भद्रकाल का रहस्य: शनिदेव की बहन भद्रा और पौराणिक महत्व

हिंदू धर्म में पंचांग का अत्यधिक महत्व है। पंचांग में कई प्रकार के शुभ और अशुभ समयों का वर्णन होता है, जिनमें से एक है भद्रकाल। यह समय विशेष रूप से रक्षाबंधन, विवाह और अन्य शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भद्रकाल का वास्तविक अर्थ क्या है और यह समय शनिदेव की बहन भद्रा से कैसे जुड़ा है? आइए जानते हैं भद्रकाल की पौराणिक कहानी और इसके प्रभाव –

Bhadrakaal: भद्रकाल का वास्तविक अर्थ

भद्रकाल को समझने के लिए पंचांग के पांच प्रमुख अंगों—तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण को समझना जरूरी है। भद्रा, जो इन अंगों में से करण से संबंधित है, का शाब्दिक अर्थ “शुभ करने वाला” होता है। हालांकि अपने नाम के विपरीत भद्रकाल को अशुभ माना जाता है और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। विशेष रूप से भद्रकाल में राखी नहीं बांधी जाती और विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों से बचा जाता है।

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भद्रकाल का रहस्य: शनिदेव की बहन भद्रा और पौराणिक महत्व 1भद्रकाल का रहस्य: शनिदेव की बहन भद्रा और पौराणिक महत्व 2

Bhadra: भद्रा का पौराणिक जन्म और महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा का जन्म सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की पुत्री के रूप में हुआ था। वह शनिदेव की बहन हैं और उनका स्वभाव भी शनिदेव की तरह क्रोधी है। भद्रा का जन्म राक्षसों के संहार के उद्देश्य से हुआ था लेकिन समय के साथ वह देवताओं के शुभ कार्यों में बाधा डालने लगीं। इससे परेशान होकर देवताओं ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की जो संसार के रचयिता माने जाते हैं।

ब्रह्माजी का भद्रा को निर्देश

देवताओं की पुकार सुनकर ब्रह्माजी ने भद्रा को निर्देश दिया कि वह केवल कुछ विशेष स्थितियों में ही मनुष्यों, देवताओं या राक्षसों को पीड़ा पहुंचा सकती हैं। ब्रह्माजी ने भद्रा को कहा, तुम बव, बालव और कौलव करणों में ही निवास करो और जो लोग तुम्हारा आदर करें, तुम उनके कार्यों में बाधा पहुंचा सकती हो लेकिन तुम हमेशा सभी के कार्यों को नहीं रोक सकती।”

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भद्रकाल और ज्योतिष शास्त्र

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है, तो भद्रा का निवास पृथ्वी पर होता है और यह समय मनुष्यों के लिए अशुभ माना जाता है। पृथ्वी पर भद्रा का निवास होने पर सभी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।

भद्रकाल में शुभ कार्यों की मनाही क्यों?

भद्रकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, नया व्यापार या रक्षाबंधन का मुख्य अनुष्ठान नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भद्रकाल में शुभ कार्य करने से सफलता प्राप्त नहीं होती और कार्य में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। विशेष रूप से भद्रकाल में राखी बांधने से भाई-बहन के रिश्ते में दरार आ सकती है। हालांकि जब भद्रा का निवास स्वर्ग या पाताल लोक में होता है तो यह समय शुभफलदायी माना जाता है।

भद्रकाल जो नाम से भले ही शुभ लगता है, वास्तव में अशुभ समय के रूप में जाना जाता है। यह शनिदेव की बहन भद्रा से जुड़ी एक पौराणिक कथा का हिस्सा है जिसमें यह बताया गया है कि कैसे भद्रा ने देवताओं के शुभ कार्यों में बाधा डालने का प्रयास किया और कैसे ब्रह्माजी ने उन्हें विशेष परिस्थितियों में ही सक्रिय होने का निर्देश दिया। भद्रकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य न करने की परंपरा इसी पौराणिक मान्यता पर आधारित है। इस प्रकार पंचांग में भद्रकाल का समय देखते हुए, हमें अपने सभी शुभ कार्यों को इससे बचाकर करना चाहिए।

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