भगवान शिव के हाथों से कैसे आया त्रिशूल जाने सबसे बड़ा रहस्य

शिवजी के पास कहां से आया नाग डमरु, त्रिशूल एवं नदी

भगवान शिव की महिमा को कौन नही जानता हैं तथा भगवान शिव का ध्यान करने मात्र से मन में जो छवि उभरती है वो एक वैरागी पुरुष की महादेव के एक हाथ में डमरु, गले में सर्प माला सिर पर त्रिपुंड चंदन लगा होता है इसके साथ ही माथे पर अर्द्ध चन्द्रमा और सिर पर जटाजूट जिससे गंगा की धारा बह रही हैं, और नंदी भी इनके साथ रहते हैं अर्थात भगवान शिव के साथ जुड़ी 7 वस्तुएं सदैव उनके साथ रहती है।

क्यों सिर पर चन्द्रमा धारण किये

भगवान शिव के हाथों से कैसे आया त्रिशूल जाने सबसे बड़ा रहस्य 1

शिव पुराण के अनुसार महाराज दक्ष अपनी 27 कन्याओं का विवाह-चन्द्रमा के साथ किये थे लेकिन चन्द्रमा रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थें। तब दक्ष की सभी पुत्रियों ने इसकी शिकायत अपने पिता से की तब दक्ष ने चन्दमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दिया इससे बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की आराधना की और भगवान भोलेनाथ उनकी भक्ति-भाव से प्रसन्न हुए और उनके प्राणों की रक्षा की और अपने सिर पर चन्द्रमा को धारण किया लेकिन आज भी चन्द्रमा के घटने-बढ़ने का कारण महाराज दक्ष को ही माना जाता है।

क्यों भोलेनाथ ने त्रिशूल धारण किया

हम सभी भोलेनाथ के हाथ मे त्रिशूल देखते हैं जो सृष्टि के आरम्भ से ही शिव जी के हाथो में रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब शिव जी प्रकट हुए थें तो उनके साथ ही साथ  रज, तम और सत  तीन गुण भी उत्पन्न हुए थें जो एक त्रिशूल के रूप में परिवर्तित हो गये । इन गुणों को संतुलन में बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक था इसलिए शिवजी ने  इसे अपने हाथों में ले लिया।

भगवान शिव जी ने जिस प्रकार संतुलन बनायें रखने के लिए अपने हाथो में त्रिशूल लिया उसी प्रकार सृष्टि का संतुलन बनाये रखने के लिए उन्होंने डमरू धारण किया था। जब माता सरस्वती प्रकट हुई थी तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सष्टि में ध्वनि का संचार किया लेकिन कहा जाता है कि वह ध्वनि सुर एवं सगीत हीन थी तब भोलेनाथ ने नृत्य किया और 14 बार डमरु बजाया जिससे धुन और ताल का जन्म हुआ। डमरू को ब्रह्मदेव का स्वरूप माना जाता है।

क्यों जटा में गंगा को धारण किए

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पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजो को जीवन-मरण के दोष से मुक्त कराने के लिए पृथ्वी पर गंगा को लाने का कठोर तप किया। इससे मां गंगा प्रसन्न हुई और वह पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गई लेकिन उन्होंने बताया कि पृथ्वी उनका वेग नहीं सह पायेगी और रसताल में चली जायेंगी। यह सुनकर भागीरथ ने भगवान शिव की पूजा की तब शिव जी उनकी पुजा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा कि भागीरथ ने उनसे अपना मनोरथ कहा इसके बाद जैसे ही गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई तो भोलेनाथ ने उनका अभिमान खत्म करने के लिए उनको अपनी जटाओं में कैद कर लिया। इस प्रकार उन्हें गंगा को अपने जटाओं में धारण किया।

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