शुभ योग
☸ज्योतिष के अनुसार राहु केतु को छाया ग्रह कहा गया है लेकिन कुण्डली में राहु केतु दोष के उत्पन्न होने से जीवन में परेशानियों का सिलसिला शुरु हो जाता है। ऐसे में जातक परेशानियों और अनेक प्रकार के कष्टों से घिरे रहते है। ज्योतिष शास्त्र में इनके शुभ-अशुभ योगो के बारे में विस्तृत रुप से बताया गया है।
☸यदि जन्म कुण्डली में मेष, वृष या कर्क लग्न हो तो तथा द्वितीय, नवम या दशम भाव के अतिरिक्त किसी अन्य भाव में राहु हो तो ऐसा योग सर्वारिष्ट विनाशक होता है। इस योग से व्यक्ति निरोग एवं सुखी होता है।
☸ कुण्डली में मेष, वृष या कर्क राशि का लग्न हो तथा राहु नवम, द्वितीय या 10 वें भाव में स्थित हो तो ऐसा योग अरिष्ट भंग योग कहलाता है। इस योग के फलस्वरुप जातक विजयी और बली होता है।
☸ यदि कुण्डली में केतु-शनि का योग हो तो जातक तांत्रिक या बलो में रुचि रखने वाला होता है।
☸ जातक की कुण्डली में राहु के शुभ भाव में होने पर व्यक्ति को हर एक कार्य में सफलता और धनार्जन करने का मौका मिलता है। जिन जातकों की कुण्डली में राहु शुभ परिणाम देने वाला होता है। वह लोग बहुत ही तीव्र बुद्धि के होते है।
☸ ऐसे जातक दर्शन और विज्ञान में रुचि रखते है। कुण्डली में राहु की शुभ स्थिति होने पर व्यक्ति अपने जीवन में उच्च पदो की प्राप्ति करता है।
☸ केतु जब कुण्डली के शुभ भाव में बैठते है तो व्यक्ति को जीवन में मान-सम्मान पद प्रतिष्ठा, धन और संतान की प्राप्ति होती है। कुण्डली में केतु के शुभ प्रभाव से व्यक्ति का आत्मविश्वास काफी बढ़ता है।
☸ कुण्डली में राहु-मंगल का योग बने तो जातक को मंत्र विशेषज्ञ बनाता है।
☸ जन्म कुण्डली में राहु मेष या सिंह राशि का होकर 3,6,8 या 11 वें भाव में हो तो प्रबल राजयोग बनता है। यदि शुभ दृष्ट हो तो जातक के सारे दुख दूर हो जाते है।
☸ यदि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ लग्न हो तथा सूर्य और राहु पांचवें या नौवें भाव में योग करते हो तो विशेष प्रकार का राजयोग बनता है।
अशुभ योग
☸ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु जब खराब स्थिति में होता है तो उसके लक्षण स्पष्ट नजर आने लगते है जातक के सिर के बाल झड़ने लगते है। शरीर की नशों मे कमजोरी आने लगती है, पथरी की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
☸ जोड़ो में दर्द और चर्म रोग की भी आशंका बढ़ जाती है। इसके कारण कान में समस्या व सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
☸ जन्म कुण्डली में चैथे भाव में राहु तथा बारहवें भाव में शनि हो तो कपट योग का निर्माण होता। ऐसा जातक कपटी स्वभाव का होता है कहता कुछ और है और करता कुछ और है।
☸ राहु सूर्य, बुध एवं शुक्र के साथ लग्न में हो तो जातक क्रोधी एवं झगड़ालू होता है।
☸ मेष या वृश्चिक राशि का राहु पांचवें भाव में हो तो तथा लग्न में मंगल-गुरु का योग हो तो जातक को संग्रित सम्बन्धी दुख झेलना पड़ता है।
☸ राहु एवं लग्नेश दशम स्थान में हो तो जातक का जन्म मां के गर्भ से पैरों की तरफ से होता है।
☸ यदि भाग्येश राहु या केतु के साथ प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं अष्टम या द्वादश भाव में योग करता हो तो उत्पाद योग बनता है।
☸ राहु केतु के खराब होते ने जातक को मानसिक तनाव सम्बन्धी समस्याएं झेलनी पड़ती है। इसके अलावा आर्थिक नुकसान कमजोर याददाश्त वस्तुओं को खोना, अधिक क्रोध में आ जाना कड़वे शब्द बोलना, डर और शत्रुओं का बढ़ना मरा हुआ सांप या छिपकली का दिखना इत्यादि।
☸ राहु अष्टम स्थान में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो विवाह में विघ्न आते है। विवाह हो भी तो पति-पत्नी में से किसी एक की शीघ्र मृत्यु हो जाती है।
☸ सूर्य-राहु का योग जातक को चिड़चिड़ा बना देता है। राहु द्वितीय एवं मंगल सप्तमस्थ हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है तथा किसी एक के विद्रोह होने की संभावना रहती है।
☸ जब कुण्डली में सूर्य-राहु तथा मंगल-शनि की युति हो तो अन्य सारे शुभ योग निष्फल हो जाते है।
☸ जब कुण्डली में अष्टमस्थ राहु पाप ग्रह युक्त हो तो जातक पूर्व देश से मृत्यु पाता है।
☸ राहु-गुरु कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ या छठे भाव में हो तथा सूर्य सातवें एवं मंगल दसवें स्थान में हो तो माता-पिता के लिए 24 वां वर्ष विशेष अनिष्ट कारक होता है।
☸ राहु एवं शनि की युति जातक के लिए विशेष अनिष्टाकारी सिद्ध होता है। लग्न में यह युति हो तो जातक का स्वास्थ्य प्रायः ठीक नही रहता द्वितीयस्थ राहु-शनि आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव लाता है तीसरे भाव में यह योग मातृपक्ष के लिए हानिकारक होता है। चतुर्थ स्थान का योग माता के लिए तथा पंचम स्थान का संतुति के लिए कष्टकारी होता है। सप्तम में पत्नी या पति को तथा दशम में पिता को कष्ट पहुंचाता है। यदि नवम स्थान में शनि-राहु की युति हो तो भाग्योदय में बार-बार बाधा आती है। इस योग में शनि-राहु युति पर गुरु की दृष्टि हो तो अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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