हिन्दू धर्म में मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार पूरे भारत और नेपाल देश में मनाया जाता है। आपको बता दें पौष माह में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे ही मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना प्रारम्भ कर देते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन से ही ऋतुओं में परिवर्तन होने लगता है। इस समय शरद ऋतु क्षीण हो जाती है तथा बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है जिसके फलस्वरूप दिन लम्बी और रातें छोटी होने लगती है। कुछ जगहों पर मकर संक्रान्ति के इस पर्व को उत्तरायण भी कहते हैं।
मकर संक्रान्ति का यह पर्व भारत के कई अलग-अलग प्रांतों में भी अलग-अलग नाम और रीति-रिवाजों के द्वारा पूरी भक्ति और उत्साह के साथ मनाते हैं। तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल तथा कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इसे केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
हरियाणा में मकर संक्रान्ति को लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले ही मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रान्ति के पर्व का अत्यधिक महत्व होता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से दान का पर्व माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन गंगा स्नान करने के बाद दान-दक्षिणा देने की परम्परा होती है। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान को ब्राह्मणों में दान किया जाता है। बिहार में मकर संक्रान्ति के पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। सभी भक्तों के द्वारा इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, जौ, ऊनी वस्त्र, कम्बल तथा स्वर्ण इत्यादि दान करने का अपना अलग महत्व होता है।
मकर संक्रान्ति का महत्व
हिन्दू धर्म में मकर संक्रान्ति का बड़ा ही महत्व होता है इस दिन हिन्दू धर्म के सभी भक्त गंगा स्नान करके सूर्यदेव की आराधना करते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं और शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन को कहीं न कहीं नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसी कारणवश इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण इत्यादि धार्मिक क्रिया कलापों का विशेष महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन किये गये दान-दक्षिणा से जातक को इसके सौ गुना बढ़कर पुण्य प्राप्त होते हैं। इस दिन किये गये गंगा स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव की पूजा-अर्चना करने से जातक के जीवन में आये हुए सभी कष्ट दूर हो जाते हैं साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है।
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रान्ति की बात करें तो इस दिन भगवान सूर्य देव स्वयं अपने पुत्र शनि देव से मिलने के लिए मकर राशि में प्रवेश करते हैं। शनिदेव के मकर राशि का स्वामी होने के कारण ही इस दिन को भी मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह ने भी इसी दिन अपने प्राण त्यागे थे। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जाकर मिल गई थी।
मकर संक्रान्ति के दिन की परम्पराएँ
मकर संक्रान्ति के दिन की परम्परा के अनुसार इस दिन तिल और गुड़ से बने हुए मीठे लड्डू तथा अन्य तरह के मीठे पकवान बनाने की परम्परा होती है। वास्तव में तिल और गुड़ के सेवन से ठंडे मौसम में शरीर को गर्मी मिलती है जो कि जातक के स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभदायक होते हैं। इस दिन के बने हुए लड्डूओं और मीठे पकवानों को खाने और खिलाने से जातक के रिश्तों के बीच आई हुई सारी कड़वाहटें हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं तथा उन्हें अपने रिश्तों में आई हुई सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन में आगे बढ़ने का मौका मिलता है। इस दिन तिल से बनी हुई मिठाइयों को खाने से वाणी में मधुरता भी दिखाई देती है तथा जातक के जीवन में खुशियों का संचार होता है। मकर संक्रान्ति के दिन तिल और गुड़ से बने लड्डुओं तथा मिठाइयों को बाँटने की परम्परा भी होती है।
