Maha Navami 2024: जानें मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा विधि, भोग, कथा और शुभ रंग

Maha Navami 2024: जानें मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा विधि, भोग, कथा और शुभ रंग

सिद्धिदात्री माता (Maa Siddhidatri) नवरात्रि के नौवें दिन की देवी हैं। माता सिद्धिदात्री की उपासना से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। उनका नाम “सिद्धिदात्री” का अर्थ है “सिद्धियों को देने वाली”। माता की स्तुति करने से पहले यह श्लोक अवश्य पढ़ें:

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri)

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माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनका वाहन सिंह है और वे अक्सर कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र है, ऊपर वाले हाथ में गदा, जबकि बायीं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है।

नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन जो भक्त शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करता है, उसे सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। सिद्धियाँ वे शक्तियाँ हैं जो मनुष्य को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह से लाभ पहुँचाती हैं। इन सिद्धियों के माध्यम से साधक ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर सकता है।

हर व्यक्ति को माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। उनकी कृपा से हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। मोक्ष वह अवस्था है, जिसमें मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। माँ सिद्धिदात्री की कृपा से, हम इस संसार की असारता को समझ सकते हैं और वास्तविक शांति प्राप्त कर सकते हैं।

माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) के बारे में मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि यह आठ सिद्धियों को देने वाली हैं, जो इस प्रकार हैं:

  1. अणिमा
  2. लघिमा
  3. प्राप्ति
  4. प्राकाम्य
  5. महिमा
  6. ईशित्व
  7. वशित्व

ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्मखंड में इन सिद्धियों की संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं:

  1. अणिमा
  2. लघिमा
  3. प्राप्ति
  4. प्राकाम्य
  5. महिमा
  6. ईशित्व
  7. वशित्व
  8. सर्वकामावसायिता
  9. सर्वज्ञत्व
  10. दूरश्रवण
  11. परकायाप्रवेशन
  12. वाक् सिद्धि
  13. कल्पवृक्षत्व
  14. सृष्टि
  15. संहारकरण सामर्थ्य
  16. अमरत्व
  17. सर्वन्यायकत्व
  18. भावना

माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) भक्तों और साधकों को इन सभी सिद्धियों को प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री (Siddhidatri Maa) की कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। उनकी अनुकंपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ, जिसके कारण वह “अर्द्धनारीश्वर” के नाम से प्रसिद्ध हुए।

माता सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब ब्रह्मांड पूरी तरह से अंधकार में डूबा हुआ था और किसी भी प्रकार का संकेत नहीं था, तब उस अंधेरे में ऊर्जा का एक छोटा सा पुंज प्रकट हुआ। देखते ही देखते, उस पुंज का प्रकाश चारों ओर फैलने लगा। फिर, उस प्रकाश के पुंज ने आकार लेना शुरू किया और अंततः वह एक दिव्य नारी के रूप में विस्तृत होकर रुक गया। वह प्रकाश पुंज देवी महाशक्ति के अलावा कोई और नहीं थी। सर्वोच्च शक्ति ने प्रकट होकर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) को अपने तेज से उत्पन्न किया और तीनों देवताओं को इस सृष्टि को सुचारू रूप से चलाने के लिए आत्मचिंतन करने को कहा।

देवी के कथनानुसार तीनों देव आत्मचिंतन करते हुए जगतजननी से मार्गदर्शन के लिए कई युगों तक तपस्या में लीन रहे। अंततः उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महाशक्ति ‘माँ सिद्धिदात्री’ (Siddhidatri Maa) के रूप में प्रकट हुईं। देवी ‘माँ सिद्धिदात्री’ (Maa Siddhidatri) ने ब्रह्माजी को सरस्वती, विष्णुजी को लक्ष्मी और शिवजी को आदिशक्ति प्रदान किया।

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‘माँ सिद्धिदात्री’ (Maa Siddhidatri) ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना का भार सौंपा, विष्णुजी को सृष्टि के पालन का कार्य दिया, और महादेव को समय आने पर सृष्टि के संहार का भार सौंपा। माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) ने तीनों देवों को बताया कि उनकी शक्तियाँ उनकी पत्नियों में हैं, जो उनके कार्यों में उनकी सहायता करेंगी। उन्होंने त्रिदेवों को दिव्य-चमत्कारी शक्तियाँ भी प्रदान कीं, जिससे वे अपने कर्तव्यों को पूरा करने में सक्षम हो सकें। देवी ने उन्हें आठ अलौकिक शक्तियाँ प्रदान कीं।

