रक्षा सूत्र को कहते हैं राखी –
पहले राखी को रक्षा सूत्र कहा जाता था, जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में ‘राखी‘ कहा जाने लगा। यह शब्द वेद के संस्कृत शब्द रक्षिका का अपभ्रंश है।
हर प्रांत में है अलग नाम –
कहा जाता है कि राखी को श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिए रक्षा कहने के पहले इसे श्रावणी या सलूनों कहते थे अलग–अलग प्रांतों में राखी के अलग–अलग नाम हैं, जैसे दक्षिण में नारियल पूर्णिमा, बलेव और अवीन अवित्तम, राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा।
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इंद्र की पत्नी के कारण भी राखी का त्योहार मनाया जाने लगा –
भविष्य पुराण में कहा गया है कि देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब असुर या दैत्य देवों पर भारी पड़ने लगें। इस कारण से देवताओं को हारता देख देवेंद्र इंद्र घबराकर ऋषि बृहस्पति के पास गएं। तब बृहस्पति जी के सुझाव पर इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोगवश वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुएं। कहते हैं कि तब से ही पत्नियाँ अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए राखी बाँधने लगीं।
राजा बली के कारण भी राखी का त्योहार मनाया जाता है –
स्कंद पुराण, पद्यपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बली से तीन पग भूमि माँग कर उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया तब राजा बली ने भी वर के रूप में भगवान से रात–दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया।
भगवान को वामनावतार के बाद पुनः लक्ष्मी जी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फस गएं और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगें। उधर इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो र्गइं। ऐसे में नारद जी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मी जी ने राजा बली को राखी बाँध कर अपना भाई बनाया और अपने पति का अपने साथ र्ले आइं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में है इसीलिए रक्षा बंधन पर महाराजा बली की कथा सुनने का प्रचलन है।
द्रौपदी की रक्षा से जुड़ा प्रसंग –
एक बार भगवान श्री कृष्ण के हाथ में चोट लग गई थी तथा उनके हाथों में से खून बह रहा था जब द्रौपदी ने देखा कि भगवान श्री कृष्ण के हाथों से खून निकल रहा है तब उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्ण जी के हाथ में बाँध दिया जिससे खून बहना बंद हो गया। जब महाभारत में द्रौपदी का दुःशासन ने चीरहरण का प्रयास किया था तब श्रीकृष्ण ने उसी चीर को बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया था तब से यह प्रसंग भी रक्षा बंधन के महत्व को प्रतिपादित करता है।
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राखी बाँधने का मंत्र –
बहन को भाई को राखी बाँधते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेनत्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।”
हनुमान जी को राखी बाँधना –
कहते हैं कि रक्षा बंधन पर हनुमान जी को राखी बाँधने से वे भाई–बहनों के क्रोध को शांत करके उनमें आपसी प्रेम बढ़ाते हैं।
रक्षा बंधन का त्योहार पूर्णिमा के दिन –
रक्षा बंधन का त्योहार पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है पूर्णिमा के देवता चंद्रमा हैं। इस तिथि में शिवजी के साथ चंद्रदेव की पूजा करने से मनुष्य का सभी जगह आधिपत्य हो जाता है। यह सौम्या तिथि है। दोनों की पूजा करने से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है।
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माता पार्वती जी को खीर अर्पित करना –
सावन पूर्णिमा के दिन माता पार्वती जी को चावल की खीर बनाकर अर्पित करने से सभी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं।
‘ॐ सोमेश्वराय नमः‘ मंत्र का जाप –
रक्षाबंधन के दिन ‘ॐ सोमेश्वराय नमः’मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाने से आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं और धन लाभ में वृद्धि होती है।