मकर संक्रान्ति के शुभ अवसर पर तिल और गुड़ से बनी मिठाईयाँ खाने और खिलाने के अलावा पतंग उड़ाने की परम्परा भी बहुत ही पुरानी है। आपको बता दें गुजरात और मध्य प्रदेश के साथ-साथ कई अन्य राज्यों में भी मकर संक्रान्ति के दौरान पतंग उड़ाने का आयोजन किया जाता है। इस शुभ अवसर पर बच्चोसे लेकर बड़े तक सभी लोग पतंगबाजी करके पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता तक रखते हैं। इस दिन पतंग उड़ाने की परम्परा के दौरान पूरा आकाश रंग बिरंगा दिखाई देता प्रतीत होता है।
मकर संक्रान्ति की कथा
पौराणिाक कथाओं के अनुसार सूर्यदेव और उनके पुत्र के बहुत अच्छे रिश्ते नही थे इसकी वजह सूर्य देव का शनिदेव की माता के प्रति बहुत खराब व्यवहार था जब शनिदेव का जन्म हुआ तो शनिदेव का काला रंग देखकर सूर्यदेव अत्यधिक क्रोधित हो गये और क्रोधित होकर सूर्यदेव ने कहा कि इतना काला पुत्र मेरा नही हो सकता। अतः शनिदेव के जन्म के बाद से ही सूर्य देव ने स्वयं से शनिदेव और उनकी माता छाया को हमेशा के लिए अलग कर दिया।
छाया ने दिया अपने पति सूर्यदेव को श्राप
सूर्य देव के इस व्यवहार से सूर्यदेव की पत्नी छाया बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गई थी। क्रोधित होकर उन्होंने सूर्यदेव को कुष्ठ होने का श्राप दिया, छाया के इस श्राप से अत्यधिक क्रोधित होकर सूर्यदेव ने छाया और शनिदेव का घर पूरी तरह से जलाकर राख कर दिया।
इसके बाद सूर्यदेव की पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यम ने सूर्यदेव को छाया के श्राप से मुक्त करा दिया और यम ने अपने पिता सूर्यदेव के सामने यह शर्त रखी कि माँ छाया और शनि के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव लायें तभी सूर्यदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे अपनी पत्नी और पुत्र से मिलने उनके घर पहुँचे वहाँ जाते ही उन्होंने यह देखा की वहाँ सब कुछ जलकर बर्बाद हो चुका है।
सूर्यदेव के पहुँचते ही पुत्र शनि ने किया पिता का स्वागत
शनि देव अपने पिता सूर्यदेव को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पिता का स्वागत काले तिल से किया। अपने पुत्र के इस व्यवहार और स्वागत से सूर्यदेव अत्यधिक प्रसन्न हुए तभी उन्होंने शनिदेव को एक नया घर दिया जिसका नाम मकर था। ऐसे में सूर्यदेव के आशीर्वाद से ही शनिदेव कुंभ और मकर राशि के स्वामी कहलाने लगे।
सूर्यदेव ने अपने पुत्र शनि को यह आशीर्वाद दिया कि मै जब भी तुमसे मिलने के लिए तुम्हारे घर आऊँगा तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जायेगा। इसके साथ-साथ सूर्यदेव ने यह भी कहा कि मकर संक्रान्ति के अवसर पर जो भी मुझे काले तिल अर्पित करेगा उसके जीवन में सुख-समृद्धि आयेगी। इसलिए मकर संक्रान्ति के शुभ अवसर पर सूर्यदेव की पूजा के दौरान काले तिल का इस्तेमाल करने से जातक के घर में धन-धान्य की कभी कोई कमी नही रहती है।
मकर संक्रान्ति की पूजा विधि
☸ मकर संक्रान्ति की पूजा करने के लिए सबसे पहले गंगा स्नान कर साफ-सुथरे हो जायें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
☸ उसके बाद ताँबे के एक पात्र में जल, सिन्दुर, लाल पुष्प और तिल मिलाकर उगते हुए सूरज को तीन बार ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः मंत्र का उच्चारण करके जलार्पण करें और यदि नदी में स्नान कर रहे हैं तो अपने हाथ की उंगली से सूर्यदेव को जलार्पण करें।
☸ उसके बाद पूजा के स्थान को अच्छे से साफ-सुथरा कर लें।
☸ एक थाली में 4 काले और 4 सफेद तिल के लड्डू रखें साथ ही कुछ पैसे भी रखकर भगवान को अर्पित करें।
☸ तिल अर्पित कर लेने के बाद चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान का पत्ता, शुद्ध जल, फूल और अगरबत्ती रखें।
☸ यह सभी सामग्रियाँ पूजा स्थान पर सूर्यदेव के नाम से चढ़ा लेने के बाद सूर्यदेव की आरती करें।
☸ पूजा के दौरान सभी महिलाएँ अपना सिर ढककर रखें।
☸ अंत में सूर्य मंत्र ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः का कम से कम 21 या 108 बार उच्चारण करें।
☸ पूजा समाप्त हो जाने के बाद सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त करें और प्रसाद वितरण करें।
मकर संक्रान्ति शुभ मुहूर्त
मकर संक्रान्ति 15 जनवरी 2024 को सोमवार के दिन मनायी जायेगी।
मकर संक्रान्ति पुण्य कालः- सुबह 07ः15 मिनट से, रात्रि 05ः46 मिनट तक।
मकर संक्रान्ति महा पुण्य कालः- सुबह 07ः15 मिनट से, सुबह 09ः00 बजे तक।