जाने कैसे बनते है कुण्डली में योग

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह नक्षत्रों की चाल से शुभ एवं अशुभ दोनों ही प्रकार के योग बनते हैं। जब किसी जातक के कुण्डली में ग्रहों के कारण बनने वाला योग कारक या मारक स्थितियां पैदा होती है तो अच्छें और बुरे दोनों ही प्रकार के परिणाम मिलते हैं।

वैदिक ज्योतिष में 32 प्रकार के योगों का उल्लेख मिलता है

कुण्डली में योग कैसे बनते हैं

जब एक ग्रह, भाव या राशि किसी अन्य ग्रह भाव या राशि के साथ स्थान, पहलू या युति के साथ संबंधों में प्रवेश करता है तब योग अस्तित्व में आते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जो नक्षत्रों/ज्योतिषीय नक्षत्रों और राशियों तथा नवग्रह/ज्योतिषीय ग्रहों की व्याख्या पर आधारित है, जहाँ विभिन्न संयोजनों का कारण बनने वाली ग्रहों की गति द्वारा उनके प्रभाव, प्रकृति, पहलू और अवस्था या स्थितियों के आधार पर विश्लेषण किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में इन्हीं ग्रहो के मेल से ही कुण्डली में योग का निर्माण होता है।

हिन्दू ज्योतिष के अनुसार सभी मानक ग्रंथ योग को मौलिक सिद्धातों पर आधारित बताते है लेकिन अलग-अलग ग्रंथ योगों की अलग-अलग व्याख्या करते है। कुछ ऐसे भी योग होते हैं जिसका वर्णन ग्रंथों में नही होता है। हिन्दू ज्योतिष में बताया गया है कि मुख्य रुप से ये अत्यधिक प्रभावशाली ग्रह सूर्य के सम्बन्ध में बुध और शुक्र से सम्बन्धित होते हैं। ग्रंथों में बताया गया है कि सरस्वती योग अत्यधिक सामान्य और शुभ होता है।

योग का अर्थ

जीवन में कुछ घटित होने की प्रवृत्ति जो संस्कृत शब्द ‘युज’ पर आधारित है जिसका अर्थ है उचित संयोजन या न्यायिक रुप में नियंत्रित करना या एकीकृत करना। इस शब्द का प्रयोग प्रायः ग्रहों की स्थितियों मेल और संयोजनो के सम्बन्ध में चन्द्र सौर दूरी का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

वैदिक ज्योतिष ग्रहों की चाल या दशा के माध्यम से योग पर बहुत अधिक निर्भर करता है इसलिए यह पश्चिमी ज्योतिष की तुलना में ज्यादा प्रसिद्ध है।

कुण्डली में सभी योगों का व्यक्ति के जीवन पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। जैसे राज योग शुभ और दरिद्र योग गरीबी या दुर्भाग्य का संकेत देता है तथा सन्यास योग त्याग अर्थात अनाशक्ति के लिए जाना जाता है। कुण्डली में कुछ ऐसे भी योग होते है। जो अशुभ या राज योग के प्रभावों को खत्म कर देते हैं तथा कुछ ऐसे भी ग्रह होते हैं, जो कुण्डली में शुभ योग के रुप में किसी जातक के मान-सम्मान में वृद्धि कराते हैं और उससे सम्बन्धित लाभदायक परिणाम देते हैं।

जन्म कुण्डली में योग कैसे परिणाम/फल देते हैं

जन्म कुण्डली में योग जातक के जन्म के समय ही देखा जाता है और किसी भी जातक के कुण्डली विश्लेषण के लिए उसका जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान निश्चित होना अति आवश्यक हैं।
कुण्डली में उपस्थित योग जातक के पिछले जीवन के परिणाम होते हैं। कुण्डली में जब किसी योग का निर्माण हो जाता है तो उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता हैं तथा कुण्डली में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के योग होते है। योग का अर्थ यहां केवल अच्छा योग से तात्पर्य नही है, योग बुरा भी हो सकता है लेकिन कुण्डली में आधारित परिणाम प्राप्त करना आपके वर्तमान में किये गये कर्मों पर भी निर्भर करता है। वर्तमान जीवन में अच्छा कर्म करके उनसे उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए अच्छे योगों को सक्रिय करना जातक के हाथों में होता है। इसी प्रकार जन्म कुण्डली में बेकार योग को शांत या विफल रखना जातक के कर्मों पर निर्भर करता है।

