वट सावित्री का पर्व हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और खास माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह व्रत महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। सभी सुहागिन महिलाएँ सोलह श्रृंगार करके इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक संपन्न करती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष का विशेष महत्व होता है। इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास माना जाता है। वट सावित्री व्रत के दौरान वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन करने और व्रत की कथा सुनने से व्रत करने वालों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, इसलिए इसे ज्ञान, निर्वाण और दीर्घायु का प्रतीक भी माना जाता है।
जो महिलाएँ इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर बरगद के वृक्ष की पूजा-अर्चना करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है और उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके अलावा, इस व्रत को करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। वट वृक्ष हमारे लिए कई तरह से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह दीर्घकालिक और गंभीर रोगों का नाश करने की क्षमता रखता है, इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है।
आइये जानें ज्योतिषाचार्य के.एम. सिन्हा द्वारा वट सावित्री व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा अश्वपति की एकमात्र संतान सावित्री थी, जिसका विवाह सत्यवान से हुआ था। नारद मुनि ने अश्वपति को सत्यवान के सभी गुणों के साथ यह भी बताया कि सत्यवान की मृत्यु एक वर्ष बाद हो जाएगी। यह सुनकर अश्वपति ने सावित्री को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन सावित्री ने निश्चय किया कि वह केवल सत्यवान से ही विवाह करेंगी। विवाह के बाद सत्यवान अपने माता-पिता और सावित्री के साथ वन में रहने लगे। सत्यवान की मृत्यु का समय जानकर सावित्री ने पहले से ही उपवास रखना शुरू कर दिया।
समय बीतता गया और सत्यवान की मृत्यु का दिन आ गया। उस दिन सावित्री और सत्यवान दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए। जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़ा, उसके सिर में तीव्र दर्द होने लगा और वह वृक्ष से गिरकर सावित्री की गोद में आ गिरा। कुछ समय बाद, यमराज का दूत सत्यवान को लेने आया। सावित्री भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ी। यह देखकर यमराज ने कहा कि तुम्हारा अपने पति के साथ धरती पर यही तक का साथ था, आगे का रास्ता तुम्हें अकेले ही तय करना होगा परंतु सावित्री ने उत्तर दिया कि जहाँ-जहाँ मेरे पति जाएंगे, वहाँ-वहाँ मैं भी जाऊंगी।
यमराज सावित्री का यह पतिव्रता धर्म देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ और सावित्री से वर सांगने को कहा उसने वर में अपने सास-ससुर के आँखों की रौशनी और उनका खोया हुआ राजपाट माँगा, उसके बाद सावित्री फिर से यमराज के पीछे जाने लगी तब यमराज ने उससे एक और वर माँगने को कहा तब उसने यमराज से सत्यवान के 100 पुत्रों का वर माँगा, यह वर सुनते ही सावित्री को वरदान देकर यमराज ने सत्यवान के प्राण पुनः लौटा दिये। जब सावित्री दुखी होकर पुनः उस वृक्ष के पास आयी तो उसका पति सत्यवान जीवित हो गया। अपने पति को साथ लेकर अपने सास-ससुर के पास गई तो उसके आँखों की रौशनी वापस आ गई और उन्हें उनका राजपाट भी प्राप्त हो गया। इस तरह से सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से छुड़ाकर वापस ले आई थी इसलिए इस व्रत का धार्मिक दृृष्टिकोण में से अत्यधिक महत्व होता है।
वट सावित्री पूजन विधि
☸ वट सावित्री की पूजा के दौरान सभी सुहागिन महिलाएं सूर्योदय होने से पहले उठें।
☸ स्नानादि कर लेने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके अच्छे से श्रृंगार इत्यादि करें।
☸ उसके बाद बरगद के वट वृक्ष की जड़ पर जल अर्पित कर गुड़, चना, फल, अक्षत तथा पुष्प अर्पित करें।
☸ उसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही वट सावित्री के व्रत की कथा श्रद्धापूर्वक उच्च स्वर से पढ़ें अथवा सुनें।
☸ कथा सुन लेने के बाद वट वृक्ष के चारों ओर लाल या पीला धागा वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उस वृक्ष में बाँधें।
☸ उसके बाद पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर अपने पति की लम्बी आयु के लिए कामना करें।
☸ अंत में धूप, दीप और आरती करके अपने घर के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लें।
☸ अगले दिन अपने व्रत पूजा करने के बाद ही खोलें।
☸ सुहाग के सामान का दान करना भी इस व्रत के दौरान शुभ माना जाता है।
वट सावित्री शुभ मुहूर्तः-
वट सावित्री का व्रत 6 जून 2024 को बृहस्पतिवार के दिन मनाया जायेगा।
अमावस्या तिथि प्रारम्भः- 05 जून 2024, शाम 07ः54 मिनट से,
अमावस्या तिथि समाप्तः-06 जून 2024, शाम 06ः07 मिनट तक।