Site icon Kundali Expert

आज ही पढ़ें 03 जून 2023 ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत, पूजा विधि महत्व एवं शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत, पूजा विधि महत्व एवं शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत, पूजा विधि महत्व एवं शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महिलाएं उपवास रखती हैं तथा अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन को वट पूर्णिमा भी कहा जाता है तथा वट वृक्ष की पूजा की जाती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए जिससे सभी पापों का नाश होता है। इस दिन पितरों की आराधना की जाती है तथा दान-पुण्य का भी महत्व होता है। इस दिन बरगद के पेड़ के प्रति बहुत सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करते हुए पूजा की जाती है। बरगद के पेड़ को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। वट सावित्री और यमराज के बीच हुई बातचीत बरगद के पेड़ के नीचे हुयी थी। बरगद का पेड़ देवताओं की त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। जिन युवक और युवतियों का विवाह होते-होते रुक जाता है या फिर उसमे किसी प्रकार की बाधा हो तो भगवान विष्णु के इस व्रत से सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा

राजा अश्वपति के घर देवी सावित्रि के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम महाराज ने सावित्री ही रखा पुत्री को युवा अवस्था को प्राप्त होते देखकर राजा ने मंत्रियों से सलाह की इसके बाद राजा ने सावित्री से कहा की उसे योग्य वर देने का समय आ गया है।

वह उसकी आत्मा के अनुरूप वर को नही पा रहा इसलिए वह पुत्री को भेज रहा है। ताकि वह स्वयं वह अपने योग्य वर ढूंढ ले। पिता की आज्ञा पाकर सावित्री निकल पड़ी और फिर एक दिन उसने सत्यवान को देखकर मन ही मन वर नारद वर चुन लिया। जब उसने देवऋषि नारद को यह बात बतायी। तब देवऋषि नारद ने कहा की वह एक हिन्दू नारी है। इसलिए वह पति एक बार चुनती है। सावित्री की बात सभी ने स्वीकार की और दोनों का विवाह करवा दिया। एक दिन सत्यवान के सिर मे अधिक पीड़ा होने लगी सावित्रि ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया उसी समय सावित्री ने देखा की उनके यमदूतो के साथ यमराज आ पहुंचे। सत्यवान के शरीर को दक्षिण दिशा की ओर ले कर जा रहे हैं।

यह देखकर सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी उसे पीछे आते देख यमराज ने कहा पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अतः उसे वापस लौट जाना चाहिए। इस बात को सुनकर सावित्री ने कहा जहां उसके पति रहेंगे उसे भी वहां उनके साथ रहना है। यही उसका पत्नी धर्म है। सावित्री की मुख से यह बात सुनकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री से वर मांगने को कहा और बोले की वह उसे तीन वर देना चाहते हैं। तब सावित्री ने यम से अपने सास-ससुर की नेत्र ज्योति मांगी तथा अपने ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा और अपने पति सत्यवान के पुत्रों की माता बनने का वर मांगा सावित्री के यह तीनों वर सुनकर सत्यवान ने उसे आशीर्वाद दे दिया और कहा की ऐसा ही होगा। सावित्री ने अपनी बुद्धिमानी से यमराज को उलझा दिया। पति के बिना पुत्रवति होना जितना असंभव था उतना ही यमराज को अपने वचन से मुख मोड़ लेगा। अंततः उन्हें सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े सावित्री उसी वट वृक्ष के पास लौट आयी। यहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के प्राण से शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति के प्राण वापस पा लिये बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलवाया।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का महत्व

पूर्णिमा के दिन भगवान नारायण और माता लक्ष्मी के अलावा चन्द्रमा की पूजा की जाती है। मान्यता है की पूर्णिमा व्रत आपको मानसिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है और इस दिन महिलाएँ अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं। जिन लोगों की कुन्डली में चन्द्रमा दूषित है। उनके लिए पूर्णिमा का व्रत काफी पुण्यदायी होता है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान होते हैं उन्हें पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए तथा वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने के लिए भी पूर्णिमा का व्रत काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत पूजा विधि

☸ ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
☸ उसके बाद भगवान के समक्ष संकल्प लें।
☸ उसके बाद श्री नारायण तथा माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें।
☸ उन्हें रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, खीर, पंचामृत, धूप, दीप, वस्त्र आदि अर्पित करें।
☸ सायंकाल में चन्द्र दर्शन करें और अर्घ्य दें, इसके बाद व्रत का पारण करें।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा व्रत प्रारम्भः- 03 जून 2023, को शाम 03 बजकर 46 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समापनः- 04 जून 2023, रविवार को दोपहर 01 बजकर 41 मिनट तक

 

279 Views
Exit mobile version