चतुःसागर योग का निर्माण और उसके प्रभाव

चतुःसागर योग का निर्माण और उसके प्रभाव

ज्योतिषाचार्य के.एम. सिन्हा जी के अनुसार, जीवन में घटित घटनाओं की सहज प्रवृत्ति को समझने के लिए संस्कृृत शब्द युज का उपयोग किया जाता है, जिसका अर्थ होता है ग्रहों या राशियों का उचित संयोजन या तालमेल। योग तब बनता है जब ग्रह, राशि या भाव एक दूसरे के साथ संयोजन, पहलू या युति में आते हैं।
वैदिक ज्योतिष में योग ग्रहों की चाल और दशा पर आधारित होता है, जिससे यह पश्चिमी ज्योतिष की तुलना में अधिक प्रभावी है। कुंडली में विभिन्न योगों का व्यक्ति के जीवन पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है। कुछ योग अशुभ प्रभावों को समाप्त कर सकते हैं, इसके अलावा कुछ ग्रह शुभ योग के निर्माण से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं। इस प्रकार, ग्रहों का मेल और योग जीवन की दिशा और परिणामों को प्रभावित करते हैं। kundali expert

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ज्योतिषाचार्य के.एम. सिन्हा जी के अनुसार जानें कुण्डली में चतुःसागर योग का निर्माण कब होता है? ।

वैदिक ज्योतिष में चतुःसागर योग तब बनता है जब कुंडली के चार प्रमुख केंद्र भाव (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम) में ग्रह स्थित होते हैं। ये केंद्र भाव कुंडली के महत्वपूर्ण स्थान होते हैं, यदि इन स्थानों पर शुभ ग्रह उपस्थित हों तो यह योग जातक के जीवन में स्वास्थ्य, आयु, व्यवसाय, शिक्षा, धन, संपत्ति, समृद्धि, प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि जैसे अच्छे परिणाम ला सकता है।

चतुःसागर योग की शर्तेंः

हालांकि, यह योग सिर्फ ग्रहों की स्थिति से नहीं बनता है। यदि कुंडली में इस योग के बनने की सही स्थिति है, तो अन्य शर्तें भी पूरी होनी चाहिए। विशेष रूप से, कम से कम तीन केंद्र भावों में शुभ ग्रहों का होना अनिवार्य है। केवल केंद्र भावों की स्थिति पर विचार करना जरूरी है, क्योंकि चंद्रमा से स्थित ग्रहों की स्थिति इस योग को नहीं बना सकती है। Astrologer KM Sinha

किस स्थिति में चतुःसागर योग का निर्माण नहीं होता है?

यदि किसी जातक की कुंडली में शनि पहले भाव में मीन राशि में, सूर्य सातवें भाव में कन्या राशि में, मंगल चैथे भाव में मिथुन राशि में और चंद्रमा दसवें भाव में धनु राशि में स्थित हों तो, इस स्थिति में शनि और सूर्य पाप ग्रह माने जाते हैं और शनि का पहले भाव में होना कुंडली के लिए नकारात्मक प्रभाव दे सकता है, ऐसे में चतुःसागर योग का निर्माण नहीं हो सकता, इसके अलावा वक्री और अस्त ग्रह के होने की स्थिति में भी चतुःसागर योग का निर्माण नहीं होगा। World famous Astrologer

किस स्थिति में चतुःसागर योग का निर्माण होता है?

यदि किसी कुंडली के पहले घर में बृहस्पति मीन राशि में है, मंगल दसवें घर में धनु राशि में है, शुक्र चैथे घर में मिथुन राशि में है और बुध सातवें घर में कन्या राशि में है, तो इस स्थिति में यहां बृहस्पति, मंगल और बुध शुभ ग्रह हैं, जबकि शुक्र अशुभ है। इस स्थिति में चतुःसागर योग बन सकता है, क्योंकि यहाँ शुभ ग्रहों की स्थिति सही है।

महादशा और चतुःसागर योगः

योग की प्रभावशीलता महादशा (ग्रह काल) के आधार पर भी बदल सकती है। जब पाप ग्रहों की महादशा होती है, तो चतुःसागर योग का शुभ प्रभाव कम हो सकता है। वहीं, जब शुभ ग्रहों की महादशा होती है, तो योग के अच्छे परिणाम बढ़ सकते हैं। विशेष रूप से, जब इस योग के निर्माण में शामिल ग्रहों की महादशाएं प्रभावी होती हैं, तो जातक को अधिकतम लाभ मिल सकता है। India’s Most Popular Astrologer.

