देखा जाए तो भवन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता? परन्तु आजकल के लोग घर छोड़कर दुनिया के बड़े-बड़े और आलीशान होटलों में रहना पसंद करते हैं लेकिन सच पूछो तो घर के जैसी सुकून और शान्ति हमें कहीं नही मिलती है असली सुख शांति तो हमें अपने ही घर में मिलती है, और हमें पूर्ण रूप से सुख शांति देते हुए हमारा भवन ही एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में यदि हमारे भवन की ऊर्जा सकारात्मक है तो ऐसे में आपको दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होगी। इसके अलावा यदि नकारात्मक ऊर्जा मिलेगी तो जातक को तनाव, रोग, अशान्ति, झगड़े और प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।
हम अपना भवन निर्माण करने से पहले हमेशा यह कोशिश करते हैं कि हमारा घर या भवन शत-प्रतिशत वास्तुशास्त्र के अनुसार ही बने परन्तु इन सारी कोशिशों के बावजूद भी घर के सभी भाग सामान रूप से बहुत सुन्दर और वास्तु के अनुरूप नही बन पाते हैं कहीं न कहीं भवन निर्माण करते समय हमें समझौता करना पड़ता है, कभी हमारे घर का अतिथि कक्ष सुन्दर वास्तु के अनुसार बन जाता है तो कभी शयन कक्ष बेकार, कभी बालकनी अच्छी बन जाती है तो कभी रसोईघर बेकार ऐसे में यह सब यूँ ही नहीं हो जाता है इन सबके पीछे भी ग्रहों का खेल ही होता है और ग्रहों के साथ-साथ हमारे जन्मपत्रिका में सभी भावों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। तो आइये हमारी जन्मपत्रिका के सभी भाव वास्तुशास्त्र के अनुसार क्या परिणाम देते हैं इसे जानते हैं।
भवन निर्माण में भावों के द्वारा वास्तुदोष की भूमिका
प्रथम भाव
हमारी जन्म कुण्डली के प्रथम भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो इस भाव की दिशा कुण्डली में पूर्व मानी जाती है। इस भाव का स्वामी ग्रह सूर्य होने के कारण जन्मपत्री के इस भाव से घर के बैठक का विचार किया जाता है। इसके अलावा यहाँ पर स्नानागार होना भी शुभ माना जाता है जिसका विचार कुण्डली के प्रथम भाव से किया जाता है ऐसे में किसी कारणवश यह भाव दूषित है तो कुण्डली के इस भाव में वास्तुदोष की उत्पत्ति होती है।
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द्वितीय भाव
हमारी जन्म कुण्डली के अनुसार द्वितीय भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का द्वितीय भाव ईशानकोण का भाव होता है और इसका स्वामी ग्रह दिशा के अनुसार गुरु ग्रह होता है। कुण्डली के द्वितीय भाव से भवन निर्माण से सम्बन्धित विषय की चर्चा की जाती है इसके अनुसार जातक के भवन का आकार कैसा होगा, किस दिशा में होगा तथा घर में पूजाघर कहाँ पर स्थित होगा आदि विषयों की जानकारी कुण्डली के द्वितीय भाव से की जाती है।
तृतीय भाव
हमारी जन्म कुण्डली के अनुसार तृतीय भाव को वास्तु के अनुसार देखे तो यह भाव ईशानकोण का भाव होता है जिसका स्वामी ग्रह गुरु होता है। इस भाव जातक से जातक के भवन में प्राप्त हुई सारी सुख सुविधाओं के बारे में जानकारी मिलती हैं यदि इस भाव में कोई शुभ ग्रह मौजूद है तो ऐसा व्यक्ति सभी सुख सुविधाओं से सुख की प्राप्ति करेगा। इसके अलावा यदि यह भाव दूषित हो तो इन वस्तुओं से लाभ प्राप्त नही कर पायेगा।
चतुर्थ भाव
हमारी कुण्डली के चतुर्थ भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव उत्तर दिशा का भाव होता है और इसका सवामी ग्रह बुध हैै। अतः इस भाव से भवन में जलस्त्रोत तथा जल संग्रहण के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
पंचम भाव
हमारी जन्म कुण्डली के पंचम भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव वायव्यकोण का भाव होता है तथा इसका स्वामी ग्रह चंद्रमा होता है। अतः जन्म कुण्डली के पंचम भाव से घर के उत्तर पश्चिम दिशा की दीवार के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। शिक्षा का भाव होने के कारण इस भाव से घर के अध्ययन कक्ष की भी जानकारी प्राप्त की जाती है।