इस प्रकार, नर और नारी, देव और दानव, पशु और पक्षी, पेड़ और पौधे, तथा दुनिया की कई अन्य प्रजातियों का जन्म हुआ। आकाश असंख्य तारों, आकाशगंगाओं और नक्षत्रों से जगमगा उठा। पृथ्वी पर महासागरों, नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों और जीवों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार, ‘माँ सिद्धिदात्री’ (Maa Siddhidatri) की कृपा से सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य संचालित हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर दानव महिषासुर का उत्पात बढ़ गया था, तब सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण में गए। तत्पश्चात सभी देवों के तेज से माता सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) प्रकट होती हैं और ‘दुर्गा’ रूप में महिषासुर का वध करके समस्त सृष्टि की रक्षा करती हैं।

माता सिद्धिदात्री (Siddhidatri Maa) की पूजा विधि

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नवरात्रि के नवें दिन माता सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा की जाती है। इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान करें और माता का आसन (चौकी) लगाएं। इस पर माता सिद्धिदात्री की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।

माता को पुष्प अर्पित करें और अनार (फल), नैवैद्य अर्पित करें। फिर माता की स्तुति, ध्यान मंत्र और दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी महत्वपूर्ण है। इसके बाद माता को मिष्ठान, पंचामृत और घर में बने पकवान का भोग लगाएं। अंत में माँ की आरती करें। इस दिन पूजा के समापन पर हवन करने का विधान भी है।

साथ ही इस दिन कन्या पूजन का भी आयोजन किया जाता है। माता को बैंगनी (जामुनी) रंग अत्यंत प्रिय है, इसलिए भक्त को नवमी के दिन इसी रंग के वस्त्र पहनकर माता सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए।

माता सिद्धिदात्री (Siddhidatri Maa) की स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

माँ ‘सिद्धिदात्री’ का ध्यान मंत्र (Maa Siddhidatri Meditation Mantra)

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥

स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम् ।

शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्।।

प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।

कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

माँ ‘सिद्धिदात्री’ स्तोत्रम (Maa Siddhidatri Strotam)

कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।

स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।

नलिस्थिताम् नलनार्थी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥

परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा ।

परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।

विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी ।

भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं ।

मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते।।

माँ ‘सिद्धिदात्री’ कवच (Maa Siddhidatri Kavach)

ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।

हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥

ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम् घ्राणो।

कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो।।

माँ ‘सिद्धिदात्री’ जी की आरती (Maa Siddhidatri ji ki Aarti)

जयसिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता ।

तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।।

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।

जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।।

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।

तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है।

रविवार को तेरा सुमिरन करे।

जो तेरी मूर्ति को ही मन में धरे॥

जो तू सब काज उसके करती है पूरे।

कभी काम उसके रहे ना अधूरे ॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।

रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया ॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।

जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली ॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।

महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।।

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।

भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।।

नव दुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) का स्थान अंतिम है। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार की जाती है, और भक्त नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक तथा पारलौकिक सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।

माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) के कृपा पात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी इच्छा नहीं रह जाती जिसे वह पूरा करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करते हुए उनके कृपा रस का निरंतर पान करते हैं और विषय-भोग से मुक्त हो जाते हैं। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उनके लिए सर्वस्व बन जाता है। इस परम पद को प्राप्त करने के बाद उन्हें अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।

मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) का भोग

मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) को भोग में हलवा, पूड़ी, चना, खीर, नारियल, मौसमी फल, और तिल के लड्डू जैसी विभिन्न चीजें अर्पित की जाती हैं। ये सभी व्यंजन विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान तैयार किए जाते हैं और माता को श्रद्धापूर्वक भोग के रूप में चढ़ाए जाते हैं। इन भोगों का महत्व केवल स्वाद में नहीं है, बल्कि यह मां की कृपा और आशीर्वाद को आकर्षित करने का एक साधन भी है।

मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा के बाद, भोग का प्रसाद कन्याओं और ब्राह्मणों में बांटना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. पूजा के दौरान बैंगनी या जामुनी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
  2. नवरात्रि के नवें दिन कन्या पूजन करना अत्यंत शुभ है।
  3. नवरात्रि का समापन नवाहन के प्रसाद और नवरस युक्त भोजन के साथ करना चाहिए, जिसमें नौ प्रकार के फल-फूल आदि अर्पित किए जाते हैं।
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