चतुःसागर योगः की शक्ति और उसका प्रभावः

चतुःसागर योग का प्रभाव इसके ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। इसमें शामिल ग्रहों का राशियों, नक्षत्रों और नवमांश में स्थित होने के साथ-साथ कुंडली के अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाता है। जब यह योग मजबूत होता है, तो यह जातक को उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं में अच्छा परिणाम दे सकता है। इस योग के प्रभाव से जातक की प्रसिद्धि और सम्मान बढ़ता है और वह शासकों के समान उच्च पद प्राप्त करता है। जातक की आयु लंबी होती है और वह भौतिक दृृष्टि से सम्पन्न और धनवान बनता है। इसके अलावा, जातक के बच्चे भी श्रेष्ठ होते हैं, उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और वह चारों दिशाओं में यात्रा कर जीवन का आनंद उठाता है। यह योग जातक को मानसिक, शारीरिक और भौतिक समृद्धि प्रदान करता है, जिससे वह समाज में एक प्रतिष्ठित और सम्मानित स्थान प्राप्त करता है।

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चतुःसागर योग को बढ़ाने के लिए करें ये निम्न उपायः

चतुःसागर योग को बढ़ाने के लिए सबसे पहले आपको अपने लक्ष्य पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित रहें और किसी भी प्रकार के भटकाव से बचें। इसके साथ ही, सदैव सत्य का पालन करें, क्योंकि सत्य की राह पर चलने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। धार्मिक मान्यताओं का पालन करना भी आवश्यक है, क्योंकि यह मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। आपको उदार और दयालु बनकर दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि यह आपके अच्छे कर्मों को बढ़ाता है और आपके जीवन में शुभ फल लाता है। अंत में, समाज में बदलाव लाने के लिए परिवर्तनशील बनें, ताकि आप न केवल अपनी जिंदगी को सुधार सकें, बल्कि दूसरों की मदद से समाज को भी बेहतर बना सकें। इन सभी गुणों को अपनाने से चतुःसागर योग का प्रभाव मजबूत हो सकता है और जीवन में समृद्धि और सफलता के द्वार खुल सकते हैं।

चतुःसागर योग से संबंधित कुछ उदाहरण निम्न हैंः

महात्मा गांधी (राष्ट्रपिता) की कुंडली में चतुःसागर योग का निर्माणः  

महात्मा गांधी, जो शांति और अहिंसा के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं और जिन्हें राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया गया, उनका जन्म चतुःसागर योग के साथ हुआ था, जिसमें तीन केंद्रों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव था। उनकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनके अच्छे मेल नें उन्हें बुद्धिमत्ता, लोकप्रियता और दृृढ़ संकल्प दिया, जिससे वे एक महान राजनीतिक नेता बन सके। उन्होंने अपनी अहिंसा की नीति और दृृढ़ ृदृृष्टिकोण के माध्यम से भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्ष किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ निर्णायक परिवर्तन लाए। गांधी जी की कुंडली में चतुःसागर योग नंे उनकी महानता और संघर्ष के रास्ते को और भी मजबूत कर दिया। Genuine Astrologer in Delhi

डोनाल्ड ट्रम्प (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति/व्यवसायी) की कुंडली में चतुःसागर योग का निर्माणः

चतुःसागर योग का निर्माण और उसके प्रभाव

डोनाल्ड ट्रम्प की कुंडली में भी चतुःसागर योग का गठन था, जिसमें तीन प्रमुख घरों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव था। वह एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ, मीडिया हस्ती और व्यवसायी हैं, जिन्होंने 2017 से 2021 तक संयुक्त राज्य अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। ट्रम्प नंे 1971 में अपने पिता के रियल एस्टेट व्यवसाय का अध्यक्ष पद संभाला जिसे ट्रम्प आॅर्गनाइजेशन के नाम से जाना गया। इसके बाद, उन्होंने गगनचुंबी इमारतों, होटलों, कैसिनो और गोल्फ कोर्स के निर्माण में निवेश किया और कंपनी को वैश्विक स्तर पर फैलाया। बाद में उन्होंने अपने नाम का लाइसेंस देकर कई साइड उद्यम भी शुरू किए, जिससे उनकी व्यवसायिक सफलता और बढ़ गई।

 

 

 

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