भगवान शिव के महाकाल स्वरूप के दर्शन और भस्म आरती के नियम
भारत के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भगवान शिव के महाकाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर की भस्म आरती विशेष महत्व रखती है और इसके दर्शन के लिए कुछ विशिष्ट नियम हैं जिन्हें भक्तों को पालन करना होता है। आइए विस्तार से जानते हैं महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती और इसके नियमों के बारे में:
1. भस्म आरती का महत्व
भस्म आरती महाकालेश्वर मंदिर में सुबह 4 बजे होती है। इसे ‘भस्म आरती‘ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस समय भगवान महाकाल को चिता की भस्म से श्रृंगारित किया जाता है। यह आरती भगवान शिव के एक विशेष स्वरूप की पूजा है, जिसमें उन्हें निराकार और अत्यंत रहस्यमय स्वरूप में पूजा जाता है। इस परंपरा के अनुसार, भगवान शिव ने एक राक्षस दूषण का वध किया था और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया था, जिसके बाद इस मंदिर में यह परंपरा शुरू हुई।
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2. पुरुषों के लिए नियम
भस्म आरती के दर्शन के लिए पुरुषों को कुछ नियमों का पालन करना होता है। उन्हें इस आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती है, जो कि साफ–सुथरी और सूती होनी चाहिए। पुरुष केवल आरती देख सकते हैं, जबकि इसे अदा करने का अधिकार केवल यहां के पुजारियों को होता है।
3. महिलाओं के लिए नियम
महिलाओं के लिए, भस्म आरती में भाग लेने के कुछ विशेष नियम होते हैं। महिलाओं को इस आरती में शामिल होने के लिए साड़ी पहननी होती है, और जब शिवलिंग पर भस्म चढ़ाई जाती है, तो उन्हें घूंघट करने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस समय भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते हैं, और महिलाओं को भगवान के इस स्वरूप के दर्शन की अनुमति नहीं होती।
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4. भस्म आरती की परंपरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में उज्जैन नगर में दूषण नामक एक राक्षस ने अराजकता मचा दी थी। इस राक्षस से नगरवासियों को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने उसका वध किया। इसके बाद, गांववालों ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे यहीं बस जाएं। भगवान शिव उनकी प्रार्थना स्वीकार कर महाकाल के रूप में वहां स्थिर हो गए।
शिव ने दूषण को भस्म किया और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया। इसी कारण से इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर पड़ा और शिवलिंग की भस्म से आरती की परंपरा शुरू हुई।