ऋषि पंचमी
हिंदू पंचांग के अनुसार, ऋषि पंचमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के अगले दिन आता है और इस साल, ऋषि पंचमी रविवार, 8 सितम्बर, 2024 को है। इस दिन सप्त ऋषियों कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम महर्षि, जमदग्नि और वशिष्ठ की पूजा की जाती है। केरल में इस दिन को विश्वकर्मा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। ऋषि पंचमी का व्रत उन महान संतों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है, जिन्होंने समाज के कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है और इसे करने से अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है। यह पर्व महिलाओं के लिए अपने पति के प्रति आस्था, कृतज्ञता, विश्वास और सम्मान व्यक्त करने का एक माध्यम है।
ऋषि पंचमी व्रत का महत्व
हिंदू परंपरा के अनुसार, महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने या घरेलू कार्यों, जैसे रसोई के काम में भाग लेने से मना किया जाता है। इस अवधि के दौरान, उन्हें पूजा-पाठ से जुड़ी वस्तुओं को छूने की भी मनाही होती है। अगर किसी मजबूरी, गलती या अन्य कारणों से वे ऐसा कर लेती हैं, तो वे रजस्वला दोष की भागी होती हैं। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखती हैं। ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। माहेश्वरी समाज में, इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। इस दिन बहनें व्रत रखती हैं और अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं। वे पूजा करने के बाद ही भोजन करती हैं। भाई दूज का त्योहार भी भाई-बहन के बीच प्यार को दर्शाता है।
ऋषि पंचमी व्रत कथा
एक बार की बात है, विदर्भ देश में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। ब्राह्मण ने अपनी बेटी की शादी एक ब्राह्मण व्यक्ति से कर दी, लेकिन दुर्भाग्यवश, लड़की का पति असमय ही चल बसा, जिससे वह विधवा हो गई। वह अपने पिता के घर वापस आ गई और वहीं रहने लगी। कुछ दिनों बाद, लड़की के पूरे शरीर में कीड़े हो गए, जिससे उसकी मुश्किलें बढ़ गईं। इस समस्या को देखकर उसके माता-पिता भी चिंतित हो गएं और समाधान के लिए ऋषि के पास गएं। प्रबुद्ध ऋषि ने ब्राह्मण की बेटी के पिछले जन्मों के कर्मों को देखा। ऋषि ने ब्राह्मण और उसकी पत्नी से कहा कि उनकी बेटी ने पिछले जन्म में एक धार्मिक नियम का उल्लंघन किया था। मासिक धर्म के दौरान उसने रसोई के बर्तनों को छुआ था, जिससे उसने पाप अर्जित किया था, जो अब उसके वर्तमान जीवन में परिणामस्वरूप परिलक्षित हो रहा था। पवित्र शास्त्रों के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को धार्मिक वस्तुओं और बर्तनों को छूने की मनाही होती है। ऋषि ने यह भी बताया कि लड़की ने ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया था, जिसके कारण उसे इन परिणामों का सामना करना पड़ रहा है। ऋषि ने ब्राह्मण से कहा कि अगर उनकी बेटी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ ऋषि पंचमी का व्रत रखती है और अपने पापों के लिए क्षमा मांगती है, तो वह अपने पिछले कर्मों से मुक्त हो जाएगी और उसके शरीर के कीड़े खत्म हो जाएंगे। लड़की ने अपने पिता की सलाह मानी और व्रत रखा। इसके बाद, वह कीड़ों से मुक्त हो गई।
अभी जॉइन करें हमारा WhatsApp चैनल और पाएं समाधान, बिल्कुल मुफ्त!
हमारे ऐप को डाउनलोड करें और तुरंत पाएं समाधान!
Download the KUNDALI EXPERT App
हमारी वेबसाइट पर विजिट करें और अधिक जानकारी पाएं
संपर्क करें: 9818318303
ऋषि पंचमी पूजा विधि
✨ ऋषि पंचमी के दिन, स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
✨अब अपने घर में एक साफ जगह पर हल्दी, कुमकुम और रोली का उपयोग करके एक चैकोर आकार का चित्र (मंडल) बनाएं।
✨इस मंडल पर सप्त ऋषियों की प्रतिमा स्थापित करें।
✨प्रतिमा के ऊपर शुद्ध जल और पंचामृत अर्पित करें।
✨चंदन से टीका लगाएं और सप्त ऋषियों को फूलों की माला और पुष्प अर्पित करें।
✨उन्हें पवित्र धागा पहनाएं और सफेद वस्त्र भेंट करें। साथ ही, फल, मिठाई आदि भी अर्पित करें।
✨पूजा के स्थान पर धूप आदि जलाएं।
✨कई क्षेत्रों में यह पूजा नदी के किनारे या तालाब के पास की जाती है।
✨पूजा के बाद, महिलाएं अनाज का सेवन नहीं करतीं। वे एक खास प्रकार के चावल का सेवन करती हैं।
ऋषि पंचमी व्रत का समापन
ऋषि पंचमी व्रत का समापन अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण करके किया जाता है। पारण से पहले स्नान करें और फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं या दान दें। अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें।
ऋषि पंचमी पर खान-पान की परंपराएं
ऋषि पंचमी पर खान-पान की परंपराएं विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग होती हैं। पहले के समय में भक्त अनाज से बने भोजन की बजाय भूमिगत उगने वाले फलों का सेवन करते थें। जैन समुदाय के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण है। जैन धर्म में दो संप्रदाय हैं श्वेतांबर पंथ इस दिन को परशुजन (पर्युषण) महापर्व के अंत के रूप में मनाते हैं, जबकि दिगंबर पंथ इसे महापर्व की शुरुआत के रूप में मानते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन विशेष भोजन बनाया जाता है जिसे ऋषि पंचमी भाजी के नाम से जाना जाता है। इसे मौसमी सब्जियों के साथ पकाया जाता है, जिसमें कंद का उपयोग किया जाता है। यह भाजी साधारण और बिना मसाले के पकाई जाती है, जैसे ऋषि लोग भोजन तैयार करते थे। व्रत करने वाले भक्त इस भाजी से अपना व्रत खोलते हैं। ऋषि पंचमी व्रत ऋषियों के निस्वार्थ परिश्रम को समर्पित है। यह दिन भक्तों को अपने तन-मन और आत्मा को शुद्ध करने का अवसर देता है। पूरे दिन के उपवास के माध्यम से पाचन तंत्र को भी मजबूत किया जाता है।
ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त और तिथि
ऋषि पंचमी दिन रविवार 8 सितम्बर 2024 को मनाया जायेगा।
ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त सुबह 11 बजकर 6 मिनट से दोपहर 01 बजकर 33 मिनट तक है।
कुल अवधि 02 घंटे 27 मिनट
पंचमी तिथि प्रारम्भ-07 सितम्बर 2024 को शाम 05ः 37 से,
पंचमी तिथि समाप्त-08 सितम्बर 2024 को शाम 0758 तक।