3 नवम्बर 2024. चित्रगुप्त पूजा
हिन्दू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त की पूजा करने का विधान है। इस दिन चित्रगुप्त की पूजा करने का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसे व्यापार में उन्नति का वरदान देने वाला माना जाता है। कायस्थ समाज में चित्रगुप्त को एक प्रमुख आराध्य देवता के रूप में पूजा जाता है, इस दिन को यम द्वितीया भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में, चित्रगुप्त उन देवताओं में से हैं जो मनुष्यों के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। वे स्वर्गलोक में धर्मराज के सहायक और मुख्य लेखपाल के रूप में कार्य करते हैं। चित्रगुप्त की पूजा यमराज के सहायक के रूप में की जाती है, ये व्यक्ति के जीवन में किए गए सभी कर्मों का हिसाब रखते हैं। मान्यता है कि चित्रगुप्त की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में उन्नति, मधुर वाणी और बुद्धि में वृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन की पूजा से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और प्रगति आती है।
कायस्थ समाज के प्रवर्तक थे भगवान चित्रगुप्तः-
मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त का जन्म सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी के शरीर से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। चूंकि वे भगवान ब्रह्मा के शरीर यानी काया से उत्पन्न हुए, इसलिए उन्हें कायस्थ भी कहा जाता है। पृथ्वी पर उन्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है। चित्रों में उन्हें हमेशा कलम और दवात (स्याही की बोतल) के साथ दर्शाया जाता है।
कायस्थ समुदाय का मानना है कि वे भगवान चित्रगुप्त के वंशज हैं, जिन्हें चित्रांश कहा जाता है। इसी कारण से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
चित्रगुप्त की पूजा करने का महत्वः-
भगवान चित्रगुप्त का मुख्य कार्य लोगों के कर्मों का हिसाब रखना है, इसलिए इन्हें कलम के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। भाई दूज के दिन कलम को चित्रगुप्त की प्रतिमा के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चित्रगुप्त जी की पूजा करने से बुद्धि, वाणी और लेखन में आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस दिन का खास महत्व व्यवसायियों के लिए होता है। व्यापारी नई किताबों पर श्री लिखकर अपने काम की शुरुआत करते हैं और अपने सभी आय-व्यय का विवरण चित्रगुप्त जी के सामने रखते हैं। लोग इस दिन को चित्रगुप्त जयंती के रूप में भी मनाते हैं और लेखन एवं स्याही की पूजा करते हैं। इसके अलावा, लोग इस दिन लेखन से जुड़े कार्यों को भी रोक देते हैं। चित्रगुप्त पूजा को दावत पूजन के नाम से भी जाना जाता है।
श्री चित्रगुप्त भगवान की कथाः
भीष्म पितामह नंे पुलस्त्य मुनि से पूछा, हे महामुनि, संसार में कायस्थ नाम से विख्यात मनुष्य किस वंश में उत्पन्न हुए हैं और किस वर्ण में कहे जाते हैं? मैं इस पवित्र कथा को जानना चाहता हूँ।भीष्म के इस प्रश्न को सुनकर पुलस्त्य मुनि ने प्रसन्न होकर कहा, हे गंगेय, मैं आपको कायस्थ उत्पत्ति की पवित्र कथा सुनाता हूँ।
पुलस्त्य मुनि नंे कहा, ब्रह्मा नंे सृष्टि की कल्पना की और विभिन्न जातियों को उत्पन्न किया। उन्होंने कहा कि उनके मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य और पैर से शूद्र उत्पन्न हुए। इसी प्रकार, उन्होंने जीवों को भी उत्पन्न किया। फिर, उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र को, जो सूर्य के समान तेजस्वी था, यह कार्य सौंपा।
ब्रह्मा नें अपनी समाधि में लीन होकर दस हजार वर्षों तक ध्यान किया। अंत में, उनकी समाधि से एक तेजस्वी पुरुष प्रकट हुआ। ब्रह्मा ने पूछा, हे पुरुषोत्तम, आप कौन हैं? उस पुरुष नें कहा, हे तात, मैं आपके शरीर से उत्पन्न हुआ हूँ। कृृपया मेरा नामकरण करें। ब्रह्मा नंे कहा, तुम्हारा नाम चित्रगुप्त होगा। तुम धर्मराज की यमपुरी में निवास करोगे।
चित्रगुप्त का प्रथम विवाह सूर्यनारायण के पुत्र श्राद्धादेव मुनि की कन्या नंदनी एरावती से हुआ। उनके चार पुत्र हुए।
