नवपत्रिका का पूजा शारदीय नवरात्रि के सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। मुख्यतः इस त्यौहार को बंगाल, उड़ीसा एवं भारत के पूर्वी क्षेत्रो में मनाया जाता है। बंगाली समुदाय में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है तथा इस पूजा को महासप्तमी के नाम से जाना जाता है। नवपत्रिका को नौ प्रकार के पत्तियों से मिलकर बनाई जाती है और महा सप्तमी के दिन इसे दुर्गा पण्डाल में रखा जाता है।
क्या होता है नवपत्रिकाः-
उपरोक्त कथन में हमने बताया कि नवपत्रिका नौ प्रकार के अलग-अलग पेड़ के पत्तों से मिलकर बनाई जाती है और सभी पत्तों का अलग-अलग देवी के रुप में पूजा जाता है।
नौ पत्तनी क्रमश हैः- केला, हल्दी, अशोक, कच्ची, अनार, मनका, धान, बिलवा एवं जौ।
केलाः- केला का पेड़ और उसके पत्ते माँ ब्राह्मणी को प्रदर्शित करते है।
हल्दीः- हल्दी की पत्ती माँ दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती है।
अशोकः- अशोक पेड़ की पत्ती सोकरहिता का प्रतिनिधित्व करती है।
कच्चीः- कच्ची माँ काली का प्रतिनिधित्व करती है।
जौः- जौ कार्तिकी को दर्शाता है।
अनारः- अनार रक्तदंतिका का प्रतिनिधित्व करता है।
मनकाः- मनका माँ चामुण्डा का प्रतिनिधित्व करता है।
धानः- धान से माँ लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व होता है।
बिलवाः- बिलवा को बेलपत्र के नाम से जाता है तथा यें भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है।
नव पत्रिका पूजा कथाः-
कई जगहों पर कोलाबउ को भगवान गणेश जी कीे पत्नी माना जाता है जबकि इस विषय पर विद्वानों के अपने अलग-अलग मत है । नवपत्रिका से जुड़ी एक और भी कथा है। जिसके अनुसार कोलाबाऊ जिसे नवपत्रिका के नाम से जाना जाता है। वो माँ दुर्गा की अनन्य भक्ति थी और कोलाबाऊ देवी ही अलग-अलग रुप के पेड़ के पत्तों से माँ दुर्गा की पूजा किया करती थी। महास्नान के बाद महासप्तमी की पूजा का आरम्भ होता है तथा महास्नान को कोलाबाऊ स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन के स्नान का बहुत महत्व होता है मान्यताओं के अनुसार इस दिन महास्नान करने से साधन के ऊपर माँ दुर्गा की कृपा बनी रहती है और उनका जीवन धन-धान्य से परिपूर्ण तथा खुशहाल होता है।
नव पत्रिका पूजा विधिः-
☸सर्वप्रथम पूजा में उपयोग की जाने वाली नौ पत्तियों को एक साथ बाँधा जाता है और फिर इसे किसी पवित्र नदी में स्नान कराया जाता है।
☸ तत्पश्चात साधक को किसी नदी, जलाशय अथवा घर पर स्नान करें और नवपत्रिका से अपने ऊपर जल का छिड़काव भी करें।
☸ उसके बाद नवपत्रिका को कई प्रकार के जल से पवित्र किया जाता है जैसे गंगा जल उसके बाद वर्षा के पानी का जल, सरस्वती नदी का जल, समुद्र का जल कमल के साथ तालाब के पानी का जल और अन्त में झरने के पानी का उपयोग किया जाता है।
☸ स्नान के पश्चात नवपत्रिका को बंगाल के पारम्परिक सफेद और लाल साड़ी से सजाया जाता है। जिस प्रकार पारम्परिक बंगाली दुल्हन तैयार होती है। इसे नवपत्रिका भी उसी प्रकार सजाएं।
☸ महास्नान के बाद माता दुर्गा के प्रतिमा को पूजा स्थान पर रखे और उस स्थान को फूलों एवं साड़ी से सजाएं।
☸ तत्पश्चात माँ दुर्गा की षोडशोषचार विधि से पूजा करें।
☸ वहीं पर नवपत्रिका को भी प्रतिमा के रुप में रखें तथा चंदन, अक्षत, हल्दी, फूल के माध्यम उसकी पूजा करें।
☸ नवपत्रिका के दाहिने ओर गणेश जी के प्रतिमा को रखे क्योंकि ये उनकी पत्न्ी मानी जाती है तथा रोली, चंदन, अक्षत, कपूर, अगरबत्ती के माध्यम से उनकी भी पूजा करें।
☸ अन्त में माँ दुर्गा की आरती करें एवं उनको भोग चढ़ाकर भक्तजनों मे प्रसाद वितरण करें।
नवपत्रिका 2023 शुभ तिथि एवं मुहर्तः-
साल 2023 में नवपत्रिका व्रत 21 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को पड़ रहा है।
नवरात्रि तिथि का आरम्भ 20 अक्टूबर 2023 को रात्रि 23ः26 से होगा तथा इसकी समाप्ति 21 अक्टूबर 2023 को रात्रि 21ः55 पर होगी।
नवपत्रिका पूजा महत्वः-
नवपत्रिका कों कोलाबाऊ पूजा के नाम से जाना जाता है। कहा यह भी जाता है कि गणेश जी के पत्नी का नाम कोलाबाऊ था लेकिन इसका कोई साक्ष्य नही है। नवपत्रिका की पूजा किसानों द्वारा भी किया जाता है ताकि उनकी फसल का उपज बढ़िया हो कृषि लोग प्रतिमा की पूजा करने के बजाय प्रकृति की पूजा करते है। जब फसल के कटन का समय होता है तब शरद ऋतु करने का समय होता है और उसी समय नवपत्रिका की पूजा भी की जाती है। बंगाल और उड़ीसा में दुर्गा पूजा के दौरान नौ प्रकार की पत्तियों को मिलाकर दुर्गा जी की पूजा-अर्चना की जाती है।