ओम शब्द के उच्चारण मात्र से व्यक्ति चिंता मुक्त होकर सीधे परमात्मा से जुड़ने का प्रयास करता है। ओम शब्द की उत्पत्ति तीन ध्वनियों से हुई है अ, ऊ और म। अ ब्रह्मा जी का बोधक है ऊ विष्णु जी का बोधक है और ‘म’ रुद्र का बोधक होता है। इसका अर्थ है कि इस एक ओम की ध्वनि मात्र से ही अर्थात ओम के उच्चारण से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवो की उपासना कर सकते है। शिव पुराण में ऐसी मान्यता है कि नाद और बिन्दु के मिलने से ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है। नाद का अर्थ होता है ध्वनि एवं बिन्दु का अर्थ होता है प्रकाश अर्थात ब्रह्माण्ड स्वयं ही इसके प्रकाश से प्रकाशित है और इसें परमेश्वर का प्रकाश यानि शुद्ध प्रकाश कहा जाता है। समस्त ब्रह्माण्ड में कंपन ध्वनि और प्रकाश भी उपस्थित है। ओम के उच्चारण से नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र में जागरुकता उत्पन्न होती है तथा सुख की प्राप्ति होती है इसके अलावा यह मोक्ष की ओर ले जाने का उत्तम साधन है। धर्म शास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है और ओम के आगे या पीछे लिखे जाने वाले शब्द गोण कहलाते है। ओम के उच्चारण को लेकर यह भी मान्यता है कि अगर एकांत में बैठकर कुछ समय ओम शब्द का उच्चारण करते है और फिर उस उच्चारण को रोक देते है तो भी यह शब्द हमारे मन, मस्तिष्क और शरीर के भीतर इस ध्वनि का उच्चारण होता रहता है।
ओम ध्वनि का रहस्यः-
ओम एक ऐसी प्राकृतिक ध्वनि है जो बिना किसी टकराव से उत्पन्न होती है इसे अक्षर शब्द, नाद, ध्वनि भी कहा जा सकता है। ओम शब्द की तीन ध्वनियां है अ- ध्वनि- ऊ ध्वनि और म ध्वनि (अ+ऊ+म) इन तीन अक्षरों को जोड़कर एक ओम शब्द बनता है। ओम की इस ध्वनि से ही समस्त संसार की सभी भाषाएं और बोलियां बनती है। कहा जाता है की एक गुंगा व्यक्ति भी अ ध्वनि, ऊ ध्वनि और म ध्वनि को बोल सकता है। मनुष्य की भाषा कोई भी हो किन्तु जब वह उच्चारण के लिए मुंह खोलता है तब सर्वप्रथम अ की अर्थात अकार की ध्वनि ही निकलती है और जब उच्चारण के उपरान्त मुंह बन्द करता है तब म ध्वनि अर्थात मकार की ध्वनि निकलती है तथा जब मनुष्य अपने होंठों को समीप लाकर मुख को आधा खुला और आधा बंद रखता है तब मुख से ऊं ध्वनि अर्थात ऊंकार की ध्वनि निकलती है इसलिए सभी भाषाओं की सभी ध्वनियां चाहें वह स्वर हो अथवा व्यंजन यह ओमकार के अन्तर्गत ही आती है। इसलिए ओम एक विशिष्ट वैश्विक ध्वनि है तथा यह ईश्वर का प्रतीक है।
माडुक्य उपनिषद् के अनुसार ओम ध्वनि जगत की उत्पत्ति और लय का प्रतीक है।
अ- ध्वनि, सर्जन को दर्शाती है।
ऊं- ध्वनि, सांसारिक प्रपंच को दर्शाती है।
म- ध्वनि, लय को दर्शाती है।
ओमकार आत्मा के तीन अवस्थाओं को भी दर्शाता है।
1. जागृतः- इस अवस्था में जीवात्मा अपने स्थूल अंगों और इन्द्रियों के द्वारा भोगों को भोगता है।
2. स्वप्न अवस्थाः- इस अवस्था में जीव अंतः प्राय होकर जागृत अवस्था में भोगे हुए भोगो को अपने मन के द्वारा अनुभूति करता है।
3. सुषुप्ति अवस्थाः- इस अवस्था में जीवात्मा, आनन्दमय, ज्ञान स्वरुप हो जाता है और ज्ञान से परमानन्द को प्राप्त करता है।
इन तीनों अवस्था के बाद आत्मा ब्रह्मलीन हो जाता है। इस अवस्था में आने के बाद आत्मा अदव्यय में शिव ही शिव रह जाता है उसे जीव जगत और ब्रह्मा के भेद का बोध नही रहता है और उसे अनाहद नाद ओमकार ही सुनाई देता है। अनाहद नाद कोई ध्वनि नही होती है किन्तु यह एक अनुभूति है जिसमें आत्मा कहती है। अहम् ब्रह्मस्मि शिवोहम हम अर्थात मै ही ब्रह्मा हूं मै ही शिव हूं मै ही ओमकार हूं। मैने ही जगत के रुप में अपना विस्तार किया है। मै ही शिव हूं, जो अपने ही रुप हिरण को मारने जा रहा हूं, मैं ही पिता हूं एवं मै ही पुत्र हूं और मैं ही अपने माता-पिता के रुप में जन्म ले चुका हूं, इस संसार में केवल मै ही हूं।
ओम के उच्चारण से कैसे होता है स्वास्थ्य में लाभः-
☸मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मंत्र का जाप करना आवश्यक है। ओम शब्द निर्मित एवं सर्व शक्तिमान है। जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस देने वाले ओम शब्द के उच्चारण से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है।
☸ओम शब्द के नियमित उच्चारण मात्र से शरीर में मौजूद आत्मा जागृत हो जाती है और रोग एवं तनाव से मुक्ति मिलती है।
☸ओम शब्द का उच्चारण मनुष्य को शारीरिक ऊर्जा एवं मानसिक शांति प्रदान करता है जिसके कारण स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है।
☸ओम मंत्र के प्रयोग से घर में मौजूद वास्तु दोष से मुक्ति मिलती है।