ऐसे करें माँ शैलपुत्री की पूजा और पूर्ण करें मनोकामना
नवरात्रि दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है नौ राते। हिन्दू धर्म में आने वाली नवरात्रि का बहुत महत्व होता है। इस नवरात्रि में भक्त अपने मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए माता के नौ रुपों की पूजा करते शैलपुत्री एक संस्कृत नाम है जिसका अर्थ है शैल की पुत्री अर्थात चट्टान की पुत्री। माता का प्रथम रुप शैलपुत्री माता का है तो आज हम प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा जानेंगे कि माँ शैलपुत्री की पूजा कैसे करें तथा इस पूजा का क्या महत्व है ?
माता शैलपुत्री का स्वरुप
नवरात्रि का प्रथम दिन माँ शैलपुत्री का होता है यह माँ दुर्गा का ही एक रुप है जिसकी पूजा की जाती है माँ शैलपुत्री नें अपने इस रुप में शैलपुत्र हिमालय के घर में जन्म लिया था। अपने इस रुप में माता वृषभ पर विराजमान है। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है मान्यता के अनुसार नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना करना अच्छी सेहत की प्राप्ति के लिए लाभदायक होता है।
आश्विन घटस्थापना रविवार, अक्टूबर 15, 2023 को
कलश स्थापना शुभ मुहूर्तः 15 अक्टूबर 2023 को प्रातः 11ः44 मिनट से रात्रि 12ः30 मिनट तक रहेगा।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भः 14 अक्टूबर 2023, रात्रि 11ः24 मिनट से।
प्रतिपदा तिथि समाप्तः 1 6 अक्टूबर 2023, प्रातः 12ः32 मिनट तक।
शैलपुत्री माता को प्रसन्न करने की विधि
☸ नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है परन्तु पूजा सही विधि-विधान से न हो तो पूजा अपूर्ण मानी जाती है। इसलिए माता को प्रसन्न करने के लिए निम्न नियम का प्रयोग करें।
☸ माँ दुर्गा के इस स्वरुप की पूजा के लिए ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर लें।
☸ उसके पश्चात पूजा घर या मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई कर लें।
☸ माता की स्थापना के लिए एक साफ-सुथरी चौकी लें।
☸ चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और उस पर मां दुर्गा के साथ नौ स्वरुपों की स्थापना करें।
☸ तत्पश्चात माता शैलपुत्री की पूजा करें तथा व्रत का संकल्प लें।
☸ पूजा एवं संकल्प के पश्चात माता को सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें।
☸ माता को गाय के घी से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
☸ पूजा के अंत में माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं एवं आरती करें।
माता शैलपुत्री का प्रिय मंत्र
ओम देवी शैल्पुत्र्यै नमः
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
वन्दे वान्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्
नवरात्रि के दौरान रखें इन बातों का ध्यान
☸ विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्रि व्रत के दौरान दिन में सोना नही चाहिए।
☸ व्रत के दौरान अगर आप फल खा रहे हैं तो उसे एक बार में ही पूरा खत्म कर लें, कई बार में नही।
☸ व्रत के दौरान , नौ दिनों तक अनाज और नमक का सेवन नही करना चाहिए।
☸ खाने में कुट्टू का आटा, समा के चावल, सिंघाडे का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली शामिल हो सकते हैं।
☸ नवरात्र के दौरान व्रत रखने वाले लोगों को संभव हो तो बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग आदि चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
शैलपुत्री माता
☸ माता को सफेद रंग अत्यन्त प्रिय है इसलिए आज के दिन सफेद वस्त्र पहनें तथा माता को सफेद पुष्प एवं मिठाई का भोग लगाएं।
ऐसे करें कलश स्थापना
☸ कलश स्थापना का आयोजन करते समय सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त या शुभ समय में भगवान गणेश की पूजा करें।
☸ उसके बाद देवी दुर्गा का स्मरण करें।मिट्टी से एक गोल आकृति का कलश बनाएं और उसमें जौ डालें।
☸ कलश पर स्वास्तिक का निशान बनाएं और उसमें कलावा बांधें।
☸ इसके बाद सात प्रकार के अनाज और धातु को कलश में डालें और उसमें गंगा जल भरकर कलश को स्थापित करें।
☸ फिर एक नारियल को कलावा से बांधकर कलश पर रखें और उसके ऊपर लाल चुनरी डालें।
☸ इस नारियल को देवी का स्वरूप माना जाता है।
☸ इसके बाद अखंड दीप जलाएं और धूप और अगरबत्ती से पूजा करें।
☸ इस पूजा का यह प्रक्रिया नौ दिनों तक जारी रखें।
☸ इस प्रकार की पूजा से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
दुर्गा माता के शैलपुत्री रुप से जुड़ी कथा
कई हिन्दू पुराणों तथा शिव महापुराण में माता के इस रुप की कथा का वर्णन मिलता है। माता का जन्म प्रजापति दक्ष की पुत्री देवी सती के रुप में हुआ था माता सती ने देवों के देव महादेव से विवाह किया था लेकिन इस विवाह से देवी सती के पिता प्रसन्न नही थें। एक बार की बात है प्रजापति दक्ष नें एक महायज्ञ का आयोजन किया और उन्होंने माता सती और भगवान शिव को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया। यह सुनकर माता सती को बहुत दुख हुआ और उन्हें प्रतीत हुआ कि यह मेरे और महादेव के अपमान की भांति है।
परन्तु पिता का घर होने के कारण वह बिना आमंत्रण के ही उस महायज्ञ में चली गई। वहां जाने के उपरान्त माता को कई असहनीय बातों को सुनना पड़ा जिससे पीड़ित होकर माता ने वहां उपस्थित अग्निकुण्ड में अपने शरीर को जला दिया । ये सब देखकर महादेव को अत्यन्त दुख हुआ। उन्होंने स्वयं को सबसे दूर कर लिया और कई युगों की तपस्या के लिए चल गये और उनके बिना पूरा ब्रह्माण्ड अस्त-व्यस्त था। उसी समय माता सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रुप में पुर्नजन्म लिया परन्तु महादेव तपस्या मे लीन थे और माता पार्वती को शिव जी को पाना बहुत मुश्किल था।
तब माता पार्वती ने कठोर तपस्या आराधना करना आरम्भ कर दिया और भगवान शिव की खोज करने लगी। कई प्रयासों के बाद माता को शिव जी की प्राप्ति हुई और उन्होंने उनसे विवाह किया। इस प्रकार ऐसा माना जाता है कि माता शैलपुत्री ने खुद को मूल चक्र की सच्ची देवी के रुप में दर्शाया है। नवरात्रि के पहले दिन भक्त मूल चक्र में प्रवेश करती है तथा मूलाधार को ध्यान में रखकर समर्पण स्थापित करने के लिए देवी शैलपुत्री की पूजा करते हैं।