हिन्दू धर्म में वैसे तो छठ का अत्यधिक महत्व होता है परन्तु इनमें से यमुना छठ का भी उतना ही महत्व होता है जितना की बाकी के पड़ने वाले छठ का यमुना छठ वासंतिक नवरात्र की छठ (चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है) मान्यता के अनुसार इसी दिन यमुना पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं इस दिन को यमुना जयंती के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार नदियों को देवी के रूप में भी पूजा जाता है।
यमुना छठ का महत्व
यमुना छठ हिन्दू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है विशेष रूप से प्रभु श्री कृष्ण जी के भक्तों के लिए यह और भी महत्वपूर्ण त्योहार है। प्राचीन कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि यमुना भगवान श्री कृष्ण की पत्नी थी। इसलिए यमुना छइ का यह पर्व ब्रज, मथुरा तथा वृन्दावन में रहने वाले लोगों के लिए अत्यधिक श्रद्धा रखता है। सभी पवित्र नदियाँ, गंगा, ब्रह्मपुत्र, सरस्वती और गोदावरी नदी की तरह ही यमुना नदी को भी एक पवित्र नदियों की संज्ञा दी गई है। इसी कारण यह पर्व देवी यमुना के वंश के तथा यमुना जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यमुना छठ का यह महत्वपूर्ण पर्व करने से जातक को सुख, शांति और समृद्धि की पूर्ण प्राप्ति होती है।
यमुना छठ से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार इससे जुड़ी एक कथा बहुत ही ज्यादा प्रचलित है। सूर्यदेव की पत्नी छाया की पुत्री यमुना थीं और पुत्र यम थे। वह दोनों ही भाई-बहन श्याम रंग के थे। सूर्य देव के पुत्र यम, यमुना से बहुत ज्यादा प्रेम और स्नेह करते थे। इसलिए यमराज ने अपनी बहन यमुना को यह आशीर्वाद दिया कि यमुना नदी में यदि कोई भक्त स्नान करने आयेगा तो वह यमलोक में नही जायेगा। तभी से यमुना नदी में स्नान करना बहुत ही ज्यादा पवित्र माना जाता है।
भगवान श्री कृष्ण जी ने माँ लक्ष्मी को राधा के रूप में जन्म लेने के लिए कहा तो माँ लक्ष्मी यमुना जी को भी अपने साथ ले आयी। इसलिए द्वापर युग में यमुना देवी धरती पर नदी के रूप में अवतरित हुई। इसी दिन से ब्रज में भी यमुना को देवी माँ के रूप में माना जाने लगा इस दिन सभी भक्त यमुना छठ करने और पूजा-पाठ करने के लिए यमुना नदी पर एकत्रित होते हैं।
यमुना छठ का ज्योतिषीय महत्व
हिन्दू धर्म में सभी पवित्र नदियों में पूज्यनीय माने जाने वाली यमुना देवी की साधना और आराधना न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्व रखता है बल्कि इसका ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी उतना ही महत्व है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जो जातक इस दिन पूरे विधि-विधान से यमुना नदी में स्नान पूजा और दान-दक्षिणा करता है उस पर माँ यमुना देवी की विशेष कृपा होती है। इसके अलावा कुण्डली में उपस्थित शनिदेव का भय नही रहता है साथ ही यमलोक जाने के भय से भी मुक्ति मिल जाती है।
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यमुना छठ की पूजा विधि और अनुष्ठान
☸ यमुना छठ के दिन सर्वप्रथम सभी भक्तों को भोर से पहले उठकर सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान यमुना की पवित्र नदी में स्नान करते हैं। यदि पवित्र नदी में स्नान कर पाना संभव न हो तो घर में ही माँ यमुना देवी का ध्यान करके आध्यात्मिक स्नान करना चाहिए। उसके बाद माँ यमुना देवी का पूरे विधि-विधान से मूर्ति या तस्वीर रखकर श्रद्धा से पूजा की जाती है।
☸ पूजा के दौरान ही माँ यमुना देवी के लिए यमुनाष्टक का पाठ करना चाहिए। माँ यमुना का श्री कृष्ण जी के साथी के रूप में भी जाना जाता है इसलिए इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
☸ इस दिन सभी भक्त यमुना छठ का विशेष उपवास रखते हैं पूरे 24 घण्टे तक कुछ भी खाते-पीते नही हैं। पूरे 24 घण्टे का उपवास रख लेने के बाद ही इस व्रत को तोड़ा जाता है।
☸ यदि संभव हो तो यमुना तट पर जाकर शुद्ध देसी घी का दीपक जलाकर आरती अवश्य करें साथ ही यमुना छठ की कथा भी सुनें।
☸ माँ यमुना नदी को अर्पण करने के लिए नैवेद्यम प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है पूजा खत्म हो जाने के बाद भोजन ब्राह्मणों को भी दान करें उसके बाद इस प्रसाद को मित्रों और रिश्तेदारों के बीच में वितरित करें।
यमुना छठ शुभ मुहूर्त
14 अप्रैल 2024 को यमुना छठ रविवार के दिन मनाया जायेगा।
षष्ठी तिथि प्रारम्भः- 13 अप्रैल 2024 दोपहर 12ः04 मिनट से,
षष्ठी तिथि समाप्तः- 14 अप्रैल 2024 सुबह 11ः43 मिनट तक।
विशेषः- यमुना छठ को यमुना जयंती यानि इनके जन्मोत्सव के रूप में जाना जाता है इस दिन यमुना नदी में श्रद्धा से दीपदान करने वाले जातकों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यमुना नदी का उद्गम स्थल हिमालय के हिमाच्छाद्रित श्रंग बंदरपुच्छ में स्थित कालिंद पर्वत है जिसके नाम पर यमुना नदी को कालिंदजा अथवा कालिंदी भी कहा जाता है।