कुण्डली में शुभ योगों को देखकर जातक को कभी भी संतुष्ट नही होना चाहिए तथा इसी प्रकार नकारात्मक योग या दोष व्यक्ति को सम्पूर्ण जीवन अशुभ फल नही दे सकता।

उपरोक्त वाक्यों भी हमनें बताया कि कुण्डली में सभी अच्छें या बुरें योग पूर्वजन्मों  के कर्मों से आते हैं। अपनी जन्म कुण्डली में योगों के परिणाम प्राप्त करने के लिए इस पर निर्भर करें कि आप वर्तमान जीवन में स्वेच्छाओं को कैसे तय करते हैं।

कुण्डली में उपस्थित नकारात्मक योगों या दोषों को दूर करने के लिए केवल अनुष्ठान करने से ही जातक दोषमुक्त नही हो सकते और ना ही वो दोषों से मुक्ति पा सकते हैं।

संख्या और प्रभाव

योगों को मुख्यतः छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। चन्द्र, सूर्य, नभास, राजा, धन और दरिद्र। किसी जातक के कुण्डली में योग का परिणाम उसके जन्म की परिस्थितियों के साथ-साथ उसके जन्म और मृत्यु के बीच जीवन के दौरान घटने वाली घटनाओं द्वारा निर्धारित किया जाता है।

आइए जानते हैं कुछ राजयोग के बारे में 

प्राचीन ज्योतिष में कुल 32 प्रकार के राजयोगों का उल्लेख है। यदि किसी जातक के कुण्डली में 32 प्रकार के सभी योग पूर्ण रुप से घटित हो जाते हैं तो वह जातक चक्रवर्ती सम्राट बन जाता है। कुण्डली में राजयोग उपस्थित होने पर व्यक्ति को उच्च पद, मान-सम्मान, धन तथा सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। यदि कुण्डली के नवम/दशम भाव में अच्छे ग्रह मौजूद रहते हैं तो इस स्थिति में कुण्डली में राजयोग का निर्माण होता है। जन्म कुण्डली में नवम स्थान का प्रायः भाग्य तथा दशम स्थान को कर्म से जाना जाता है। इन दोनों भावों के कारण ही जातक को सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। जन्म कुण्डली में लग्न को आधार बनाकर राजयोग का आंकलन किया जाता है।

यदि किसी जातक के कुण्डली के किसी भी भाव में चन्द्र मंगल का योग बनता है तो उस जातक के जीवन में धन की कमी नही होती है तथा उन्हें समाज में मान-सम्मान भी मिलता है। कुण्डली में राजयोग का अध्ययन करते समय अन्य शुभ और अशुभ ग्रहों के परिणामों का भी अध्ययन करना आवश्यक है। इनके कारण राजयोग का प्रभाव कम और अधिक हो सकता है।

राजयोग वे ग्रह स्थितियां जिनसे जातक को धन सम्पत्ति, मान-पद तथा गौरव की प्राप्ति होती है। विपरीत राजयोग में व्यक्ति को प्राप्तियां होती है परन्तु वह उनका लाभ नही उठा पाता। जिस जातक की कुण्डली में इस राजयोग का निर्माण होता है तो वह जातक राज्याधिकारी बनता है। कभी-कभी साधारण परिवार में जन्में बालक में भी राजसी लक्षण देखते हैं। जो इस प्रकार के योग के कारण ही बनते हैं।

