वास्तु शास्त्र भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें वास्तु पुरुष की अवधारणा को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। यह प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि किसी भी निर्माण कार्य के लिए वास्तु पुरुष और उनके शरीर पर विराजमान 45 देवताओं की पूजा अनिवार्य होती है। यह कथा भगवान शिव और अंधकासुर दैत्य के बीच के युद्ध से जुड़ी है, जिसमें एक शक्तिशाली प्राणी का जन्म हुआ, जिसे सभी देवताओं ने मिलकर अधोमुखी अवस्था में जमीन में दबा दिया। इस प्राणी को ही वास्तु पुरुष कहा गया।
वास्तु पुरुष का पौराणिक वर्णन
वास्तु पुरुष का शरीर विशिष्ट दिशा में फैला हुआ है। उनका सिर ईशान दिशा में और पैर नैऋर्त्य दिशा में स्थित है। उनके दायें घुटने और कोहनी का स्थान आग्नेय में है, जबकि बायें घुटने और कोहनी वायव्य दिशा में हैं। इस प्रकार वास्तु पुरुष का पूरा शरीर धरती पर फैला हुआ माना जाता है और उनके शरीर के विभिन्न अंगों पर अलग-अलग देवता निवास करते हैं।
45 देवताओं का निवास
वास्तु पुरुष के शरीर पर 45 देवता विराजमान होते हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश और दिकपाल शामिल हैं। इन देवताओं का स्थिरीकरण के प्रतीक रूप में वास्तु पुरुष के शरीर पर बैठना, किसी भी निर्माण कार्य की स्थिरता और संरचना को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
वास्तु शास्त्र में मर्म स्थान
वास्तु पुरुष के शरीर पर कुछ मर्म स्थान होते हैं, जैसे सिर और ह्रदय, जहां भारी वस्तुओं का रखा जाना अशुभ माना जाता है इसलिए किसी भी निर्माण कार्य में इन मर्म स्थानों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
वास्तु पुरुष पूजा का महत्व
किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य की शुरुआत करने से पहले 45 देवताओं की प्रसन्नता के लिए विधिपूर्वक पूजा और आराधना की जाती है। यह न केवल देवताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, बल्कि निर्माण कार्य की सफलता और स्थिरता के लिए भी आवश्यक होता है।
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45 देवताओं का वास्तु पुरुष में महत्व: शक्तियों का परिचय
- ब्रह्मा – यह भवन के केंद्र/ब्रह्मस्थान के स्वामी हैं, जो विश्व के सर्वोच्च निर्माता हैं।
- भुधर – इनका स्थान उत्तर दिशा में है और ये अभिव्यक्तियों और प्राप्तियों के निर्माता होते हैं।
- आर्यमा – पूर्व दिशा के स्वामी हैं, जो भौतिक दुनिया से जुड़ने और विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं।
- विविस्वान – दक्षिण दिशा के स्वामी हैं, जो परिवर्तन और प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
- मित्र – पश्चिम दिशा के स्वामी हैं, जो प्रेरणा और उत्तेजना की शक्ति रखते हैं और दुनिया को एक साथ बांधते हैं।
- आप – उत्तर-उत्तर-पूर्व और उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह शक्ति हीलिंग और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते हैं।
- आपवत्स – उत्तर-पूर्व और पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह योजना देने और उन योजनाओं को पूरा करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
- सविता – पूर्व-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह शक्ति ध्यान और प्रेरणा को बढ़ावा देती हैं।
- सावित्र – दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह ढृढ़ संकल्प की शक्ति और पोषण प्रदान करते हैं
- इंद्र – दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह धन और प्रसव के रक्षक होते हैं।
- जय – दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह जीवन में जीत और कौशल प्रदान करते हैं।
- रुद्र – पश्चिम-उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह जीवन की गतिविधियों का प्रवाह बनाये रखते हैं।
- राजयक्ष्मा – उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह मजबूती और पकड़ प्रदान करते हैं।
- अदिति – उत्तर-उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह शांति और सुरक्षा की शक्ति प्रदान करती हैं।
- दिति – उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह दूरदर्शिता और उदार सोच को व्यक्त करने की क्षमता देती हैं।
- शिखी – उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह विचारों को व्यक्त करने और उन्हें दुनिया पर प्रभावी बनाने की शक्ति देती हैं।
