है कि ग्रीन टी हमारे शरीर में उपस्थित बैड कोलेस्ट्राॅल के स्तर को कम करता है साथ ही व्यक्ति की हाई बी.पी को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। अतः हृदय रोग को कम करने के लिए रोजाना दो से चार कप ग्रीन टी पीना फायदेमंद रहता है। यह हृदय के रोगों को पूरी तरह से दूर करने में मदद करता है।

☸ लाल मिर्च हृदय रोगों के लिए अत्यधिक फायदेमंद होता है। यह रक्त वाहिका के लचीलेपन में अत्यधिक सुधार करता हैं जिससे आपका शरीर हर समय स्वस्थ रहता है। वास्तव में लाल मिर्च रक्त का थक्का जमने से रोकता है जिससे जातक को हृदय से सम्बन्धित रोग होने की संभावनाएं बहुत कम होती है।