निम्नलिखित स्थितियों में राजयोग का निर्माण

☸ जब जातक के कुण्डली में गह एक-दूसरे की राशि में उपस्थित होते हैं तो शुभ फल की प्राप्ति होती है।
☸ कुण्डली में ग्रहों की परस्पर युति होने पर भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
☸ यदि कुण्डली में एक ग्रह दूसरे ग्रह को संदर्भित करता है तो भी शुभ परिणाम की प्राप्ति होती है।
☸ नवम तथा पंचम स्थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्द्राधिपति का सम्बन्ध भी शुभ फल देने वाला होता है। इसे राजयोग भी माना गया है।
☸ जब किसी जातक के कुण्डली में ग्रह एक-दूसरे से दृष्टि सम्बन्ध में हो तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

विभिन्न प्रकार के राजयोग
रुचक योग

जब मंगल केन्द्र भाव में होकर अपने मूल त्रिकोण (प्रथम, पंचम और नवम भाव) स्वगृही मेष या वृश्चिक में हो तो अथवा अपने उच्च राशि मकर राशि का हो तो रुचक योग का निर्माण होता है। रुचक योग के निर्माण होने पर जातक बलवान, साहसी, तेजस्वी होता है। उनकें पास महंगी गाड़ियां होती है तथा इस योग में जन्में जातक को विशेष पद की भी प्राप्ति होती है।

लक्ष्मी योग

जब कुण्डली के किसी भी भाव में चन्द्र मंगल का योग बनता है तो जीवन में धन-धान्य की कमी नही होती है। इस स्थिति में लक्ष्मी योग का निर्माण होता है। लक्ष्मी योग के निर्माण से जातक को समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

भद्र योग

बुध केन्द्र में मूल त्रिकोण स्वगृही (मिथुन या कन्या राशि में हो) अथवा उच्च राशि कन्या का हो तो भद्र योग का निर्माण होता है। इस योग के उपस्थित होने के कारण जातक उच्च व्यवसायी होता है। यदि इस योग का निर्माण सप्तम भाव में होता है तो जातक देश का बड़ा उद्योगपति बन सकता है।

गजकेसरी योग

यदि चन्द्रमा से केन्द्र मे बृहस्पति हो तो गजकेसरी योग बनता है। जैसे में जातक के अनेक सम्बन्धी होंगे, वह नम्र और उदार स्वभाव का होगा।

सुनफा योग

यदि चन्द्रमा से दूसरे भाव में ग्रह हों (सूर्य को छोड़कर) तो सुनफा योग बनता है। ऐसे में जातक के पास स्व अर्जित सम्पत्ति होगी। वह राजा, शासक या तेज बुद्धि वाला, धनी और प्रसिद्ध व्यक्ति होगा।

अनफा योग

यदि चन्द्रमा के बारहवें (12) भाव में ग्रह स्थित हो तो अनफा योग बनता है। ऐसे में जातक के अंग गठीले, सुन्दर, वह नम्र, उदार स्वभाव के होते है तथा ऐसे जातक कपड़ों तथा मनोरंजन के प्रेमी भी होते है। जीवन के अन्तिम काल में त्यागी और सन्यासी हो जाते हैं।

दुरुधरा योग

यदि चन्द्रमा के दोनों ओर ग्रह स्थित हो तो जो योग बनता है उसे दुरुधरा योग कहा जाता है। ऐसे जातक सुन्दर होते है और उसके पास काफी धन और सवारियां होंगी।

केमद्रुम योग

यदि चन्द्रमा की दोनों ओर कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग बनता है। ऐसे जातक गन्दा, दुखी, अनुचित काम करने वाला, गरीब तथा दूसरे पर निर्भर रहने वाले होते है।

चन्द्र मंगल योग

यदि मंगल चन्द्रमा से संयुक्त हो तो यह योग बनता है। किसी व्यक्ति की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ बनाने में चन्द्र मंगल की युति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। चन्द्र मंगल की युति से महालक्ष्मी योग बनता है परन्तु महालक्ष्मी योग के साथ-साथ जातक क्रोधी भी बहुत ज्यादा रहता है।