धर्मध्वज (भानु) – जिन्होंने श्रीवास्तव वंश को जन्म दिया।
मतिमान (समदयालु) – जिन्होंने सक्सेना वंश को जन्म दिया।
चारु (युगन्धर) – जिन्होंने माथुर वंश को जन्म दिया।
सुचारू (धर्मयुज) – जिन्होंने गौंड वंश को जन्म दिया।
चित्रगुप्त का दूसरा विवाह सुशर्मा ऋषि की कन्या शोभावती से हुआ, जिससे आठ पुत्र हुए।
करुण (सुमति) – जिन्होंने कर्ण वंश को जन्म दिया।
चित्रचारू (दामोदर) – जिन्होंने निगम वंश को जन्म दिया।
भानुप्रकाश – जिन्होंने भटनागर वंश को जन्म दिया।
युगन्धर – जिन्होंने अम्बष्ठ वंश को जन्म दिया।
वीर्यवान (दीनदयालु) – जिन्होंने आस्थाना वंश को जन्म दिया।
जीतेंद्रीय (सदानंद) – जिन्होंने कुलश्रेष्ठ वंश को जन्म दिया।
विश्वमानु (राघवराम) – जिन्होंने बाल्मीक वंश को जन्म दिया।
चित्रगुप्त नें अपने सभी पुत्रों को धर्म की साधना करने और देवताओं, पितरों का पूजन करने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि उन्हें सदैव श्रद्धा और सेवा के साथ कार्य करना चाहिए।
एक दिन, एक दुराचारी राजा सौदास नंे अपने राज्य में कहा कि कोई भी दान, धर्म, हवन आदि न करे। इस कारण से उसके राज्य में पुण्य समाप्त हो गया। लेकिन एक दिन, जब राजा सौदास चित्रगुप्त की पूजा देखता है, तो वह भी पूजा करने का निश्चय करता है।
राजा सौदास नंे विधिपूर्वक पूजा की और उसी क्षण उसके पाप समाप्त हो गए। चित्रगुप्त नंे यमराज से कहा कि राजा सौदास नंे भक्ति से उनकी पूजा की है, इसलिए वह बैकुंठ लोक जाए।
पुलस्त्य मुनि नें भीष्म से कहा कि जो भी सामान्य मनुष्य या कायस्थ चित्रगुप्त की पूजा करेगा, वह पाप से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त करेगा और जो इस कथा को भक्ति से सुनेंगे, वे दीर्घायु और सुखी होंगे, इस प्रकार भीष्म नंे श्रद्धा से चित्रगुप्त की पूजा की। इस प्रकार से चित्रगुप्त की कथा समस्त कायस्थों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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चित्रगुप्त पूजा विधिः
पूजा प्रारंभ करने से पहले स्वच्छता का ध्यान रखें। अच्छे से स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
एक साफ स्थान पर चित्रगुप्त की प्रतिमा या चित्र रखें। थाली में दीपक, फूल, मिठाई और फल रखें।
दीपक जलाकर भगवान चित्रगुप्त को समर्पित करें। यह प्रकाश अंधकार को दूर करने का प्रतीक है।
भगवान चित्रगुप्त को सुगंधित धूप अर्पित करें और उनके सामने फूल रखें।
पूजा में एक कलम और कागज अवश्य रखें।
अब भगवान चित्रगुप्त से प्रार्थना करें कि वे आपको बुद्धि और लेखन में सफलता दें।
चित्रगुप्त की पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप करेंः
ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः
अंत में भगवान की आरती करें और उन्हें मिठाई और फल का भोग अर्पित करें।
आरती करने के बाद जय चित्रगुप्त का नारा लगाएं।
भगवान चित्रगुप्त से आशीर्वाद मांगें कि आपके लेखन, वाणी और बुद्धि में उन्नति हो।
यदि आप व्यापारी हैं, तो इस दिन अपने सभी आय-व्यय का विवरण चित्रगुप्त जी के सामने रखें।
पूजा के बाद, प्रसाद सभी को वितरित करें और पूजा का समापन करें।
चित्रगुप्त जी का प्रार्थना मंत्र-
मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम््।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम् ।।
मंत्र- ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः
श्री चित्रगुप्त जी की आरती
जय चित्रगुप्त यमेश, तव
शरणागतम, शरणागतम।
जय पूज्य पद पद्मेश, तव
शरणागतम, शरणागतम॥
जय देव देव दयानिधे,
जय दीनबंधु कृृपानिधे।
कर्मेश तव, धर्मेश तव
शरणागतम, शरणागतम॥
जय चित्र अवतारी प्रभो,
जय लेखनीधारी विभो।
जय श्याम तन चित्रेश, तव
शरणागतम, शरणागतम॥
पुरुषादि भगवत् अंश,
जय कायस्थ कुल अवतंश।
जय शक्ति बुद्धि विशेष, तव
शरणागतम, शरणागतम॥
जय विज्ञ मंत्री धर्म के,
ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांतिमय न्यायेश, तव
शरणागतम, शरणागतम॥
तव नाथ नाम प्रताप से,
छूट जाएँ भय त्रय ताप से।
हों दूर सर्व क्लेश, तव
शरणागतम, शरणागतम॥
हों दीन अनुरागी हरि,
चाहें दया दृृष्टि तेरी।
कीजै कृृपा करुणेश, तव
शरणागतम, शरणागतम॥