भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और चांद दोनो की पूजा की जाती है। चन्द्रमा की पूजा करने से व्यक्ति के क्रोध की शांति होती है। शिव की पूजा करने तथा चन्द्रमा को अर्घ देने से व्यक्ति हमेशा सेहतमंद धनी और सम्पन्न रहता है और वह कभी भी अपने जीवनसाथी से अलग नही होता उसका परिवार हमेशा धन-धान्य से भरा होता है। मान्यता है कि यदि आप किसी विशेष कार्य की पूर्ति हेतु लम्बे समय से कार्यरत है तो आपको पूर्णिमा तिथि पर इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए यदि आप इस व्रत का पूर्ण विधि विधान से मन में श्रद्धा रखते हुए पालन करते है तो आपका प्रत्येक कार्य सिद्ध होगा। इस दिन सत्य नारायण भगवान जी की कथा भी सुननी चाहिए।
भाद्रपद पूर्णिमा कथा
एक बार की बात है। द्वापर युग में यशोदा मां ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा की वह उन्हें एक ऐसा व्रत बताएं जिसको करने से मृत्यु लोक में स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत का फल मिलें।तब श्री कृष्ण ने भाद्रपद पूर्णिमा व्रत के बारे में बताया यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति भक्ति बढ़ाने वाला है। यशोदा मां ने श्री कृष्ण पूछा क्या इस व्रत को मृत्यु लोक में किसी ने किया था! तब भगवान ने बताया की कार्तिका नाम की नगरी थी वहां चंद्रहास नामक एक राजा राज करता है। उसी नगरी में धनेश्वर नाम के ब्राह्मण की पत्नी रुपवती थी दोनो एक दूसरे को बेहद पसन्द करते थे और उस नगरी में बहुत प्रेम से रहते थे घर में किसी चीज की कमी नही थी लेकिन संतान ना होने के कारण वह अक्सर दुखी रहा करते थे एक दिन एक योगी उस नगरी में आया वह नगर के सभी घरों से भिक्षा लेता था लेकिन रुपवती के घर से भिक्षा नही लेता था। एक दीन दुखी होकर धनेश्वर योगी से भिक्षा ना लेने की वजह पूछा। इस पर योगी ने कहा की घर की भीख पतिर्थों के अन्न के समान होती है और जो पत्तियों का अन्न ग्रहण करता है। वह भी पतिध हो जाता है। इसलिए पतिथ हो जाने के भय से उनके घर की भिक्षा नही लेता है। इसे सुनकर धनेश्वर दुखी हो गये और उन्होंने योगी से पुत्र प्राप्ति की सलाह दी धनेश्वर देवी चंडी की उपासना करने के लिए वन चला गया मां चंडी ने धनेश्वर की भक्ति से प्रसन्न होकर 16 वर्षों तक ही जीवित रहेगा। यदि वह स्त्री और पुरुष 32 पूर्णिमा का व्रत करेेंगे तो वह दीर्घायु हो जाएगा मां चंडी ने एक आम के वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर उसी पत्नी खिलाने को कहा मां चण्डी ने कहा की तुम्हारी पत्नी स्नान कर शंकर भगवान शिव की कृपा से गर्भवती हो जाएगी। व्रत के बाद धनेश्वर को पुत्र की प्राप्ति हुई तथा 32 पूर्णिमा का व्रत करने से पुत्र को दीर्घायु की प्राप्ति हुई।
भाद्रपद पूर्णिमा की व्रत विधि
☸ भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्रत रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके भगवान सत्य नारायण की मूर्ति स्थापित करे इसके बाद पूजा के लिए पंचामृत और प्रसाद के लिए चूरमा बना लें।
☸ इसके बाद भगवान सत्यनारायण की कथा सुनियें।
☸ कथा के बाद भगवान सत्यनारायण, माता लक्ष्मी, भगवान शिव, माता पार्वती की आरती होती है।
☸ इसके बाद प्रसाद बांटे जाते है।
☸ ब्राह्मणों को भोजन कराये। इस तरह पूजा सम्पन्न होती है।
भाद्रपद पूर्णिमा पूजा सामग्री
रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी, रक्षासूत्र, चावल, जनेउ, कपूर, हल्दी, देशी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता, पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड, मिट्टी का दिया, रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक, चावल, गन्ना आदि।
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
इस पूर्णिमा तिथि पर उमा महेश्वर का व्रत भी किया जाता है। शंकर पार्वती की पूजा करने से पिछले जन्म के पाप और दोष खत्म हो जाते है। पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की कथा पढ़ने व सुनने मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते है और उस घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दिन लोग गंगा, यमुना और नर्मदा और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने के साथ दान पुण्य करते है तथा भगवान सूर्य देव को अर्घ्य देते है। इसके बाद गरीबों और जरुरतमंदो की मदद जरुर करनी चाहिए तथा गरीबो या जरुरतमंदो को भोजन भी कराना चाहिए। इससे हर काम में सफलता प्राप्त होती है।
भाद्रपद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
भाद्रपद पूर्णिमा प्रारम्भ तिथिः- 28 सितम्बर को 06ः50 से
भाद्रपद पूर्णिमा समापन तिथिः- 29 सितम्बर 03ः28 तक