- प्रजन्या – पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह वनस्पतियों की उत्पत्ति का स्रोत होती हैं।
- भीष्म – पूर्व-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह नई चीजों को बाहर लाने में मदद करते हैं।
- आकाश – दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह आंतरिक मन को प्रकट करने और अंदर की ऊर्जा को बढ़ाने की दिशा देते हैं।
- अनिल – दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह कठिन परिस्थितियों में आगे बढ़ने की शक्ति और प्रेरणा प्रदान करते हैं।
- पूषा – दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह मज़बूती और पोषण को बढ़ाते हैं।
- भृंगराज – दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह भेदभाव से बचाने वाली ऊर्जा हैं।
- मृग – दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह किसी चीज को खोजने और उसकी जांच करने की जिज्ञासा देती हैं।
- पितृ – दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह पूर्वजों से जुड़ी ऊर्जा हैं।
- दौवारिक – पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह पारंपरिक ज्ञान और स्मरण शक्ति को बढ़ावा देती हैं।
- शोश – पश्चिम-उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह तनाव और नकारात्मकता को समाप्त करते हैं।
- पपीक्ष्मा – उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह व्यसनों और मानसिक रुकावटों की दिशा हैं।
- रोग – उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह शक्ति और सहायता प्रदान करते हैं।
- नाग – उत्तर-उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह भावनात्मक आनंद और तृष्णा में संतोष प्रदान करते हैं।
- जयंत – पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह सभी प्रयासों में विजय और सफलता दिलाते हैं।
- महेंद्र – पूर्व दिशा में स्थित, यह सहयोग की शक्ति और उच्च प्रशासन से संबंध स्थापित करने में सहायक होते हैं।
- सूर्या – पूर्व दिशा में स्थित, यह आंखों को दूरदर्शिता और निरीक्षण की शक्ति देते हैं।
- सत्य – पूर्व-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह प्रामाणिकता और प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।
- विथथ – दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित, यह असत्य और दिखावा की ऊर्जा से जुड़ी होते हैं।
- गृहक्ष – दक्षिण दिशा में स्थित, यह मन को नियंत्रित करने वाली ऊर्जा हैं।
- यम – दक्षिण दिशा में स्थित, यह आत्म-नियंत्रण और नैतिक कर्तव्य को प्रेरित करते हैं।
- गंधर्व – दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह संगीत और कला की शक्ति प्रदान करते हैं।
- सुग्रीव – पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, यह ज्ञान और सुंदरता प्राप्त करने की शक्ति देते हैं।
- पुष्पदंत – पश्चिम दिशा में स्थित, यह समृद्धि और विकास की इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।
- वरुण – पश्चिम दिशा में स्थित, यह दुनिया को नियंत्रित और तरोताज़ा रखने की शक्ति प्रदान करते हैं।
- असुर – पश्चिम-उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह आध्यात्मिक गहराई और मायावी शक्तियों की आराधना से जुड़े होते हैं।
- मुख्य – उत्तर-उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित, यह रक्षा और अभिव्यक्ति की शक्ति प्रदान करते हैं।
- भल्लव – उत्तर दिशा में स्थित, यह बहुतायत और प्रयासों के परिणामों को बढ़ाते हैं।
- सोम – उत्तर दिशा में स्थित, यह खजाना की ऊर्जा और व्यापार में लाभ प्राप्त करने की शक्ति देते हैं।
- भुजग – उत्तर-उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित, यह प्रतिरोधक क्षमता और जीवन रक्षक दवाईयों की ऊर्जा प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष: वास्तु पुरुष और 45 देवता हमारे जीवन में निर्माण कार्य की महत्ता और उसे विधिवत संपन्न करने की आवश्यकता को दर्शाते हैं। इसलिए जब भी कोई भवन, मंदिर, कार्यालय या अन्य स्थल का निर्माण किया जाता है, तो वास्तु पुरुष की उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए उसकी पूजा करना अनिवार्य होता है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करके हम एक सुखी, समृद्ध और सुरक्षित जीवन की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। यहां पर प्रत्येक शक्ति का विवरण और उनकी दिशा को पंक्ति दर पंक्ति प्रस्तुत किया गया है:
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