मंदिरों में घंटा और घंटी का धार्मिक महत्व अत्यधिक होता है। घंटी बजाने से पूजा में विशेषता आती है और यह देवता को जागृत करने का प्रतीक भी माना जाता है परंतु, वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में ऐसा कोई घंटा या घंटी नहीं है। यह विशेषता इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। आइए जानते हैं इस रहस्य के पीछे छिपी कहानी और क्यों बांके बिहारी मंदिर में घंटा नहीं है।
बांके बिहारी मंदिर का इतिहास
बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन के प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन में स्थित है और यहां भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को पूजा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1864 में हरिदास जी ने करवाया था। हरिदास जी, भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा करते थे और इसे उनके भक्तों को समर्पित किया था।
क्यों नहीं है घंटा बांके बिहारी मंदिर में?
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कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा
बांके बिहारी मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा होती है। इस स्वरूप की विशेषता यह है कि यह न केवल आदर्श रूप है बल्कि बहुत ही संवेदनशील भी माना जाता है। हरिदास जी की मान्यता के अनुसार इस स्वरूप को किसी भी प्रकार की अशांति से बचाने के लिए मंदिर में घंटा और घंटी का उपयोग नहीं किया जाता।
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नींद और आराम की रक्षा
मंदिर में घंटा और घंटी न होने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि भगवान कृष्ण के बाल रूप को किसी भी प्रकार की असुविधा से बचाया जा सके। घंटी बजाने से जब भक्त मंदिर में आते हैं और निकलते हैं, तो यह लाला की नींद को बाधित कर सकती है। इसलिए इस प्रकार की ध्वनियों से बचने के लिए मंदिर में घंटा नहीं लगाया गया है।
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भक्तों की भावनाओं का सम्मान
मंदिर के संत और पुजारी यह मानते हैं कि घंटा बजाने से भगवान की नींद खराब हो सकती है और इससे भक्तों की भावनाओं का भी सम्मान नहीं हो सकता। इसीलिए यहां घंटा, घंटी और घड़ियाल का उपयोग नहीं किया जाता है। यह मंदिर भक्तों की भावनाओं और भगवान के आराम को सर्वोपरि मानता है।
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वृंदावन के अन्य मंदिरों से भिन्नता
मथुरा और वृंदावन क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में घंटा और घंटी लगाई जाती है, लेकिन बांके बिहारी मंदिर इस दृष्टि से अलग है। यहां का विशेष प्रबंधन और पूजा पद्धति इस बात को सुनिश्चित करती है कि भगवान श्री कृष्ण का बाल स्वरूप हर समय शांत और आरामदायक वातावरण में रहे।
बांके बिहारी मंदिर की घंटा-रहित विशेषता इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। यह विशेषता भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा के प्रति एक अनूठी श्रद्धा और सम्मान को दर्शाती है। इस मंदिर की पूजा विधियों और मान्यताओं के अनुसार, घंटा और घंटी का अभाव इस बात को सुनिश्चित करता है कि भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप बिना किसी विघ्न और परेशानी के अपनी साधना में मग्न रहे। इस प्रकार, बांके बिहारी मंदिर एक अनोखा धार्मिक स्थल है जो भक्तों और भगवान के बीच एक विशेष संबंध की स्थापना करता है।