हमारे हिन्दू धर्मों और शास्त्रों मे कई देवी-देवताओं के रुपों और शक्तियों का उल्लेख मिलता है। उन्हीं मे से एक है भगवान विष्णु, जिन्होंने कई अवतार लिए है और पृथ्वी को बुरी शक्तियों से बचाया है। भगवान विष्णु के अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार है तथा भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूर्ण जानकारी हम ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा समझेंगे।
प्रलय (कल्पांत) के पहले की बात है सत्यव्रत नाम का एक राजा लम्बे समय से भगवान विष्णु की (तप) आराधना कर रहा था। वह राजा पुण्यात्मा, उदार एवं दयालु हृदय वाले थें। एक बार प्रातःकाल का समय था और सूर्योदय हो गया था उसी समय राजा कृतमाला नदी मे स्नान करने गए। स्नानोपरांत जब तर्पण करने के लिए राजा ने अपने हाथो में जल लिया तो उनके हाथों में एक छोटी सी मछली आ गई। राजा ने मछली को पुनः नदी में छोड़ दिया तब मछली ने बोला हे राजन! जल में उपस्थित बड़े-बड़े जीव, छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते है इस प्रकार मुझे भी कोई खा जायेगा। अतः आप मेरे प्राणों की रक्षा करें। यह सुनकर राजा के अन्दर दया भावना जाग्रत हो गई। उन्होंने मछली को अपने जल से भरें कमंडल मे रख दिया उसके बाद एक आश्चर्यचकित घटना हुई कि मछली रातो-रात इतनी बढ़ गई कि कमण्डल उसके लिए छोटा पड़ गया।
तब दूसरे दिन सुबह मछली ने कहा हे! राजन मेरे शरीर का आकार बढ़ गया है मुझे अब इस कमण्डल मे दर्द हो रहा है मै घूम-फिर नही पा रही हूं कृपया करके मेरे रहने के लिए दूसरी व्यवस्था कर दीजिये तब राजा ने मछली को कमण्डल से निकालकर मटकी मे डाल दिया लेकिन फिर से रातों रात मछली का आकार बढ़ और मटकी भी छोटी पड़ने लगी। मछली ने पुनः राजा से आग्रह किया हे राजन! एक बार फिर से मेरे रहने का प्रबंध कर दीजिए क्योंकि यह मटका भी मेरे लिए छोटा पड़ रहा है तब राजा ने मछली को एक सरोवर में डाल दिया परन्तु वह सरोवर भी मछली के लिए छोटी पड़ गई।
उसके बाद मछली ने पुनः आग्रह किया और कहा हे राजन! कृपया कर मुझे उसी नदी मे डाल दें। जहां से मुझे लाए थे तब राजा ने कहा क्या अब वह बड़ी मछलिया तुम्हे नही खायेगी यह सुनकर मछली बोली नही अब वह मछलियां मुझे नही खायेंगी जहां तक संभावना है मुझसे डरेगी। मछली के आग्रह पर राजा ने उसे पुनः नदी मे डाल दिया परन्तु यह नदी भी छोटी पड़ गई तब राजा ने मछली को समुद्र मे डाल दिया फिर मछली ने बोला हे राजन यह समुद्र भी मेरे लिए छोटा है मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए।
इन सभी परिस्थितियों के उपरान्त राजा बहुत अचंभित हुए और उन्होंने मछली से कहा मैने आज तक ऐसी मछली कभी नही देखी, मेरे ज्ञान को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन है ?
तब मत्स्य रुपधारी श्री विष्णु जी ने जवाब दिया- राजन! हयग्रीप नाम के दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है जिसके कारण संसार मे चारों ओर अंधकार एवं अधर्म फैला हुआ है। इसलिए इस दैत्य का वध करने के लिए मैने मत्स्य का अवतार लिया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी पर प्रलय आयेगा और समुद्र मे लहरे उठेंगी यह दृष्टि बहुत ही भयानक होगी यह पूरा संसार पानी मे डूब जायेगा। चारो ओर केवल जल ही जल दिखाई देगा। उसी समय आपके पास एक नाव पहुंचेगी जिस पर सप्तऋषि विराजमान होंगे आप उस नाव पर अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर बैठ जाइयेगा। मै आपको उस समय पुनः दिखाई दूंगा इसके साथ ही आपको आत्मतत्व का ज्ञान भी प्रदान करुंगा।
उसके बाद राजा सत्यव्रत भगवान विष्णु की आराधना करते हुए प्रलय आने की प्रतिक्षा करने लगे। भगवान विष्णु के कहे अनुसार सातवें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया और थोड़ी ही देर में सम्पूर्ण पृथ्वी पर जल ही जल हो गया है और उस समय एक नाव दिखाई पड़ी जिसमे सप्तऋषि भी थे। राजा अनाजों और औषधियों के बीजों के साथ बैठ गयें। नाव प्रलय के सागर मे तैरने लगी उसे पूरे दृश्य मे इस नाव के अतिरिक्त कुछ दिखाई नही पड़ रहा था।
तभी अचानक से भगवान विष्णु अपने मत्स्य अवतार मे प्रकट हुए। ऋषियों और राजा सत्यव्रत भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा आराधना करने लगे। श्री विष्णु से आत्मज्ञान अर्जन करके राजा सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। जब प्रलय का प्रकोप शांत हो गया तो भगवान हरि ने हयग्रीव दैत्य को मारकर उससे वेद पुनः प्राप्त कर लिए।
भगवान विष्णु ने यह वेद ब्रह्मा जी को पुनः सौप दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने पूरे संसार का उद्धार किया तथा वेदो को भी सुरक्षित किया साथ ही सभी प्राणियों का भी कल्याण किया। इसी समय से नये युग का प्रारम्भ हुआ।