प्रभु श्री राम जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाये रामनवमी का पर्व

चैत्र मास में पड़ने वाला रामनवमी हिन्दू धर्म में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भी हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक  है। इसी दिन मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्री राम जी का जन्म राजा दशरथ के यहाँ हुआ था। प्रभु श्री राम जी का जन्म शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था। इस विशेष दिन पर प्रभु श्री राम जी की पूजा-अर्चना करने के साथ-साथ चैत्र नवरात्रि का समापन भी होता है।

Ram Navami (रामनवमी) by Astrologer K.M. Sinha –

रामनवमी पर्व का महत्व

रामनवमी पर्व का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व होता है। कुछ लोग इस पर्व को राम जी के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं, तो कुछ लोग इस पर्व को रामनवमी के समापन के तौर पर मनाते हैं। इसी दिन भगवान श्री विष्णु जी ने राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र के रूप में सातवाँ अवतार लिया था। प्रभु श्री राम जी के जन्म का उद्देश्य मात्र लंका के राजा यानि रावण की बुरी आत्मा को नष्ट करना था, जिसने भगवान ब्रह्मा जी से आशीर्वाद प्राप्त किया था कि कोई भी देवता, गंधर्व, राक्षस या दानव उसका वध नही कर सकता है।

इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का अत्यधिक महत्व होता है। सभी भक्त स्नान करके पुण्य फल की प्राप्ति करते हैं। यह पर्व नवरात्रि के समाप्ति के कारण भी और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।

कहा जाता है कि प्रभु श्री राम जी के जन्म के समय 5 ग्रह एक साथ उच्च स्थिति में थे। भगवान श्री राम जी ने अपने जीवन के माध्यम से उच्च आदर्शों को प्राप्त किया। इस दिन किसी भी तरह के मांगलिक कार्य बिना सोचे किये जा सकते हैं। इस दिन के पूजन से सभी भक्तों को सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।

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आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा जी के द्वारा क्यों मनाई जाती है रामनवमी ?

प्राचीन कही गई कहानियों के अनुसार रामनवमी के पवित्र दिन से ही गोस्वामी तुलसीदास जी नें रामचरितमानस लिखना प्रारम्भ कर दिया था। जिसे तुलसी रामायण या तुलसीकृत के नाम से भी जाना जाता है। रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने लगभग 02 वर्ष 07 माह और 26 दिन में लिखा था और लिखने की प्रक्रिया की समाप्ति इन्होंने 1633 ईसा पूर्व के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन ही पूर्ण किया था। भगवान श्री राम जी का जीवन परिचय वाल्मीकि जी के द्वारा रचित ग्रंथ में मिलता है। यह भगवान विष्णु जी के अवतार थे और अपने जीवन के माध्यम से श्री राम जी नें बहुत ही उच्च आदर्शों को प्राप्त किया था। भगवान श्री राम जी को प्रसन्न करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान उत्तर प्रदेश में अयोध्या है जिसे भगवान श्री राम जी की जन्म भूमि भी माना जाता है।

राम जी का जन्म इतिहास

आज से लगभग कई हजार वर्ष पहले त्रेतायुग में जब दुष्ट रावण और तारकासुर जैसे बड़े-बड़े राक्षसों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था, उस समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी के अवतारों का इस धरती पर आगमन हुआ। इससे सम्बन्धित पुरानी कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में राजा दशरथ की 3 पत्नियाँ थीं। तीन पत्नियों के होने के बावजूद भी वे संतान के सुख से वंचित थे। उस समय राजा दशरथ की केवल एक ही पुत्री शांता थी और उन्होंने उसे भी गोद दे दिया था। कई वर्षों तक कोई भी संतान न हो पाने के बाद ऋषि वशिष्ठ ने राजा दशरथ जी को कमेष्ठि यज्ञ करवाने की आज्ञा दी जिसके परिणाम स्वरूप राजा की तीनों पत्नियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उनकी पहली पत्नी कौशल्या से प्रभु श्री राम और अन्य से भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्राप्ति हुई।

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राम वनवास कथा

राम जी केे वनवास जाने की कथा के अनुसार राजा दशरथ अपने सबसे बड़े पुत्र को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे परन्तु उनकी पत्नी कैकई की यह मंशा थी की उनका पुत्र भरत सिंहासन पर बैठे अपनी पत्नी को राजा दशरथ ने तब वचन दिया था जब युद्ध के दौरान रानी कैकई ने उनके प्राणों की रक्षा की थी। इस तरह से प्रभु श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास प्राप्त हुआ था। इस वनवास में उन्होंने अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण को साथ ले जाना स्वीकार किया था।

वनवास काल

वनवास काल के दौरान प्रभु श्री राम जी ने कई बड़े-बड़े असुरों का संहार किया था। उन्होंने अपने वनवास काल के दौरान हनुमान जी जैसे सेवक और सुग्रीव जैसे मित्र को पाया था। माँ सीता का जन्म ही रावण के संहार के लिए हुआ था जिसे पूरा करके ही प्रभु श्री राम जी ने सभी मनुष्य जाति का उद्धार किया।

राम नवमी पूजा विधि

☸ राम नवमी के पर्व के दिन सबसे पहले प्रातः स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

☸ पूजा स्थान को साफ-सुथरा करके वहाँ प्रभु श्री राम जी की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें।

☸ रामनवमी के व्रत का संकल्प लेकर पवित्र गंगाजल से जलाभिषेक करें। उसके बाद प्रभु श्री राम जी का रोली, अक्षत, धूप, चंदन और गंध इत्यादि सभी सामग्रियों से षोडशोपचार विधि से पूजन करें।

☸ कमल का पुष्प और तुलसी का पत्ता प्रभु श्री राम जी को अर्पित करके फल का भोग लगायें।

☸ यदि मीठा पकवान आपने भोग के लिए बनाया है तो वह भी भोग लगायें।

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☸ सारी विधि अच्छे से हो जाने के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षा स्त्रोत का पाठ करें।

☸ पाठ करने के बाद प्रभु श्री राम जी की आरती करें, प्रभु श्री राम जी को कुछ देर पालने में झुलाकर पूजा सम्पन्न करें।

☸ आरती और विधिपूर्वक पूजा कर लेने के पश्चात सभी लोगों को प्रसाद वितरित करें।

☸ अन्त में ब्राह्मण और गरीबों को दान-दक्षिणा दें।

रामनवमी पूजन

राम नवमी का पर्व हिन्दू धर्म के त्योहारों में से सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। आपको बता दें राम नवमी के पर्व के साथ-साथ माँ दुर्गा के लिए मनाये जाने वाले नवरात्र के त्योहार का भी समापन होता है। इस दिन चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है और हवन हो जाने के बाद नवरात्रि के व्रत का पारण भी किया जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त नवरात्रि के 09 दिन की पूजा किसी कारणवश नही कर पाता है वह नवमी तिथि पर यदि विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर लें तो नौ दिनों के पूजा के फल की प्राप्ति हो जाती है। माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर लेने के बाद और पारण से पहले इस दिन कन्या पूजन की परम्परा का पालन भी आवश्यक रूप से किया जाता है।

राम नवमी शुभ मुहूर्त

राम नवमी का पर्व 17 अप्रैल 2024 को बुधवार के दिन मनाया जायेगा।
नवमी तिथि प्रारम्भः- 16 अप्रैल 2024, दोपहर 01ः23 मिनट से,
नवमी तिथि समाप्तः- 17 अप्रैल 2024, दोपहर 03ः14 मिनट तक।