नरसिंह द्वादशी – 10 मार्च 2025

नरसिंह द्वादशी – 10 मार्च 2025

नरसिंह द्वादशी हिंदू कैलेंडर में एक पवित्र दिन है, जो भगवान नरसिंह, भगवान विष्णु के चौथे अवतार को समर्पित है। यह दिन फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आता है। इस शुभ अवसर को भक्तगण बड़े भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। 2025 में, नरसिंह द्वादशी सोमवार, 10 मार्च को मनाई जाएगी।

नरसिंह द्वादशी का महत्व

यह दिन भगवान नरसिंह से जुड़ा हुआ है, जो आधे मनुष्य और आधे सिंह के रूप में भगवान विष्णु का अवतार हैं। उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और असुर राजा हिरण्यकश्यप का अंत करने के लिए इस रूप में अवतार लिया था। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म (न्याय) की रक्षा का प्रतीक है।

हिंदू परंपराओं में नरसिंह द्वादशी का बहुत महत्व है। भक्तगण मानते हैं कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से:

  • नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन के लिए आशीर्वाद मिलता है।
  • आध्यात्मिक प्रगति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अनुष्ठान और परंपराएँ

भक्तगण भगवान नरसिंह की पूजा करने के लिए विभिन्न अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन करते हैं। यहाँ इनके बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है:

  1. व्रत का पालन करना

नरसिंह द्वादशी पर उपवास रखना एक सामान्य प्रथा है। व्रत के विभिन्न रूप हैं:

  • निर्जल व्रत: भोजन और पानी का पूर्ण त्याग।
  • फलाहार व्रत: केवल फल, दूध और पानी का सेवन।
  • शाम को पूजा और भगवान को नैवेद्य अर्पित करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है।
  1. प्रातःकाल स्नान और प्रार्थना
  • भक्त प्रातः जल्दी उठकर पवित्र स्नान करते हैं, अक्सर नदी में या पवित्र जल का उपयोग करके।
  • वे स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु और भगवान नरसिंह की पूजा करते हैं।
  1. देवताओं का श्रृंगार
  • भगवान नरसिंह की मूर्तियों और चित्रों को फूलों, चंदन और हल्दी से सजाया जाता है।
  • भक्तगण दीपक, अगरबत्ती और अन्य सामग्री के साथ एक विशेष वेदी तैयार करते हैं।
  1. मंत्रोच्चार और पाठ
  • नरसिंह कवच स्तोत्र और भगवान नरसिंह को समर्पित अन्य भजनों का पाठ किया जाता है।
  • “ओं नमो भगवते नरसिंहाय” मंत्र का जाप करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
  1. भोग अर्पण
  • मिठाई, फल और दूध से बने विशेष व्यंजन भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
  • भक्त सुनिश्चित करते हैं कि भोग श्रद्धा और पवित्रता के साथ तैयार किया जाए।
  1. दान और करुणा के कार्य
  • इस दिन भोजन, वस्त्र या धन का दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • कई भक्त जानवरों को भोजन कराते हैं, इसे करुणा का कार्य माना जाता है।
  1. सायंकालीन पूजा और आरती
  • एक विस्तृत सायंकालीन पूजा की जाती है, जिसमें भजन गाए जाते हैं और आरती की जाती है।
  • भक्त दीप जलाकर भगवान की कृपा की प्रार्थना करते हैं।

पौराणिक पृष्ठभूमि

भगवान नरसिंह के अवतार की कथा पुराणों, विशेष रूप से भागवत पुराण में मिलती है। असुर राजा हिरण्यकश्यप को एक वरदान प्राप्त था, जिसने उसे लगभग अमर बना दिया था। उसे न मनुष्य न जानवर, न दिन में न रात में, न भीतर न बाहर, और न किसी हथियार से मारा जा सकता था।

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, जो असुर राजा को असहनीय था। उसने प्रह्लाद को कई बार मारने का प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद भगवान की कृपा से सुरक्षित रहा। अंततः भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण किया और गोधूलि बेला (न दिन न रात) में खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का अंत किया। उन्होंने अपने नखों (न हथियार न बिना हथियार) से उसका वध किया, इस प्रकार वरदान की शर्तों को पूरा किया।

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ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, नरसिंह द्वादशी को ग्रहों की स्थिति, विशेष रूप से राहु और केतु के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए एक शक्तिशाली दिन माना जाता है। जिन भक्तों को प्रतिकूल ग्रहों के प्रभावों के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उन्हें भगवान नरसिंह की पूजा करने की सलाह दी जाती है।

आध्यात्मिक रूप से, यह दिन भगवान की इच्छा में समर्पण और विश्वास के महत्व को दर्शाता है। प्रह्लाद की कथा विपरीत परिस्थितियों में भी भक्ति में अडिग रहने की प्रेरणा देती है।

भगवान नरसिंह को समर्पित प्रमुख मंदिर

भारत में भगवान नरसिंह को समर्पित कई मंदिर हैं, और इन मंदिरों में नरसिंह द्वादशी पर भव्य उत्सव होते हैं। कुछ प्रमुख मंदिर हैं:

  1. अहोबिलम मंदिर (आंध्र प्रदेश)
  2. सिम्हाचलम मंदिर (आंध्र प्रदेश)
  3. लक्ष्मी नरसिंह मंदिर (कर्नाटक)
  4. यदगिरिगुट्टा मंदिर (तेलंगाना)

भक्त इन मंदिरों में जाकर प्रार्थना करते हैं और विशेष अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

भारत भर में उत्सव

नरसिंह द्वादशी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है:

  • दक्षिण भारत में विशेष शोभा यात्राएँ और यज्ञ (पवित्र अग्नि अनुष्ठान) आयोजित किए जाते हैं।
  • उत्तर भारत में भक्त मंदिरों में इकट्ठा होकर भजन गाते हैं और सत्संग में भाग लेते हैं।
  • कई घरों में छोटे पैमाने पर पूजा होती है, और परिवार एक साथ प्रार्थना और भोज के लिए आते हैं।

निष्कर्ष

नरसिंह द्वादशी केवल धार्मिक अनुष्ठानों का दिन नहीं है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की विजय और ईश्वरीय कृपा पर चिंतन करने का अवसर भी है। भक्त मानते हैं कि इस दिन भगवान नरसिंह की पूजा करने से कठिनाइयों पर विजय, हानि से सुरक्षा, और धर्म और भक्ति के मार्ग पर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। श्रद्धा और ईमानदारी के साथ अनुष्ठानों का पालन करने से भगवान नरसिंह की करुणामय और शक्तिशाली कृपा प्राप्त होती है।

 

 

 

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