विश्वकर्मा पूजा कब है : when is vishwakarma puja

विश्वकर्मा पूजा
विश्वकर्मा पूजा को विश्वकर्मा जयंती के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा जी की सातवीं संतान का जन्म हुआ था जिन्हें भगवान विश्वकर्मा कहा गया। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का देवता कहा जाता है। इस संसार में जो भी रचनात्मक है जो जीवन को संचालित करता है वह सब भगवान विश्वकर्मा की ही रचना है। इसका मतलब यह है कि भगवान विश्वकर्मा दुनिया के पहले शिल्पकार, वास्तुकार और इंजीनियर थे। ऐसा माना जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी तो उसकी साज-सज्जा भगवान विश्वकर्मा नें ही की थी। किसी भी कार्य की रचना या निर्माण के साथ इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अवश्य करें।

विश्वकर्मा पूजा का महत्वः-

विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही व्यापार में लाभ और उन्नति के योग बनते हैं। इस दिन की पूजा से भक्तों में नई ऊर्जा का संचार होता है और व्यापार में आने वाली सभी बाधाएं या समस्याएं दूर होती हंै। ऐसा माना जाता है कि देवताओं के महल और आयुध भगवान विश्वकर्मा की ही रचना है, इसलिए उन्हें रचनाओं का देवता कहा जाता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि ब्रह्मा जी की आज्ञा से ही भगवान विश्वकर्मा ने त्रेता युग में इंद्रपुरी, लंका, द्वापर में द्वारिका और हस्तिनापुर तथा कलियुग में जगन्नाथ पुरी का निर्माण किया। इन सबके अलावा भगवान विश्वकर्मा ने ही सुदर्शन चक्र, शिवजी के त्रिशूल, पुष्पक विमान तथा इंद्र के वज्र का भी निर्माण किया था। सभी देवताओं के महल तथा उनके अस्त्र-शस्त्र विश्वकर्मा की ही रचना है। यमराज के कालदंड का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा नें ही किया था।

विश्वकर्मा पूजा की पौराणिक कथाः-

मुनि विश्वामित्र के आह्नाहन पर ऋषि-मुनि तथा सन्यासी एक स्थान पर एकत्रित हुए। उस सभा में मुनि विश्वामित्र नें सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दुष्ट राक्षस यज्ञ करने वाले लोगों को अपना आहार बना रहे हैं। वे उनके यज्ञों को नष्ट कर रहे हैं तथा उनकी पूजा और ध्यान आदि में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। इसलिए अब हमें दुष्ट राक्षसों के बुरे कर्मों को रोकने के लिए तुरंत कोई उपाय करना चाहिए। विश्वामित्र की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने कहा कि वर्षों पहले भी ऐसी ही समस्या हुई थी, तब वे भगवान ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने उन्हें उनकी समस्या से मुक्ति दिलाई। वशिष्ठ मुनि की बात सुनकर उन्होंने ब्रह्मा जी से मिलने का निर्णय लिया। ब्रह्मा जी ने कहा कि इन दैत्यों से स्वर्ग के देवता भी भयभीत हैं। उन्होंने विश्वकर्मा जी से सहायता मांगने को कहा और कहा कि वे ही आपके दुखों को दूर कर सकते हैं, इसलिए उनसे मिलिए। उसके बाद ऋषिगण अंगिरा पुरोहित के पास गए। उनकी बात सुनकर अंगिरा ऋषि ने कहा कि आपकी सहायता करने की शक्ति केवल भगवान विश्वकर्मा में ही है। उन्होंने कहा कि अन्य कार्यों को रोककर विश्वकर्मा जी की पूजा करो तथा विश्वकर्मा जी की कथा भी सुनो। अंगिरा ऋषि की सलाह पर सभी मुनि अपने आश्रम गए। उन्होंने अमावस्या के दिन यज्ञ किया तथा विश्वकर्मा जी की कथा सुनी। जिसका परिणाम यह हुआ कि सभी राक्षस जलकर राख हो गए। यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हुआ और उनके सभी कष्ट दूर हो गए। जो व्यक्ति भक्ति भाव से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करता है वह सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हुए संसार में उच्च पद की प्राप्त करता है।

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 विश्वकर्मा पूजा की पूजा विधिः-

✨ प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें और घर की शुद्धि करें।
✨ उसके बाद दैनिक उपयोग की सभी मशीनों और उपकरणों को साफ-सुथरा करें।
✨ अब कार्य करने वाली सभी मशीनों की विधि-विधान से पूजा करें।
✨ पूजा आरम्भ करने से पहले पूजा स्थल पर भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा दोनों की एक-एक फोटो रखें।
✨ फिर सजावट के लिए दोनों देवताओं को कुमकुम, अक्षत, गुलाल, हल्दी, फूल, फल, मेवा और मिठाई आदि अर्पित करें।
✨ अब आटे की रंगोली बनाकर उस पर सात प्रकार के अनाज रखें।
✨ पूजा के समय अपने साथ जल का कलश भी रखें।
✨ अंत में अगरबत्ती जलायें और दोनों देवताओं की कपूर जलाकर आरती करके पूजा की समाप्ति करें।

विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्तः-

विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रान्ति का क्षण – 16 सितम्बर 2024, शाम07ः53 मिनट पर।

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