Aniruddha: भगवान विष्णु को अनिरुद्ध क्यों कहा जाता है?

भगवान विष्णु हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति में से एक हैं, जिन्हें संहारक और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। वे सृष्टि, पालन और विनाश के चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भगवान विष्णु के कई नाम और रूप हैं, जिनमें से एक रूप अनिरुद्ध के रूप में जाना जाता है आइए समझते हैं कि भगवान विष्णु को अनिरुद्ध क्यों कहा जाता है।

अनिरुद्ध का अर्थ

“अनिरुद्ध” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “जिसे कोई रोक नहीं सकता” या “जो अप्रतिबंधित है।” इस नाम से भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और अजेयता का प्रतीक होता है। वे सभी बाधाओं और कठिनाइयों से परे हैं और अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सदैव तैयार रहते हैं।

भगवान विष्णु के चार रूप

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भगवान विष्णु के चार प्रमुख रूप हैं: वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध। इन चार रूपों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, जिनका वर्णन शास्त्रों में किया गया है।

  1. वासुदेव: यह भगवान विष्णु का सबसे प्रमुख रूप है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड का पालन-पोषण करता है।
  2. संकर्षण: इस रूप में भगवान विष्णु संहारक के रूप में माने जाते हैं। यह रूप शेषनाग से जुड़ा हुआ है।
  3. प्रद्युम्न: यह भगवान विष्णु का रचनात्मक रूप है, जो सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक है।
  4. अनिरुद्ध: यह भगवान विष्णु का वह रूप है जो अजेय और अप्रतिबंधित है।

अनिरुद्ध का महत्त्व

भगवान विष्णु का अनिरुद्ध रूप उनके असीम शक्ति और अनंत ज्ञान का प्रतीक है। नारद मुनि के अनुसार अनिरुद्ध भगवान विष्णु के उन रूपों में से एक हैं जो हजारों भुजाओं और नेत्रों वाले होते हैं। यह रूप भगवान विष्णु के उस समय को दर्शाता है जब वे सृष्टि की रचना करने के लिए तैयार होते हैं।

अनिरुद्ध रूप में भगवान विष्णु ने नारद मुनि को यह समझाया कि वे शाश्वत हैं और प्रत्येक कल्प के अंत में संपूर्ण ब्रह्मांड को अपने अंदर लीन कर लेते हैं। फिर नए कल्प के प्रारंभ में पुनः सृष्टि की रचना करते हैं। इस रूप में भगवान विष्णु की अनंतता और अजेयता का बोध होता है, जो यह दर्शाता है कि वे समय और स्थान से परे हैं।

भगवान विष्णु का अनिरुद्ध रूप उनके अजेय, अप्रतिबंधित और शाश्वत स्वरूप का प्रतीक है। यह रूप उनकी अपार शक्ति, ज्ञान और योग्यता का परिचायक है, जिससे वे सृष्टि की रचना और उसका संहार करते हैं। अनिरुद्ध भगवान विष्णु का वह रूप है जो हर युग में ब्रह्मांड की संरचना और उसे फिर से रचने की क्षमता रखता है।

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