षष्ठ भाव
हमारी जन्म कुण्डली के षष्ठ भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव वायव्यकोण का भाव होता है तथा इसका स्वामी ग्रह चंद्रमा होता है। अतः जन्म कुण्डली के षष्ठ भाव से तहखाने अथवा फर्श के नीचे के स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। यदि घर का यह स्थान कुण्डली मे पाप प्रभाव में हो तो ऐसी स्थिति में जातक को कभी अपने घर में तहखाना नही बनाना चाहिए अन्यथा ग्रहस्वामी यानि घर के मुखिया को अपने जीवन में अत्यधिक कष्ट झेलना पड़ता है।
सप्तम भाव
हमारी जन्म कुण्डली के सप्तम भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो इस भाव की दिशा पश्चिम होती है तथा इसका स्वामी ग्रह शनि होता है। अतः जन्म कुण्डली के इस भाव से ग्रहस्वामी के जन्म स्थान की जानकारी प्राप्त होती है इसके अलावा इससे गूदेदार फल वाले वृक्षों के बारे में भी जानकारी प्राप्त की जाती है।
अष्टम भाव
हमारी जन्म कुण्डली के अष्टम भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव नैऋत्यकोण का भाव होता है तथा इसका स्वामी ग्रह राहु होता है। अतः कुण्डली के इस भाव से भवन की दक्षिणी दीवार की जानकारी प्राप्त होती है इसके अलावा घर में औषधि रखने का स्थान बिना फल-फूल वाले वृक्षों का स्थान साथ ही भवन अच्छे स्थान पर हैं या बुरे स्थान पर इनकी स्थिति के बारे में पता लगाया जाता है। अष्टम भाव से घर के मुखिया के शयन कक्ष की जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है।
नवम भाव
हमारी जन्म कुण्डली के नवम भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव नैऋत्यकोण का भाव होता है तथा इसका स्वामी ग्रह भी राह को माना जाता है। परन्तु स्वाभाविक रूप से गुरु ग्रह को भी नवम भाव का कारक माना जाता है। इसलिए इस भाव में राहु दोनों की ही दृष्टि देखना अनिवार्य होता है। अतः कुण्डली के इस भाव से घर में स्थित बड़े बुजुर्गों के स्थान की जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके अलावा भवन निर्माण करते समय इसकी आकृति तथा घर में स्थित पूजास्थल की जानकारी प्राप्त की जाती है।
दशम भाव
हमारी जन्म कुण्डली के दशम भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो इसकी दिशा दक्षिण मानी जाती है तथा इसका स्वामी मंगल होता है, मंगल के साथ-साथ यह भाव सूर्य, शनि, बुध तथा बृहस्पति सभी ग्रह इसके कारक माने जाते हैं। अतः जन्म कुण्डली के दशम भाव से भवन निर्माण करते समय लगाये गये ईट, पत्थर, लोहे इत्यादि की सामान्य जानकारीयाँ प्राप्त की जाती है।
एकादश भाव
हमारी जन्म कुण्डली के एकादश भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव आग्नेय कोण का भाव होता है तथा इसका स्वामी शुक्र ग्रह होता है। अतः जन्मकुण्डली के इस भाव से घर के अन्दर की साज-सज्जा तथा घर की बाहरी सुंदरता का विचार किया जाता है। यदि कुण्डली का यह भाव किसी ग्रह या ग्रहों की दृष्टि द्वारा शुभ प्रभाव में हो तो ऐसी स्थिति में जातक का भवन अत्याधिक आलिशान, भव्य एवं आकर्षक होगा।
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द्वादश भाव
हमारी जन्म कुण्डली के द्वादश भाव को वास्तु के अनुसार देखें तो कुण्डली का यह भाव आग्नेय कोण का भाव होता है तथा इसका स्वामी ग्रह शुक्र है। अतः जन्म कुण्डली के इस भाव से भवन में स्थित शयनकक्ष तथा रसोईघर का ज्ञान किया आ सकता है।
नोटः- ऊपर दिये गये ग्रहों और सभी भावों पर एक बार विचार करके ही जन्मकुण्डली के माध्यम से घर के वास्तुदोष की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रहों का जैसा योग होगा उसी के अनुरूप ही उसका वास्तु भी होगा। इसलिए भविष्य में भवन निर्माण करने से पहले ही हमें वास्तुदोष की जानकारी प्राप्त करके सतर्क हो जाना चाहिए।