अधियोग

यदि चन्द्रमा से 6, 7 और 12 वें भाव में शुभ ग्रह स्थित हो तो अधि योग बनता है। ऐसे जातक नम्र और विश्वासी होते है उसका जीवन खुशहाल होता है और वह जातक आराम की वस्तुओं से घिरा रहता है अपने शत्रुओं पर विजयी होगा और उसकी आयु भी लम्बी रहेगी साथ ही स्वास्थ भी अच्छा रहेगा।

चतुः सागर योग

जब सभी केन्द्र भावों मे ग्रह स्थित हो तो कुण्डली मे चतुः सागर योग बनता है। ऐसे जातकों को समाज मे मान सम्मान प्राप्त होता है तथा जातक शासक के समान ही कार्य करेगा एवं लम्बी आयु वाला होगा। इस योग के फलस्वरुप जातक को अच्छा स्वास्थ्य एवं उत्तम संतान की प्राप्ति होगी।

वसुमती योग

यदि लग्न भाव या चन्द्रमा से 3, 6, 10, 11 में शुभ ग्रह उपस्थित हो तो इस योग को वसुमती योग कहते है। इस योग से जातक को काफी धन दौलत की प्राप्ति होती है और जातक किसी के ऊपर भी निर्भर नही रहता है।

राजलक्षण योग

यदि आपके कुण्डली में बृहस्पति, शुक्र, बुध और चन्द्रमा लग्न भाव मे हो तो अथवा केन्द्र मे उपस्थित हो तो राजलक्षण योग बनता है। इसके फलस्वरुप जातक आकर्षक व्यक्ति का स्वामी होगा तथा सभी उत्तम गुण विद्यमान होंगे।

अमल योग

यदि आपकी कुण्डली मे लग्न या चन्द्रमा से दशम भाव मे शुभ ग्रह हो तो अमल योग का निर्माण होता है। जैसे यह व्यक्ति प्रसिद्ध होगा एवं उसका चरित्र अच्छा होगा और वह सुखी जीवन बितायेगा।

पर्वत योग

यदि आपकी कुण्डली मे शुभ ग्रह हो 6 और 8 वें भावों मे कोई ग्रह न हो या शुभ ग्रह हो तो पर्वत योग बनता है। ऐसा जातक धनी, सम्पन्न, स्वतन्त्र, दानशील, मजाकिया और नगर या गाँव का प्रधान हेागा। वह कामुक भी होगा।

काहल योग

यदि आपकी कुण्डली मे चतुर्थेश और नवमेश एक दूसरे से केन्द्र में हो और लग्नाधिपति बली स्थिति में हो तो काह्ल योग बनता है। ऐसा जातक जिद्दी होगा वह साहसी होगा और छोटी सेना का प्रधान और कुछ गांवों का प्रधान होगा।

वेशि योग

यदि आपकी कुण्डली मे सूर्य से दूसरे भाव में चन्द्रमा के अलावा कोई अन्य ग्रह हो तो बेशि योग बनता है। ऐसा जातक भाग्यशाली, प्रसन्न, धार्मिक, प्रसिद्ध और कुलीन होगा।

वाशि (वोशि) योग

यदि आपकी कुण्डली मे सूर्य से 12 वें भाग में चन्द्रमा के अलावा अन्य ग्रह हो तो वाशि योग बनता है। ऐसा जातक प्रसन्न, सम्पन्न, स्वतन्त्र और शासक वर्ग का प्रिय होगा।

उभयचरी योग

यदि आपकी कुण्डली मे सूर्य के दोनो ओर चन्द्रमा के अलावा अन्य ग्रह स्थित हो तो उभयचरी योग बनता है। ऐसा जातक कुशल वक्ता हेागा। उसके अंग आनुपातिक होंगे और सभी हालत मे खुश रहेगा, धनी तथा प्रसिद्ध व्यक्तियों का प्रिय होगा।

हंस योग

यदि आपकी कुण्डली मे बृहस्पति अपनी राशि या उच्च का हो और केन्द्र में स्थित हो तो हंस योग बनता है। जैसे मे जातक के पैरो पर शंख, कमल मछली और अंकुश का चिन्ह होगा।

मालव्य योग

यदि आपकी कुण्डली मे शुक्र अपनी ही राशि मे हो या उच्च का हो और केन्द्र मे स्थित हो तो मालव्य योग बनता है। जैसे मे जातक का शरीर पूरा विकसित होगा और मस्तिष्क वाला होगा।

शशक योग

यदि आपकी कुण्डली मे शनि अपनी ही राशि मे हो या उच्च राशि मे हो और केन्द्र भाव मे स्थित हो तो शशक योग बनता है। 

बुधादित्य योग

यदि आपकी कुण्डली मे बुध और सूर्य युक्त हो तो बुध आदित्य योग बनता है। जैसे मे जातक बुद्धिमान एवं सभी कार्यो मे निपुण होगा।

महाभाग्य योग

यदि आपकी कुण्डली मे सूर्य और चन्द्रमा तथा लग्न विषम राशियों मे हो या किसी स्त्री का जन्म यदि रात का हो और सूर्य चन्द्रमा तथा लग्न सम राशियों मे हो तो महाभाग्य योग बनता है। जैसे मे जातक का चरित्र उच्च होगा।

पुष्कल योग

यदि आपकी कुण्डली में चन्द्रमा लग्नाधिपति से युक्त जिस राशि में स्थित है वहाँ का अधिपति यदि केन्द्र मे हो या अपने परममित्र की राशि मे हो और लग्न पर दृष्टि डाल रहा हो और साथ ही लग्न भाव में कोई बली ग्रह स्थित हो तो पुष्कल योग बनता है। जैसे मे जातक धनी मृदुभाषी प्रसिद्ध और राजा का स्वामी होगा।

गौरी योग

यदि आपकी कुण्डली मे दशमाधिपति नवांश के अधिपति के साथ हेा और नवांश का अधिपति दशम भाव मे उच्च का हो और लग्नाधिपति से युक्त हो तो गौरी योग बनता है। जैसे मे जातक सम्मानित परिवार मे जन्म लेता है और वह धार्मिक संस्कार करता है एवं उत्तम आचरण वाले होंगे और वह एक प्रशंसित व्यक्ति होगा।

भारती योग

यदि आपकी कुण्डली मे नवांश का अधिपति द्वितीेयेश पंचमेश और एकादशेश के साथ हो और नवांश का अधिपति राशि में उच्च का हो और नवमाधिपति से युक्त हो तो भारती योग बनता है। जैसे मे जातक विश्व प्रसिद्ध एवं विद्वान् और आंख मटकाने वाला होगा।

चाप योग

यदि आपकी कुण्डली मे लग्नाधिपति उच्च का हो और चतुर्थेश तथा दशमाधिपति के बीच परस्पर राशि परिवर्तन योग हो तो चाप योग बनता है। जैसे मे जातक राजा की परिषद मे शामिल होगा और खजाने का नियन्त्रक होगा।

श्रीनाथ योग

यदि आपकी कुण्डली मे सप्तमाधिपति दशम भाव में स्थित हो और दशमाधिपति नवम भाव के अधिपति के साथ हो तो श्रीनाथ योग बनता है। जैसे मे जातक के शरीर पर विष्णु अर्थात शंख पहिया और पत्नी बच्चों वाला प्रिय होगा।

शंख योग

यदि आपकी कुण्डली मे पंचमेश और षष्ठेश एक दूसरे से केन्द्र मे स्थित हो और लग्नाधिपति बली हो तो शंख योग बनता है। जैसे मे जातक आमोद का शौकीन, पत्नी और बच्चो वाला तथा भूमि का स्वामी अच्छा काम करने वाला, विज्ञान का ज्ञाता और दीर्घ जीवी होता है।

 

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